- भारत के सभी दिशाओं को प्राप्तु हुए साधु-साध्वियों के चतुर्मास, विदेशों को मिले समणीकेन्द्र
- संघ साधन, मूल साध्य है आत्मकल्याण : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण
- सिवांची-मालाणी पर हुई विशेष कृपा, प्रायः सभी गांवों को मिला चतुर्मास
- मुम्बई में चतुर्मासकाल की पहली दीक्षा 29 जून को 4 समणी, 2 श्रेणी आरोहण व 1 मुनि दीक्षा
28.01.2023, शनिवार, बायतू, बाड़मेर (राजस्थान)। बायतू में आयोजित 159वें त्रिदिवसीय मर्यादा महोत्सव के अंतिम व प्रमुख दिन तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की ऐसी कृपा बरसी कि गुरुकृपा भारत के कोने-कोने में रहने वाले श्रद्धालु निहाल हो उठे। आचार्यश्री ने भारत के चारों दिशाओं में साधु-साध्वियों के चतुर्मास की घोषणा की तो विदेशों में समणियों के केन्द्रों का उपहार भी प्राप्त हो गया। वहीं मुम्बई चतुर्मास के दौरान आयोजित होने वाले प्रथम दीक्षा समारोह में चार समणी, दो श्रेणी आरोहण व एक मुनि दीक्षा की घोषणा कर आचार्यश्री ने मायानगरी को निहाल कर दिया। सम्पूर्ण धर्मसंघ को साधना, मर्यादा, विधान का सम्यक् पालन करने की प्रेरणा के साथ आचार्यश्री ने मर्यादा महोत्सव के अवसर पर स्वरचित गीत का संगान किया। आचार्यश्री के श्रीमुख से संघगान के साथ बायतू में आयोजित 159वें मर्यादा महोत्सव की सम्पन्नता भी हो गई।
साधु, साध्वियों व समणियों के गीतों से गूंज उठा वातावरण
159वें मर्यादा महोत्सव के अंतिम दिवस शनिवार को निर्धारित समयानुसार युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुनि दिनेशकुमारजी ने घोष कराया और ‘भीखणजी स्वामी! भारी मर्यादा बांधी संघ’ गीत का संगान किया। इसके साथ आरम्भ हुए मुख्य कार्यक्रम में समणीवृंद, साध्वीवृंद और मुनिवृंद ने पृथक्-पृथक गीतों का संगान किया तो मानों सम्पूर्ण वातावरण उन स्वर लहरियों से गुंजायमान हो उठा।
मुख्य दिवस पर साध्वीप्रमुखाजी ने किया जनमेदिनी को उद्बोधित
तेरापंथ धर्मसंघ की नौवीं साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम आचार्य भिक्षु से वर्तमान आचार्यों की अथक श्रमशिलता का वर्णन करते हुए श्रावक-श्राविकाओं को संघ और संघपति के प्रति निष्ठा को बनाए रखने के लिए उत्प्रेरित किया।
महातपस्वी महाश्रमण ने सकल धर्मसंघ को पढ़ाया मर्यादा, विधान और सुसंस्कार का पाठ
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मर्यादा महोत्सव के आखिरी दिवस पर धर्मसंघ के नाम अपना मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि आज से लगभग 262 वर्षों पूर्व हमारे धर्मसंघ का शुभारम्भ हुआ। इस तेरापंथ धर्मसंघ के जनक व प्रथम अनुशास्ता परम पूजनीय आचार्यश्री भिक्षु हुए। उन्होंने धर्मक्रांति की और हम सभी को एक ऐसा राजपथ प्राप्त हो गया। वे परम आत्मबली और अपनी निष्ठा के प्रति अडिग थे। उन्होंने धर्मसंघ में मर्यादाएं बनाईं। आचार्यश्री मर्यादा पत्र को दिखाते हुए कहा कि यह हम सभी के लिए मानों गणछत्र है। धर्मसंघ में एकता और अनुशासन नींव से ही सुदृढ़ है। एक विचार, एक आचार, एक आचार्य और एक ही विधान है। यह एकता की चतुष्टयी है। इस प्रारूप को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। धर्मसंघ में आचार्य सर्वोपरि होते हैं। सम्पूर्ण धर्मसंघ में आचार्य श्रद्धा के केन्द्र होते हैं। गण में शासन बड़ा और शासन में आचार्य बड़े। साधु-साध्वियों को आचार्य की लांघने का त्याग भी कराया जाता है तो इस प्रकार आचार्य को विशेषाधिकार प्राप्त है।
