वर्धमान महोत्सव सुसम्पन्न कर गतिमान हुए ज्योतिचरण का पचपदरा की धरा पर भव्य अभिनंदन
युगप्रधान आचार्यश्री ने आत्मकल्याण की दिशा में गति करने की दी पावन प्रेरणा
पचपदरावासियों ने गुरु के अभिनंदन में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
12.01.2023, गुरुवार, पचपदरा, बाड़मेर (राजस्थान)। बालोतरा में चार दिवसीय संघ प्रभावक प्रवास के दौरान वर्ष 2023 का वर्धमान महोत्सव सुसम्पन्न कर गुरुवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बालोतरा से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया। चार दिनों तक अपने आराध्य के निकट सेवा, दर्शन और मंगल प्रवचन श्रवण से अपने जीवन को धन्य बनाने वाले बालोतरावासी अपने आराध्य के प्रति अपने कृतज्ञ भावों को अभिव्यक्त कर रहे थे। जन-जन पर आशीषवृष्टि करते हुए जनकल्याण के महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी विहार मार्ग पर बढ़ चले। मार्ग में अनेक स्थानों पर लोगों पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री पचपदरा की गतिमान थे।
एक ओर उत्तर भारत ही नहीं, बल्कि राजस्थान के कुछ हिस्से कड़ाके की ठंड से बेहाल हैं, वहीं इन क्षेत्रों में सर्दी नाममात्र की महसूस हो रही है। सूर्योदय के कुछ समय बाद तो सूर्य किरणें लोगों के पसीने निकाल रही हैं। ऐसे में भी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी मानवता के कल्याण के लिए बढ़ते जा रहे थे। अपने आराध्य का अपने आंगन में स्वागत को उत्सुक, उत्साहित और उल्लसित पचपदरावासी रास्ते में ही गुरुचरणों में पहुंच रहे थे। आचार्यश्री पचपदरा के निकट पधारे तो सुबह से ही प्रतिक्षारत श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। श्रद्धा भावों से ओतप्रोत श्रद्धालु बुलंद जयघोष करते हुए विशाल जुलूस के रूप में अपने आराध्य की अगवानी में करते हुए चल पड़े। पचपदरा के अनेक स्थानों पर स्कूली बच्चों, ग्रामीण जनता तथा अन्य श्रद्धालुओं पर अपने दोनों करकमलों से आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री जब तक आज के प्रवास स्थल श्री ओसवाल भवन में पधारे तब तक दोपहर के साढ़े बारह बज गए थे, फिर भी आचार्यश्री के चेहरे की सौम्यता प्रस्फुरित हो रही थी।
13 किलोमीटर के विहार और लगातार चार घण्टे से अधिक का समय जनोद्धार में लगाने के बावजूद भी आचार्यश्री अल्प समय पश्चात ही इसी भवन परिसर में बने अर्हम समवसरण में पावन पाथेय प्रदान करने को पधार गए। आचार्यश्री ने उपस्थित जनमेदिनी को अपनी अमृतवाणी से पावन अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में आत्मा का बहुत महत्त्व बताया गया है। आत्मा और शरीर अलग-अलग होते हैं, यह सिद्धांत आस्तिकवाद और आत्मा और शरीर एक ही होता है, यह सिद्धांत नास्तिकवाद का है। आत्मा और शरीर का अलग होना ही अध्यात्म जगत का आधारभूत तत्त्व है। आत्मा अमूर्त है, शरीर मूर्त है। आत्मा चैतन्य है और शरीर स्थूल रूप मात्र है। एक जन्म के बाद शरीर छूट जाता है, जबकि आत्मा आगे की गति में प्रस्थान करती है। आत्मा शाश्वत है, इसलिए आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। आत्मकल्याण के लिए आदमी को लोभ की प्रवृत्ति से बचते हुए स्वयं के अकेलेपन की अनुप्रेक्षा करे तो आदमी आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
आचार्यश्री ने पचपदरा आगमन के संदर्भ में कहा कि आज पचपदरा आना हुआ है। यहां पहले भी कई बार आना हुआ है। यहां से अनेक चारित्रात्माएं हमारे धर्मसंघ में साधना कर रहे हैं। यहां के लोगों का अच्छा धार्मिक-आध्यात्मिक विकास होता रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।
आचार्यश्री के स्वागत में अपनी जन्मभूमि से संबद्ध मुनि ध्रुवकुमारजी, समणी अमलप्रज्ञाजी, साध्वी जगतयशाजी, साध्वी चेतनप्रभाजी, समणी सुमनप्रज्ञाजी, समणी प्रवणप्रज्ञाजी आदि ने अपनी-अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति अथवा गीत के माध्यम से अपने भावसुमन अर्पित किए। पचपरा से संबद्ध साध्वियों, समणियों व मुमुक्षु तथा तेरापंथी सभा व तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों द्वारा पृथक्-पृथक् सामूहिक गीत का संगान हुआ। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री इन्द्रमल चोपड़ा, ओसवाल समाज के श्री महेन्द्र कुमार चोपड़ा, स्थानीय महिला मण्डल अध्यक्ष श्रीमती विजयादेवी चोपड़ा, कन्या मण्डल संयोजिका रूपेन्दू ढेलड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने समुपस्थित विद्यार्थियों को आशीष प्रदान करते हुए सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार कराया।