- 12 कि.मी. का विहार कर पहुंचे भेटाली, पुनः 7 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे वक्तापुर
- मधुमक्खियों का उपद्रव, महातपस्वी ने चिलचिलाती धूप में किया 19 कि.मी. का प्रलम्ब विहार
- त्याग की चेतना को वृद्धिंगत करने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण
27.02.2023, सोमवार, वक्तापुर, साबरकांठा (गुजरात) । गुजरात की धरा को पावन बना रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 19 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर वक्तापुर में स्थित ओम चिन्तामणि पार्श्व-पद्मावती जैन तीर्थ में पधारे। हालांकि यह प्रवास स्थल आचार्यश्री के रात्रिकालीन प्रवास के लिए निर्धारित गया गया था। किन्तु इससे पूर्व के निर्धारित स्थान भेटाली स्थित दिव्य चेतना कालेज में मधुमक्खियों के उपद्रव के कारण आचार्यश्री जन-जन की सुरक्षा के लिए तुरन्त विहार करने का निर्णय किया और चिलचिलाती धूप में 7 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री वक्तापुर में स्थित जैन तीर्थ में पधार गए।
इसके पूर्व प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ईडर से मंगल प्रस्थान किया। अपने आराध्य की कृपा प्राप्त कर अभिभूत ईडरवासी अपने आराध्य के प्रति अपने कृतज्ञभावों को अर्पित करते हुए अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करते हुए चल पड़े। गुजरात की धरा इस समय धानी परिधान ओढ़े हुए नजर आ रही है। अधपके गेहूं, अनेक प्रकार ही सब्जियां, सौंफ आदि की खेती बहुलता लिए हुए थी। खेतों से उठती फसलों की सुगंध लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर रही थी। जैसे-जैसे आचार्यश्री गुजरात की राजधानी की ओर बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे प्रतिदिन श्रद्धालुओं की उपस्थिति की संख्या भी बढ़ती जा रही है। मार्ग में अनेक स्थानों पर अपने-अपने वाहनों से उतरकर श्रद्धालु अपने आराध्य को वंदन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे।
लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री भेटाली में स्थित दिव्य चेतना कॉलेज में पधारे। इसी परिसर के दूसरे भवन में साध्वी समुदाय भी उपस्थित था। इस परिसर में मधुमक्खियों ने अपनी अपना स्थान बना रखा था। अचानक मधुमक्खियों का दल हमलावर हुआ और फिर पूरे परिसर में मधुमक्खियां फैल गईं। कई श्रद्धालुओं को मधुमक्खियों ने काट खाया, एकबार तो अफरातफरी का माहौल-सा उपस्थित हो गया। आचार्यश्री ने चिंतनपूर्वक उस स्थान से तत्काल विहार करने का निर्णय किया गया और चन्दों मिनटों बाद ही आचार्यश्री ने वहां से प्रस्थान भी कर दिया। इसके पूर्व आचार्यश्री लोगों को मंगलपाठ भी सुनाया। सूर्य आसमान के मध्य आ गया था और उसके किरणें आतप बरसा रही थीं, किन्तु दृढ़संकल्पधारी महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। चिलचिलाती धूप में लगभग 7 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री वक्तापुर स्थित ओम चिन्तामणि पार्श्व-पद्मावती जैन तीर्थ परिसर में पधारे। इस प्रकार आचार्यश्री ने सुबह से अभी तक लगभग 19 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार सम्पन्न कर लिया।
वहां उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते कहा कि दुनिया में भोग भी चलता है तो योग भी चलता है। मानव जीवन में भोग और काम विष के समान होते हैं। बाह्य रूप से भोग न करते हुए भी इसकी अभिलाषा रखना भी दुर्गति का कारण बन जाता है। भोगों का त्याग बाहर और भीतर दोनों से होना चाहिए। काम-भोग का शरीर, वाणी और मन से विरक्ति हो तो गृहस्थ जीवन में त्याग का अच्छा विकास हो सकता है। इस प्रकार आदमी को अपने जीवन में त्याग की चेतना को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।