- बरसते मेघों में भी गतिमान रहे ज्योतिचरण, 14 किलोमीटर का किया विहार
- रतनगढ़ के औद्योगिक क्षेत्र रिक्को में आध्यात्मिक गुरु का मंगल पदार्पण
02.07.2022, शनिवार, रिक्को औद्योगिक क्षेत्र, रतनगढ़, चूरू (राजस्थान) : राजलदेसर में दो दिवसीय मंगल प्रवास के दौरान श्रद्धालुओं को आध्यात्मिकता से भावित बना जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मानवता के कल्याण के लिए अगले गंतव्य की ओर प्रस्थित हुए तो राजलदेसरवासियों ने अपने राष्ट्रसंत के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित कर शुभाशीष प्राप्त किया। शनिवार को प्रातः से ही आसमान में बादल छाए हुए थे। विहार के प्रारम्भ में बरसात तो नहीं हो रही थी, लेकिन विहार के कुछ समय बाद ही आसमान में छाए मेघों ने वर्षा प्रारम्भ कर दी। कई दिनों से तप रही रेतीली धरती को ही नहीं, बल्कि किसानों व लोगों को भी राहत प्रदान करने वाली थी। परकल्याण को समर्पित महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण हो रही बरसात में भी निरंतर गतिमान थे। उनके चरणयुगल को न तो तीव्र धूप को आतप रोक पाने का सक्षम हुआ और न ही बरसते मेघों ने। समता के साधक आचार्यश्री महाश्रमण कभी तीव्र तो कभी रिमझिम रूप में हो रही बरसात के बीच लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर रतनगढ़ के रिक्को औद्योगिक क्षेत्र में स्थित मरूधर टेक्सटाइल के परिसर में पधारे। बरसते मेघों में भी श्रद्धालुजन आचार्यश्री के स्वागतार्थ खड़े थे। आचार्यश्री ने सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
परिसर में बने हॉल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि क्षमा रूपी धर्म को धारण करने का प्रयास होना चाहिए। क्षमा ऐसा धर्म है, जो सबके लिए कल्याणकारी है। एक श्लोक में क्षमा धर्म को प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि मेरा सबके साथ मैत्री का भाव है, किसी से वैर नहीं है, सबको मैं क्षमा करता हूं और सभी जीव मुझे क्षमा करें। यह श्लोक या इसका भावार्थ एक बार भी उच्चरित हो जाए तो क्षमा धर्म को धारण किया जा सकता है।
क्षमा का अर्थ है – सहिष्णुता। आदमी के जीवन में कभी शारीरिक, कभी मानसिक, कभी वाचिक, कभी वैचारिक प्रतिकूल परिस्थितियां किसी द्वारा पैदा की जा सकती हैं, किन्तु ऐसी परिस्थितियों में भी जो शांत रह जाए, प्रतिकूलता को सहन कर ले, क्षमता होने के बाद भी सहन कर लेना उत्तम बात होती है। जिस आदमी के हाथ में क्षमा रूपी खड्ग हो भला उसका दुर्जन आदमी क्या बिगाड़ सकता है। दुनिया में सज्जन और दुर्जन दोनों प्रकार के लोग होते हैं। इनकी पहचान के लिए तीन प्रकार बताए गए हैं।
दुर्जन के पास विद्या हो तो वह उसके द्वारा समस्या पैदा करता है, विवाद को बढ़ावा देता है, वहीं सज्जन के पास विद्या है तो वह विवादों को सुलझाने में, किसी को उचित ज्ञान देने में उपयोग होती है। दुर्जन के पास धन हो जाए तो उसके भीतर अंहकार पैदा करने वाला बन जाता है, जबकि सज्जन का धन दान के लिए होता है। दुर्जन के पास शक्ति हो तो वह किसी को प्रताड़ित करता है, कष्ट पहुंचाता है और सज्जन की शक्ति किसी को शांति पहुंचाने, किसी की पवित्र सेवा के लिए होती है। इस प्रकार सज्जन की विद्या, धन और शक्ति सत्कार्यों में तथा दुर्जन की विद्या, धन और शक्ति असत्कार्यों में लगती है। आदमी को स्वयं के भीतर सज्जनता का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। सहिष्णुता रूपी को धर्म को धारण करने का प्रयास करना चाहिए।
अपने औद्योगिक प्रतिष्ठान में आचार्यश्री के पदार्पण से हर्षित बैद परिवार की ओर से श्री सुरेन्द्र बैद ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।