- आचार्यश्री ने गृहस्थों को भी मोक्ष प्राप्ति का बताया सुगम मार्ग
- श्रावक कार्यकर्ता बनने की आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
05.08.2022, शुक्रवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मभूमि छापर में तेरापंथ के ग्यारहवें पट्टधर, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, अखण्ड परिव्राजक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2022 का चतुर्मास कर रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में धर्म, ध्यान और ज्ञान की मानों त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है। प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व ही गुरु सन्निधि में पहुंचने वाले श्रद्धालु अपने आराध्य के सम्मुख ध्यान, जप आदि के प्रयोग करते हैं तो वहीं प्रवास स्थल के सामने ही बने भव्य प्रवचन पंडाल में उपस्थित होकर श्रीमुख से प्रतिदिन प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा में डुबकी लगाते हैं तथा संतों की सेवा, उपासना, गोचरी-पानी के द्वारा धर्मार्जन कर रहे हैं। इस प्रकार छापर की धरा पर आध्यात्मिक त्रिवेणी अविरल रूप में प्रवाहित हो रही है।
शुक्रवार को प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने भगवती सूत्र के आधार पर मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया कि एकान्त बाल मनुष्य चारों गतियों में जा सकता है? उत्तर दिया गया कि हां, एकान्त बाल मनुष्य चारों गतियों में जा सकता है। यहां एकान्त बाल मनुष्य का अर्थ कि प्रथम चार गुणस्थान वाला वह मनुष्य जिसमें मिथ्यात्वी और सम्यक्त्वी भी होते हैं। अविरत संयमी देवगति में भी जा सकते हैं तो असंयम की अवस्था में नरक, तिर्यंच अथवा मनुष्य के रूप में भी जा सकते हैं। पुनः प्रश्न किया गया कि एकान्त पंडित मनुष्य भी क्या चारों गतियों में जा सकता है? उत्तर दिया गया कि एकान्त पंडित मनुष्य अर्थात् वह साधु जिसमें त्याग हो विरति हो संयम हो वह नरक, तिर्यंच और मनुष्य गति में नहीं, एकान्त देवगति को प्राप्त करता हे। इसी प्रकार बाल पंडित अर्थात् श्रावक आयुष्य बंध करता है तो वह भी देवगति को प्राप्त कर सकता है।
श्रावक बाल पंडित होते हैं। मन में यह भावना भी होनी चाहिए कि वह दिन कब आए कि मैं भी अनगार बन जाऊं। साधु न भी बन पाएं तो जीवन में जितना त्याग, प्रत्याख्यान हो सके, करने का प्रयास करना चाहिए। बारहव्रती बने और उससे आगे के लिए सुमंगल साधना करने का प्रयास करें, ताकि आत्मा मोक्ष की दिशा में अग्रसर हो सके।
आचार्यश्री ने श्रावकों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि वित्त (धन) और वृत्त (चारित्र) दो शब्द होते हैं। आदमी धन की जितनी यत्नापूर्वक सुरक्षा करता है, उसके बदले आदमी अपने चारित्र की प्रयत्नपूर्वक सुरक्षा करे। धन तो आता-जाता रहता है, किन्तु चरित्र अच्छा बनाने का प्रयास होना चाहिए। श्रावकत्व जीवन में रहे, इसका प्रयास होना चाहिए। आदमी कभी पद पर रहे न रहे, किन्तु जीवन भर श्रावक अवश्य रह सकता है। मात्र कार्यकर्ता ही नहीं, श्रावक कार्यकर्ता बनने का प्रयास करना चाहिए। संस्था में किसी पद स्थित हो गए और श्रावकत्व नहीं है, तो फिर कमी की बात हो सकती है। कोरा कार्यकर्ता होना ही अच्छी बात नहीं, श्रावक कार्यकर्ता बनने का प्रयास होना चाहिए। नशामुक्त जीवन हो, जीवन में त्याग हो, धर्म-साधना का क्रम भी चलता रहे तो अच्छी बात हो सकती है। वर्तमान जीवन अच्छा होने के साथ-साथ आत्मा मोक्ष की ओर भी गति कर सकती है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मभूमि पर नवाचार्य तुलसी द्वारा रचित ‘कालूयशोविलास’ का सुमधुर संगान और आख्यान के क्रम को आगे बढ़ाते हुए उनके आचार्यकाल व उनके व्यक्तित्व आदि रोचक ढंग से वर्णन किया।