हमारे धर्मसंघ में अहंकार और ममकार को भी रोकने का विधान किया है। संघ का विधान है कि पद का उम्मीदवार नहीं बनना। उम्मीदवार नहीं बन सकते तो अहंकार भी नहीं जा सकता। दूसरा है कोई अपनी-अपनी शिष्य-शिष्याएं न बनाएं। शिष्य-शिष्याएं केवल आचार्य के होंगे तो ममकार की भावना का भी निषेघ हो गया। धर्मसंघ में रहने का मूल उद्देश्य तो आत्मकल्याण ही है। संघ एक साधन है, मूल साध्य आत्मकल्याण है। आत्मकल्याण में संघ सहायक बनता है। संघ में अच्छी साधना हो सकती है।
साधु-साध्वियों को पांच महाव्रतों की सुरक्षा जागरूकतापूर्वक करने का प्रयास करना चाहिए। महोनीय कर्म रूपी लुटेरा उसे लूटने ना पाए, इसके लिए समिति-गुप्ति रूपी सुरक्षकों को सजग बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। एक आचार्य की आज्ञा में रहने वाली मर्यादा को ‘मर्यादा शिरोमणि’ है।
आचार्यश्री ने ज्ञानशाला, उपासक श्रेणी, मुमुक्षु श्रेणी आदि के विकास की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि श्रावकों का श्रावकत्व भी पुष्ट हो इसके लिए शनिवार की सामायिक की साधना और सुमंगल साधना भी करने का प्रयास हो। धर्मसंघ की लोककल्याणकारी गतिविधि में अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान है। अणुव्रत का 75वां वर्ष भी आ रहा है। अणुव्रत की चेतना को पुष्ट बनाने का प्रयास हो। प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञान का भी विकास हो। तेरापंथ धर्मसंघ में कल्याण परिषद, विकास परिषद और चारित्रात्माओं में बहुश्रुत परिषद है। ये सभी अच्छे कार्य करते रहें।
साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्या भी खूब अच्छा विकास करते रहें। चारित्रात्माओं को संयम करने, प्रमाद से बचने और साधन के उपयोग में जागरूकता और प्रयोग की एक वार्षिक रिपोर्ट बनाकर गुरुकुल में भेजने की प्रेरणा भी प्रदान की। आचार्यश्री ने बैनर-पोस्टर में आचार्य के साथ अन्य चारित्रात्माओं के फोटो न लगाने, जुलूस में किसी भी प्रकार के बैण्ड-बाजे का प्रयोग न करने की प्रेरणा भी श्रावक समाज को प्रदान की।
मुम्बई में दीक्षा समारोह तो औरंगाबाद में आगामी अक्षय तृतीया करने की हुई घोषणा
आचार्यश्री ने वर्ष 2023 के चतुर्मास के दौरान दीक्षा समारोह आयोजित करने की घोषणा करते हुए उस दीक्षा समारोह में मुमुक्षु अंकिता, मुमुक्षु संजना, मुमुक्षु आयुषी व मुमुक्षु समता को समण श्रेणी, समणी विनीतप्रज्ञाजी और समणी जगतप्रज्ञाजी को श्रेणी आरोहण करते हुए साध्वी दीक्षा व मुमुक्षु विपुल जैन को मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की। आचार्यश्री की इस घोषणा से पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। घोषणा के उपरान्त आचार्यश्री ने मुम्बई चतुर्मास के लिए 28 जून 2023 को प्रातः 9.09 मिनट पर चातुर्मासिक प्रवेश करने तथा चतुर्मास सम्पन्न कर 28 नवम्बर 2023 को प्रातः लगभग 10.25 बजे प्रस्थान करने की घोषणा की। तदुपरान्त आचार्यश्री ने वर्ष 2024 की अक्षय तृतीया का कार्यक्रम औरंगाबाद में करने की भी घोषणा की।
