- पूज्यप्रवर द्वारा साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी को ‘शासन माता’ अलंकरण
- प्रमुखाश्री के विशेष निवेदन पर आचार्यप्रवर ने दी ‘युगप्रधान’ अलंकरण स्वीकार करने की स्वीकृति
- चतुर्विध धर्मसंघ द्वारा अभिवंदनामय प्रस्तुति
- वर्चुअल रूप से भव्य समारोह के साक्षी बने देश-विदेश के हजारों श्रद्धालु
30.01.2022, रविवार, लाडनूँ, नागौर (राजस्थान)। ऐतिहासिक दिन, ऐतिहासिक सूर्योदय, ऐतिहासिक लाडनूँ, ऐतिहासिक जैन विश्व भारती और ऐतिहासिक अमृत महोत्सव। न जाने अपनी कितनी-कितनी विशेषताओं, संस्मरणों, घटनाओं से यह तेरापंथ की राजधानी लाडनूँ ऐतिहासिक बनी हुई है। ऐसी पुण्य धरा लाडनूं पर पूज्य आचार्य महाश्रमण के पावन सान्निध्य में आज साध्वीप्रमुखा अमृत महोत्सव से एक और स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया। 250 वर्षों से अधिक तेरापंथ के इतिहास में यह प्रथम अवसर है जब किसी साध्वी प्रमुखा के चयन को 50 वर्ष संपन्न हुए हैं। उम्र के आठवें दशक में 75 वर्षों से अधिक संयम पर्याय और तीन आचार्यों के काल से प्रमुखा पद पर प्रतिष्ठित होंने जैसी अनेकों विशेषताएं महाश्रमणी कनकप्रभा जी को असाधारण साध्वी प्रमुखा बनाते हैं।
जैविभा परिसर के कण-कण में मानों आज उमंग, उल्लास समाया हुआ था। समारोह में आचार्य प्रवर ने साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी को ‘शासन माता’ का अलंकरण प्रदान किया। प्रमुखा श्री ने गुरु द्वारा प्रदत्त अलकरण पत्र को मस्तक से लगाकर अहोभाव प्रकट किया। वहीं प्रमुखाश्री द्वारा सकल धर्मसंघ की ओर से ‘युगप्रधान’ अलंकरण आचार्य श्री को स्वीकार करने का निवेदन किया गया। साधु-साध्वी समुदाय भी मंच के सम्मुख प्रमुखाश्री जी की अर्जी पर मर्जी कराने के निवेदन के साथ समुपस्थित था। पूज्यवर ने महत्ती कृपा कर युगप्रधान अलंकरण स्वीकार किया। भविष्य में यथावसर, यथानुकुल अलंकरण समारोह भी आयोजित किया जाएगा।
सुधर्मा सभा के प्रांगण में एक ओर जहां अमृत महोत्सव समारोह में साधु-साध्वियों ने अभिनंदन पत्र द्वारा प्रमुखाजी का अभिनंदन किया। वहीं गुरुदेव के इंगित से मुख्य नियोजिका एवं साध्वीवर्या जी ने साधु-साध्वियों की ओर से पछेवड़ी प्रमुखाजी को ओढाई। समणीवृंद की ओर से बहुश्रुत परिषद की सदस्या साध्वी कनकश्री जी ने प्रमुखाजी को एलवान धारण कराया।
अपने उद्बोधन में अनूठा दॄश्य दिखाते हुए आचार्यवर ने पट्ट से नीचे पधार कर खड़े-खड़े आशीर्वचन प्रदान किया। आचार्यश्री ने कहा कि हमारा धर्मसंघ वि. सं. 1817 में प्रादुर्भूत हुआ। इसके जनक और प्रथम अनुशास्ता परम वन्दनीय आचार्य भिक्षु थे। एक आचार्य के नेतृृत्व में अनुशासित रूप में चलने वाला यह नन्दनवन से उपमित भैक्षव शासन आज तीसरी शताब्दी में प्रवर्धमान है। साध्वी समुदाय की सुव्यवस्था के लिए एक मुखिया साध्वी की व्यवस्था श्रीमज्जयाचार्य के द्वारा शुरू की गई। श्रीमज्जयाचार्य का यह निर्णय एक प्रकार से आचार्यों पर एक बड़ा उपकार है। हमारे धर्मसंघ में आचार्य तो सर्वोपरि होते ही हैं, उनकी तुलना में तो दूसरा कोई व्यक्ति आ नहीं सकता, परन्तु साध्वी समुदाय की दृृष्टि से साध्वियों में सर्वोपरि साध्वीप्रमुखा होती है। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी अपने साध्वीप्रमुखा कार्यकाल 50 वर्ष पूर्ण कर अब शताब्दी के उत्तरार्ध में गतिमान है। अनेक संदर्भाें में यह कहा जा सकता है कि आप एक असाधारण साध्वीप्रमुखा हैं।
