वीवी पुरम। श्री आदिनाथ जैन श्वेतांबर संघ, चिकपेट के तत्वावधान में श्री संभवनाथ जैन मंदिर दादावाडी (वी.वी.पुरम्) के प्रांगण में हृदयस्पर्शी प्रवचनकार आचार्य श्री अरविंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने श्री वीरभद्राचार्य द्वारा रचित आतुर प्रत्याख्यान ग्रंथ की विवेचना का शुभारम्भ करते हुए प्रथम श्लोक के बारे में फ़रमाया की मृत्यु को महोत्सव कैसे बनाया जाए। मनुष्य सब प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, कुदरत की दी हुई बुद्धि, विवेक, समझ यथेष्ठ है। जब से जन्म लिया है सुनता आया है कि संसार नश्वर है। हमारा जीवन भी क्षणभंगुर है। मृत्यु एक ऐसा शब्द जिसे टाला नही जा सकता, जिसके बारे में कोई सोचना नही चाहता, जिसके विचार से ही मन भयभीत हो जाता है। मनुष्य मृत्यु को महोत्सव बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता हैं। विवेक, बुद्धि सब लुप्त हो जाती हैं।
वास्तविकता से ऑंख मूँदने की यह प्रवृति क्यों? आतुर प्रत्याख्यान ग्रंथ के प्रथम श्लोक में बाल पंडित मरण की बात कही गयी है। मृत्यु का दर्शन परम मंगल है स्वयं के जीवन में आनेवाली घटना हेतु सदा जागरूक होकर जीना है। इसका प्रतिबोध जीवन में आवश्यक है। इससे पूर्व में गणिवर्य श्री हीरपद्मसागर जी महाराज साहब जिनके जोग की क्रिया का आज 204 वाँ अंतिम दिवस है।
उन्होंने अवधूत योगी आचार्य श्री बुद्धिसागर जी द्वारा रचित अध्यात्म गीता के बारे में फ़रमाया की स्वयं की साधना से दर्शन की ऊँचाइयों से जन-जन पथ आलोकित किया। आत्मशुद्धि को महत्व देते हुए आत्मोत्थान हेतु मात्र संयम पर्याय के 25 वर्षों की अवधी में 125 से अधिक ग्रंथों को रच दिया। अध्यात्म गीता ग्रंथ का हर अक्षर हर क़दम स्व व परहित का उत्थान हेतु है।
आचार्य बुद्धीसागर जी की काया की स्थिरता इतनी थी की जब वे ध्यान करने बैठते उनका शरीर धरती से चार अंगुल ऊपर उठा रहता था। संसार में तीन प्रकार के योगी है – एक जो योग प्राप्ति करने वाले, दूसरे जो योगों को साधकर निष्ठा प्रकट करने वाले, तीसरे जो बाहरी दुनिया स्व अनभिज्ञ अपने अतिंद्रिय ज्ञान साधना से अपना जीवन शांति के किए समर्पित करने वाले। ऐसे योगनिष्ठ गुरु में ग़ज़ब की शक्ती होती है, जिनका सारा पुरुषार्थ बल और शक्ती केवल आत्मशुद्धि के लिए होती है।
प्रवचन का प्रारम्भ आचार्य भगवंत के मुख़ारविंद से गुरु स्तुति से हुआ। ज्ञान की पूजा के पश्चात गुरु पूजन किया गया एवं लाभार्थी परिवार द्वारा आतुर प्रत्याख्यान ग्रंथ एवं अध्यात्म गीता ग्रंथ गुरु चरणों में भेंट किया गया।
आज प्रातकाल की मंगलबेला में सामूहिक संतिकरं तप आचार्य भगवंत की निश्रा में प्रारम्भ हुआ तप का अनुष्ठान-अभिषेक साथ में आचार्य श्री द्वारा मंत्रोच्चार की मंगल ध्वनि से हर्षोल्लास का वातावरण हुआ। आराधना में संभागी तपस्वी ध्यान मुद्रा में लीन क्रिया संपन की एवं आचार्य भगवंत ने लगभग 300 तपस्वी श्रावक-श्राविकाओं को वासक्षेप डालते हुए उनके निर्विघ्न तप की मंगलकामना की। ज्ञातव्य है की एक दिन पहले आदिनाथ दादा के दरबार चिकपेट में लगभग 90 तपस्वियों ने श्रेणीतप आराधना के आचार्य श्री द्वारा प्रत्याख्यान लिए।
मृत्यु का दर्शन परम मंगल है, आनेवाली घटना हेतु सदा जागरूक होकर जिएं – आचार्य श्री अरविंदसागरसूरीश्वरजी
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