- फलसूण्डवासियों को आचार्यश्री ने बहुश्रुत की पर्युपासना की बताई महिमा
- मुख्यमुनिश्री ने अपनी जन्मभूमि पर अपने गुरु के अभिनंदन में दी भावनाओं को अभिव्यक्तिसाध्वीप्रमुखाजी व साध्वीवर्याजी ने भी फलसूंडवासियों को किया उद्बोधित
18.01.2023, बुधवार, फलसूण्ड, जैसलमेर (राजस्थान)। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के फलसूंड प्रवास का द्वितीय दिवस। आचार्यश्री के प्रवास से गांव में दो दिनों से मानों उत्सव का माहौल है। अपने गांव के लाडले मुनिश्री महावीर का मुख्यमुनि रूप में प्रथम पदार्पण वही साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी एवं साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी का भी पद नियुक्ति के बाद क्षेत्र में प्रथम बार पदार्पण से क्षेत्रवासियों में अतिशय उल्लास छाया हुआ है। प्रातः मुख्यमुनि की संसारपक्षीय जन्मस्थली श्री सवाईचंद जी कोचर के निवास से आचार्यश्री प्रस्थित हुए मुख्य चैक से प्रारंभ हुए जुलूस के साथ आचार्यश्री का नवनिर्मित तेरापंथ भवन में पदार्पण हुआ। चारों को गुंजायमान होते जयघोषों से ऐसा प्रतीत हो रहा था की छत्तीस ही कौम आज शांतिदूत के स्वागत में पलक पांवड़े बिछा कर स्वागत कर रहे थे। इस अवसर पर आचार्यश्री के सान्निध्य में नवनिर्मित आचार्य महाप्रज्ञ मार्ग एवं अहिंसा सर्किल का उद्घाटन किया गया। महासभा द्वारा भवन परियोजना के तहत यह प्रथम तेरापंथ भवन फलसूंड में निर्मित हुआ है। आचार्यप्रवर के मंगलपाठ से भवन का उद्घाटन हुआ।
आचार्यश्री ने अपने पावन प्रवचन में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि श्रमणधर्म अमूल्य संपदा है। इससे वर्तमान जन्म का ही नहीं, अपितु परलोक का भी हित हो सकता है। श्रमण अवस्था में ही प्राणी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इसके लिए आदमी को बहुश्रुत की पर्युपासना करने का प्रयास करना चाहिए। बहुश्रुत का निमित्त प्राप्त होता है तो किसी के भीतर भी श्रमणत्व के भाव जागृत हो सकते हैं। आचार्यश्री ने परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के ज्ञानात्मक चेतना, वैदुष्य का वर्णन करते हुए लोगों को बहुश्रुत की पर्युपासना करने को अभिप्रेरित किया।
आचार्यश्री ने साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी और मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी के संदर्भ में वर्णन करते हुए कहा कि मुख्यमुनि आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा दीक्षित हुए। बालक रूप में आए और अब युवा हैं और मुख्यमुनि भी हैं। फलसूण्ड के लिए यह गौरव की बात है कि कम उम्र ही यहां के मुख्यमुनि संघ में ऊपर आ गए। अपने ढंग से सेवाएं भी दे रहे हैं। वाचन, पठन-पाठन और चिंतन का क्रम भी चलता है। इनके माता-पिता और गांव का भी योगदान माना जा सकता है। मुख्यमुनिश्री स्वयं का निरंतर विकास करते रहें।
साध्वीप्रमुखाजी ने मुख्यमुनिश्री के गांव में उद्बोधन प्रदान करते हुए मुख्यमुनिश्री के विभिन्न पहलुओं को वर्णित किया। साध्वीवर्याजी ने भी अपना उद्बोधन दिया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने अपनी जन्मभूमि में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आज यहां परम पूज्य गुरुदेव का मानों तेरापंथ के गणेश के रूप में पदार्पण हुआ है। मैं इस धरा पर अपने आराध्य गुरुदेव का हार्दि स्वागत करता हूं।
आचार्यश्री के स्वागत में मुमक्षु प्रेक्षा कोचर, स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री स्वरूपचंद तातेड़, श्री हीराचंद मालू, श्री संतोष तातेड़, सरपंच श्री रतनसिंह जोधा, ज्ञानशाला के संयोजक श्री कमलेश कोचर ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथी सभा व युवक परिषद के सदस्यों ने सुयंक्त रूप से, तेरापंथ महिला मण्डल व कोचर परिवार के सदस्यों ने अपने-अपने गीतों का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
संयम पथ पर बढ़ने की मिली स्वीकृति
कार्यक्रम में आचार्यश्री ने महती कृपा कर फलसूंड के श्री सुरेन्द्र कोचर एवं सुश्री रुचिका कोचर को मुमुक्षु साधना करने की स्वीकृति प्रदान की। ज्ञातव्य है की दोनों ही मुख्यमुनि श्री महावीर कुमार जी के संसारपक्षीय परिवार से संबद्ध है।
कल केसुंबला में पदार्पण, क्षेत्र के दो बालमुनि भी आचार्यश्री के साथ
कल पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी का एक दिवसीय प्रवास हेतु केसुंबला पदार्पण होगा। ज्ञातव्य है की बालमुनि ऋषि कुमार (15 वर्षीय) एवं मुनि रत्नेश कुमार (17 वर्षीय) दोनों सगे भाई जो यात्रा में आचार्यश्री के साथ है वह इसी क्षेत्र से है। केसुंबला निवासी गीदम, छत्तीसगढ़ प्रवासी श्री तेजराज प्रकाश जी बुरड़ के परिवार से दीक्षित दोनों सगे भाई आचार्यश्री के साथ ही यात्रा में हैं।
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