- दो संघ प्रमुखों के मिलन का गवाह बना रतनगढ़ का गोल्छा विद्या मंदिर
- दो दिवसीय प्रवास के लिए रतनगढ़ की धरा पर महातपस्वी महाश्रमण ने किया मंगल प्रवेश
- स्थानीय विधायक, पूर्व विधायक सहित कई गणमान्य रहे उपस्थित
- कामनाओं का त्याग कर संतोष को करें धारण: शांतिदूत आचार्य महाश्रमण
- आचार्यश्री की सन्निधि में उपस्थित होने से हो जाता हूं रिचार्ज: संघ प्रमुख मोहन भागवत
03.07.2022, रविवार, रतनगढ़, चूरू (राजस्थान) । वर्ष 2022 के छापर चातुर्मासिक प्रवेश के लिए निरंतर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी श्वेत सेना के साथ रविवार को रतनगढ़ की धरा पर पधारे तो ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर रतनगढ़वासी निहाल हो उठे। रतनगढ़ का जन-जन शांतिदूत के स्वागत में उमड़ पड़ा। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री रतनगढ़ स्थित गोल्छा ज्ञान मंदिर में पधारे। कुछ समय पश्चात ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत भी महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पहुंच गए। रतनगढ़ की धरा पर दो संघप्रमुखों का मिलना मानों रतनगढ़वासियों की उत्साह और उल्लास और अधिक वृद्धिंगत करने वाला था। आरएसएस प्रमुख ने पहुंचते ही आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
प्रवास स्थल परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में आचार्यश्री के साथ सरसंघचालक मोहनराव भागवत की उपस्थित थे। आचार्यश्री के नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम का मंगल शुभारम्भ हुआ। रतनगढ़ तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया। स्थानीय तेरापंथी सभा की ओर से श्री कमल बैद, प्रवास व्यवस्था समिति-रतनगढ़ के अध्यक्ष श्री जोधराज बैद व स्वागताध्यक्ष श्री तुलसी दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। उपस्थित जनता को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उत्प्रेरित किया।
तदुपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि इच्छा इतनी बड़ी है कि वह आकाश की तरह अनंत हो सकती है। यदि किसी को सोने का पर्वत भी प्राप्त हो जाए तो उसे संतोष की प्राप्ति नहीं हो सकती। इच्छा, कामना और लोभ की भावना जितनी प्रबल होती है, आदमी उतना ही दुःखी बन जाता है। आदमी को अपनी कामनाओं व इच्छाओं को कम करने का प्रयास करना चाहिए। इच्छाएं जितनी कम होती जाएंगी, दुःख उतना कम होता जाएगा। आदमी को कामनाओं का त्याग कर संतोष को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष को धारण करने से परम सुख की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्यश्री ने रतनगढ़ आगमन के संदर्भ में कहा कि आज रतनगढ़ में आना हुआ है। भीलवाड़ा के बाद आज रतनगढ़ में आरएसएस के सरसंघचालक मोहनजी भागवत का भी आना हुआ है। ज्ञानी, मनीषी लोगों का आना बहुत अच्छी बात होती है। आप तो प्रायः हर साल आते ही हैं। रतनगढ़ में भागवतजी का आना हुआ है तो भागवतजी की भी खूब आध्यात्मिक-धार्मिक सेवाएं चलती रहें, चित्त प्रसन्न रहे, स्वयं की साधना भी होती रहे और दूसरों को भी अच्छी प्रेरणा देते रहें।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन का श्रवण और शुभाशीष प्राप्त कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के समक्ष ज्ञान की बातें करने की धृष्टता तो मैं नहीं कर सकता हूं। मैं तो आचार्यश्री की वाणी से ही प्रेरणा लेता हूं और उसके अंश को ही लोगों के बीच बताने का प्रयास करता हूं। आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवचन व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्र के लिए ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व के लिए शाश्वत है। तेरापंथ धर्मसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में अनुशासन की एकरूपता है। मैं आप जैसे देश के अन्य संतों की सन्निधि में रिचार्ज होने के लिए पहुंचता हूं। आपश्री से हमें सदैव प्रेरणा मिलती रहे।
कार्यक्रम में डॉ. सरिता शर्मा के निर्देशन में डॉ रश्मि बैद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडेगवार पर अपनी शोध पुस्तक को संघप्रमुख व आचार्यश्री के चरणों उपहृत कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
कार्यक्रम के बाद आचार्यश्री व सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के मध्य वार्तालाप का भी क्रम रहा। आचार्यश्री से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर श्री भागवत अपने गंतव्य को रवाना हुए। आचार्यश्री के स्वागत में रतनगढ़ के वर्तमान विधायक श्री अभिनेष महर्षि, पूर्व विधायक श्री राजकुमार रिणवा सहित अनेकानेक गणमान्य उपस्थित थे।