पूज्य गुरूदेव ने आगे कहा- दक्षिण भारत की यात्रा करने वाली आप प्रथम साध्वीप्रमुखा हैं। कई दृष्टियों से आपने आचार्य तुलसी का मानो अनुकरण किया है। आप में वैदुष्य भी हैं। आपका जीवन परिश्रम की सौरभ से सुरभित है। अनेक विशेषताओं से संपन्न साध्वीप्रमुखा का होना हमारे धर्मसंघ के लिए एक गौरवास्पद आलेख है। आप दीर्घकाल तक हमारे धर्मसंघ के साध्वी समुदाय आदि की सेवा करती रहें। मंगलकामना।
प्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कविता के माध्यम से अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा- आज यह जो कुछ भी हो रहा है, गुरुदेव श्री तुलसी, गुरुदेव श्री महाप्रज्ञ, आचार्य श्री महाश्रमण जी का हो रहा है। गुरुदेव तो करुणा के सागर है। यह 50 वर्षों की यात्रा मैंने गुरुओं के ही बलबूते की है। मुझे आज पचास वर्ष पूर्व गंगाशहर की स्मृति हो रही है। मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि मुझे इतना बड़ा दायित्व मिलेगा। आचार्य तुलसी एक महान गुरु थे। उन्होंने व्यवस्था, प्रशासन हर चीज का मुझे प्रशिक्षण दिया। लोग कार्य करते हैं तो उन्हें गौरव होता है पर मेरा मानना है कि मैं कुछ नहीं करती, सब गुरु ही करते हैं। आज के दिन मेरी यही कामना है कि गुरुदेव की कृपा यूं ही बनी रहे और मैं अपनी साधना में आगे बढ़ती रहूं।
अमृत महोत्सव के अनुपम दृश्य दर्शकों के साथ- साथ वर्चुअल रूप से जुड़े हजारों श्रद्धालुओं के आनंद को प्रवर्धमान कर रहे थे। जैन विश्व भारती द्वारा अभिनंदन ग्रंथ ‘अमृतम्’ पूज्य चरणों में उपहृत किया गया। आचार्यप्रवर ने स्वयं पट्ट से पधार कर प्रमुखा जी को वह ग्रंथ प्रदान किया। जैविभा अध्यक्ष मनोज लुणिया, मुख्य ट्रस्टी श्री अमरचंद लुंकड़ सहित अमृतम् से जुड़े लोगों ने ग्रंथ का विमोचन किया। राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री श्री यूनुस खान सहित अनेक जनप्रतिनिधियों की इस अवसर पर गरिमामय उपस्थिति रही।
अभिव्यक्ति के क्रम में मुख्यमुनि महावीर कुमार जी, मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्ध यशा जी ने श्रद्धाभिव्यक्ति दी। मुनिवृंद एवं साध्वीवृंद, समणीवृंद, मुमुक्षु बहनों ने पृथक- पृथक रूप में गीत की प्रस्तुति दी। मुनि विमल कुमार, मुनि श्री कमल कुमार, मुनि श्री उदित कुमार, मुनि श्री मोहजीत कुमार, मुनि श्री कुमारश्रमण, मुनि श्री विजय कुमार, साध्वी श्री कल्पलता, साध्वी श्री प्रज्ञावती, साध्वी जिनप्रभा, समणी नियोजिका अमल प्रज्ञा आदि ने अभिवंदना की।
इसी कड़ी में जैविभा अध्यक्ष श्री मनोज लुणिया, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा अध्यक्ष श्री सुरेश गोयल, कल्याण परिषद से श्री के.सी. जैन, विकास परिषद से मांगीलाल सेठिया, जैविभा विश्वविद्यालय के कुलपति श्री बच्छराज दुगड, अजय चौपड़ा आदि ने भावाभिव्यक्ति दी। लाडनूँ एवं धर्मसंघ की अनेक संस्थाओं ने भी प्रमुखाश्री की अभिवंदना की। नगरपालिका सदस्यों सहित राजू चौरड़िया ने अभिनंदन पत्र भेंट किया। इस अवसर पर ‘सफर अर्धसदी का’ सहित अनेक कृतियों का भी विमोचन हुआ।