159वें मर्यादा महोत्सव पर स्वरचित गीत का आचार्यश्री ने किया संगान
बायतू में आयोजित हो रहे 159वें मर्यादा महोत्सव के अंतिम दिन आचार्यश्री ने अपने मंगल उद्बोधन के दौरान स्वरचित गीत ‘जैन शासन का सुखद साया हमें मिलता रहे’ गीत का संगान किया। उनके साथ मुख्यमुनिश्री ने भी उस गीत को भी गाया। गुरुमुख से गीत का श्रवण पूरे चतुर्विध धर्मसंघ ने तन्मयतापूर्वक श्रवण किया।
दिखा अद्भुत नजारा, चारित्रात्माओं ने लेखपत्र, श्रावकों ने श्रावक निष्ठा पत्र के संकल्पों को दोहराया
प्रवचन पण्डाल में एक ओर संतवृंद, दूसरी ओर साध्वीवृंद और मध्य में समणीवृंद पंक्तिबद्ध हुए एक अद्भुत दृश्य उपस्थित हो गया। 46 संत, 85 साध्वियां तथा 41 समणियों की पंक्ति को जनमेदिनी भावविभोर रूप में निहार रही थी। आचार्यश्री की अनुज्ञा प्राप्त होते ही पंक्तिबद्ध चारित्रात्माओं ने लेखपत्र का उच्चारण किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित विशाल श्रावक-श्राविकाओं को अभिप्रेरित करते हुए श्रावक निष्ठा पत्र के संकल्पों को दोहराने का अह्वान किया तो सम्पूर्ण श्रावक समाज ने भी अपने स्थान पर खड़े होकर गुरुमुख से उच्चरित निष्ठा पत्र को दोहराया और संकल्पित बने।
आरम्भ हुई चतुर्मास/विहार/केन्द्र की घोषणा तो भारत सहित विदेशी धरा को मिला गुरु प्रसाद
तेरापंथ धर्मसंघ के एक गुरु और एक विधान का नजारा देखना हो तो मर्यादा महोत्सव के अंतिम व मुख्य दिन को देखा जा सकता है। जब आचार्यश्री ने तेरापंथ धर्मसंघ के चारित्रात्माओं के आगामी चतुर्मास/विहार व समणीकेन्द्र की घोषणा की भारत की भूमि ही नहीं, विदेशी धरा को भी गुरुकृपा से लाभान्वित हुई। सिवांची-मालाणी क्षेत्र के बाड़मेर, जसोल, असाढ़ा, बालोतरा, टापरा, फलसूण्ड-केशुम्बला आदि लगभग प्रायः प्रत्येक गांव को चारित्रात्माओं का चतुर्मास प्राप्त हो गया। इसके अलावा भारत के सभी दिशाओं, मध्यवर्ती क्षेत्रों आदि के अनेकानेक क्षेत्रों को चारित्रात्मओं के चतुर्मास व विहरण क्षेत्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके साथ मायामी, ह्यूस्टन, न्यूजर्सी, ओरलेण्डो और लंदन को समणीकेन्द्र के रूप में गुरुकृपा प्राप्त हुई।
कार्यक्रम के अंत में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पट्ट से नीचे उतरे तो चतुर्विध धर्मसंघ अपने स्थान पर खड़ा हो गया। आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने संघगान किया। आचार्यश्री ने बायतू में आयोजित 159वें मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रम की सम्पन्नता की घोषणा की। इस प्रकार संघ प्रभावक 159वां मर्यादा महोत्सव सम्पन्न हो गया। इस अवसर की साक्षी बने हजारों-हजारों नेत्र स्वयं को सौभाग्यशाली मान रहे थे।