- स्वागत में उमड़ा समस्त क्षेत्र, समदड़ी में लगा आस्था, उल्लास का जमघट
- भव्य स्वागत जुलूस के मध्य लगभग आचार्यश्री ने किया लगभग 14 कि.मी. का विहार
- कर्म के साथ जुड़े धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण
- उत्साहित समदड़ीवासियों ने अपने आराध्य के स्वागत में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
29.12.2022, गुरुवार, समदड़ी, बाड़मेर (राजस्थान) । जन-जन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जागते, जन-जन के मानस को पावन बनाते और उनके श्रद्धाभावों को स्वीकार कर उन्हें अपने दर्शन और अशीर्वाद से लाभान्वित करते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गुरुवार को सिवांची-मालाणी क्षेत्र के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले समदड़ी में पधारे। इस मौके पर अपने आराध्य के अभिनंदन में समदड़ी की जनता ही नहीं, पूरा सिवांची-मालाणी क्षेत्र उमड़ पड़ा। समदड़ी के सड़कों पर और गलियों में आस्था, उल्लास, उत्साह और आनंद का जमघट-सा लगा हुआ था। पूरा वातावरण आध्यात्मिक आलोक से जगमगा रहा था। बुलंद जयघोष के माध्यम से लोग अपने आंतरिक भावों को अभिव्यक्त कर रहे थे।
गुरुवार को प्रातः की मंगल बेला में आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल प्रस्थान से पूर्व ही अजीत गांव में उत्साही श्रद्धालुओं का समूह उपस्थित हो गया था। अजीत गांववासियों पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर प्रस्थित हुए तो श्रद्धालुजन भी अपने आराध्य के साथ चल पड़े। मार्ग में अनेक गांव के ग्रामीण आचार्यश्री की अभ्यर्थना के लिए प्रतीक्षारत थे। आचार्यश्री के मंगल आशीष से वे भी लाभान्वित बने। सिवांची-मालाणी क्षेत्र का प्रवेश द्वारा कहे जाने वाले समदड़ी की ओर जैसे-जैसे आचार्यश्री बढ़ते जा रहे थे, श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। आचार्यश्री जैसे ही समदड़ी की सीमा में पधारे तो हजारों श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भव्य अभिनंदन किया। गूंजते जयनिनादों और भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री समदड़ीवासियों पर आशीषवृष्टि करते हुए तेरापंथ भवन में पधारे।
लम्बा विहार और जन-जन को आशीर्वाद प्रदान करने में आचार्यश्री को प्रवास स्थल तक पहुंचने में दोपहर का समय हो गया था, किन्तु कुछ ही समय में आचार्यश्री प्रवचन पण्डाल में पधारे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को उत्प्रेरित किया।
आचार्यश्री ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। उन वृत्तियों में दुरवृत्ति है- लोभ। अहंकार, माया, गुस्सा आदि न भी आए तो भी लोभ बना रहता है। लोभ को सभी पापों का बाप कहा गया है। लोभी आदमी हिंसा भी कर सकता है, झूठ भी बोल सकता है आदि अन्य अनैतिक कार्य और अपराध भी कर सकता है। धार्मिक साधना में लोभ को प्रतनु बनाने या उसे क्षीण करने का प्रयत्न होता है। आदमी को उपासनात्मक धर्म के साथ आचरणात्मक धर्म को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। चोरी नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, किसी की हत्या नहीं करना का संकल्प तो आचरण भी धर्म से युक्त हो सकता है। गलत कार्यों से बचने का प्रयास हो तो व्यक्ति का आचरणात्मक धर्म पुष्ट हो सकता है। आचार्यश्री ने संस्थाओं को भी लोभ से बचने की प्रेरणा प्रदान की।
आचार्यश्री ने समदड़ी आगमन के संदर्भ मंे कहा कि आज यहां आना हुआ है। यहां पहले भी अनेक बार आना हुआ है। समदड़ी का तेरापंथ धर्मसंघ में सिर है। यहां से अनेक चारित्रात्माएं धर्मसंघ में साधनारत हैं। वे धर्म की खूब अच्छी प्रभावना करती रहें।
आचार्यश्री के स्वागत में अपनी जन्मभूमि पर साध्वी प्रांजलप्रभाजी, साध्वी उन्नतयशाजी, समणी भावितप्रज्ञाजी व समणी रोहिणीप्रज्ञाजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथी सभाध्यक्ष श्री घिसूलाल जीरावला, मूर्तिपूजक समाज के अध्यक्ष श्री भूपतराज कांठेड़, श्री जैन संघ की ओर से श्री गणपत मेहता व सिवांची-मालाणी क्षेत्र की ओर से श्री डूंगरचंद सालेचा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल, सम्पूर्ण सिवांची-मालाणी क्षेत्र के श्रद्धालुओं ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। अणुविभा के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर आदि ने अणुव्रत अमृत महोत्सव के संदर्भ में कैलेण्डर का लोकार्पण पूज्यचरणों में किया।