नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पाक्सो के तहत दर्ज मामले में इस आधार पर आरोपित को जमानत नहीं दी जा सकती है कि उसके और पीड़िता के बीच प्रेम संबंध थे और शादी से इन्कार करने पर केस दर्ज कराया गया है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने सोमवार को उक्त टिप्पणी करते हुए झारखंड हाई कोर्ट के एकल जज की पीठ के जमानत आदेश को रद कर दिया। हाई कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो) अधिनियम, 2012 और आइपीसी के तहत दर्ज केस में आरोपित को जमानत दी थी।
पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने जमानत याचिका स्वीकार कर ही गलती की थी। इसकी वजह यह है कि धारा 164 के तहत दर्ज बयान और एफआइआर में दर्ज तथ्यों से लगता है कि पीड़िता और आरोपित के बीच प्रेम संबंध थे और आरोपित ने शादी से इन्कार किया तो यह केस दर्ज किया गया, पूरी तरह से गलत है।
पीठ ने कहा कि अदालत के सामने जो साक्ष्य पेश किए गए उससे स्पष्ट है कि जब यह अपराध हुआ, तब पीड़िता की उम्र मुश्किल से 13 साल थी। ऐसे में ‘प्रेम संबंध’ और ‘शादी से इन्कार’ जैसी बातें आरोपित को जमानत देने का आधार नहीं बनती हैं। अपीलकर्ता (पीड़ित लड़की) की उम्र और अपराध की प्रकृति एवं गंभीरता को देखते हुए इस मामले में जमानत देने का सवाल नहीं उठता। पीठ ने आरोपित से जल्द से जल्द सरेंडर करने को भी कहा।
बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि आरोपित को गिरफ्तारी के बाद से ही जमानत नहीं मिली और वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। इस पर पीठ ने निचली अदालत से कहा कि वह शीर्ष अदालत के आदेश के कापी मिलने की तारीख से छह महीने के भीतर इस मामले की सुनवाई पूरी कर ले।