- साहित्यकला में सिद्धहस्त थीं शासनमाता कनकप्रभाजी : आचार्यश्री महाश्रमण
- सात किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे मानसा, एम.जी. चौधरी विद्या संकुल में पावन प्रवास
- उत्साहित श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य का किया भावभीना अभिनंदन
06.03.2023, सोमवार, मानसा, गांधीनगर (गुजरात)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का सोमवार को गांधीनगर जिले के मानसा नगर में मंगल प्रवेश हुआ। अपने आराध्य की अगवानी में जुटे श्रद्धालुओं ने महातपस्वी का भावभीना अभिनंदन किया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री मानसा में स्थित एम.जी. चौधरी विद्या संकुल में पधारे। यहां आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की अष्टम साध्वीप्रमुखा, शासनमाता, महाश्रमणजी साध्वी कनकप्रभाजी की प्रथम पुण्यतिथि समारोह का समायोजन किया गया।
इसके पूर्व प्रातःकाल आजोल से आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। मानसा के श्रद्धालु आचार्यश्री के प्रस्थान के पूर्व ही मंगल सन्निधि में पहुंच गए थे। आज का विहार मार्ग भले ही छोटा था, किन्तु मार्ग में श्रद्धालुओं के पहुंचने का क्रम जारी था। लगभग सात किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री मानसा में पधारे तो मानसावासियों का सौभाग्य चमक उठा। अपने आराध्य की अभिनंदन को उपस्थित मानवासियों के जयघोष से वातावरण गुंजायमान हो उठा। सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री गतिमान थे। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री मानसा में स्थित एम.जी. चौधरी विद्या संकुल में पधारे।
विद्या संकुल के एक नवनिर्मित हॉल में आज का मुख्य प्रवचन कार्यक्रम आयोजित हुआ। आज का मुख्य कार्यक्रम तेरापंथ धर्मसंघ की अष्टम साध्वीप्रमुखा शासनमाता कनकप्रभाजी की प्रथम पुण्यतिथि के रूप में भी समायोजित हुआ।
आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को आत्मानुशासन करने के लिए संयम और तप की साधना करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी है। आज के दिन हाजरी का क्रम होता है, इसलिए भी गुरुकुलवासी चारित्रात्माओं की उपस्थिति अनिवार्य होती है। यदि कोई चारित्रात्मा तपस्या, उपवास आदि नहीं भी कर पाएं तो उनदोरी करना भी अपने आप में एक तपस्या होती है। इस दौरान आचार्यश्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को महाप्राणध्वनि और भी अनेक ध्यान के प्रयोग भी कराए। आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन किया तो समुपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान खड़े होकर लेखपत्र उच्चरित किया।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ की आठवीं साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी के महाप्रयाण को एक वर्ष हो गया। आज के ही दिन दिल्ली अध्यात्म साधना केन्द्र के अनुकंपा भवन में उनका महाप्रयाण हो गया। उनका पचास वर्षों से अधिक समय का संयम पर्याय रहा। वे परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और मेरे साथ भी अपना योगदान दिया। आचार्यश्री ने उनके जीवन के अनेक घटना प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा कि बीदासर के मर्यादा महोत्सव उनका अंतिम मर्यादा महोत्सव था और उस दौरान उन्होंने अपने दायित्व का पालन करते हुए साध्वी समुदाय के व्यवस्थाओं से संबंधित कार्य किया। उन्हें तीन-तीन आचार्यों की सेवा का अवसर मिला। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी उनके आयु में 21 साल बड़े और मैं उनसे आयु में 21 साल छोटा था। वे साहित्यकला में सिद्धहस्त थीं। कविता का निर्माण शीघ्र कर लेती थी। उनका अपना वैदुष्य था। उनसे कितनों पथदर्शन मिला, कितने साध्वियों के केशलोच और मार्गदर्शन प्रदान किया। मैं उनका श्रद्धा के स्मरण करता हूं, उनके प्रति सम्मान की भावना व्यक्त करता हूं।
तदुपरान्त मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने शासनमाता के प्रति अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। मुनि धर्मरुचिजी, साध्वी सुमतिप्रभाजी, समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वी उदितयशाजी ने कविता पाठ किया। साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। छोटी साध्वियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा-मानसा के अध्यक्ष श्री अशोक मेहता व विद्या संकुल के श्री पितु भाई चौधरी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ कन्या मण्डल व महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
पालनपुर और सिद्धपुर को भी आचार्यश्री करेंगे पावन
आचार्यश्री कार्यक्रम में घोषणा करते हुए कहा कि सन् 2024 के बाद और सन् 2026 के चतुर्मास के पहले-पहले पालनपुर और सिद्धपुर का यथासंभवतया स्पर्श करने का भाव है। इस प्रकार की घोषणा सुनकर प्रवचन हॉल जयघोष से गूंज उठा।