- आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मोक्ष प्राप्ति का बताया मार्ग
- लगभग 16 कि.मी. का विहार कर कांसेड़ा पहुंचे अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य महाश्रमण
- कांसेड़ा गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पूज्यचरणों से हुआ पावन
08.01.2022, शनिवार, कांसेड़ा, नागौर (राजस्थान)। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रूपी जनकल्याणकारी संदेशों के साथ राजस्थान के नागौर जिले में गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को गोविन्दी गांव के लोगों को मंगल आशीष प्रदान कर अगले गंतव्य की ओर कदम बढाए तब तक सूर्य बादलों की ओट में ही था। शुक्रवार की देर रात हुई जबरदस्त बरसात ने ठंड और इजाफा कर दिया था, किन्तु जन-जन के कल्याण के लिए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गतिमान थे। आज का विहार मार्ग सुनसान था। राजस्थान की राजधानी जयपुर को पावन बनाने के बाद तेरापंथ धर्मसंघ की राजधानी लाडनूं की ओर गतिमान आचार्यश्री महाश्रमणजी आज भी लगभग सोलह किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर नागौर जिले के कांसेड़ा गांव में स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे। जहां विद्यालय के अध्यापकों आदि ने आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत किया।
वर्चुअल रूप में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम लम्बे विहार के कारण दोपहर एक बजे आरम्भ हुआ। आचार्यश्री ने मोक्ष मार्ग के अवयवों का वर्णन करते हुए कहा कि जैसे चार पहिए वाली गाड़ी के चारों पहिए अच्छे होते हैं और एक साथ गति करते हैं तो वह गाड़ी गंतव्य तक ले जाती है और यदि एक भी पहिया खराब हो जाए, अथवा गति न कर पाए तो गाड़ी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाती। जैसे चारपाई के चारों पैर ठीक होते हैं तो वह बैठने के काम आ जाती है, किन्तु यदि एक भी पैर खराब हो गया तो उस पर बैठना कठिन हो जाता है। उसी प्रकार मोक्ष प्राप्ति मार्ग के चार अवयव बताए गए हैं-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। यदि इन चारों अवयवों का जीवन में विकास होता रहे, चारों साथ चलते रहें तो मोक्ष की दिशा में गति हो सकती है। यदि इन चारों में से एक भी अवयव नहीं है तो फिर भला मोक्ष की दिशा में गति करना कठिन हो सकता है। इसलिए आदमी को ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को चलाने और अपनी आत्मा को मोक्ष की दिशा में ले जाने का प्रयास करना चाहिए। किसी के पास कोरा ज्ञान हो, किसी के पास कोरा चारित्र हो अथवा किसी के पास कोरा तप हो तो समग्रता की बात नहीं हो सकती है। ज्ञान हो, फिर उस पर श्रद्धा और विश्वास हो, उस ज्ञान व श्रद्धा के अनुरूप आचरण हो तथा साथ में तपस्या भी चले तो आत्मा मोक्ष की दिशा में गति कर सकती है।
आदमी समाज में रहता है। आदमी को समाज में एक-दूसरे का पूरक बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी एक-दूसरे का पूरक बने तो कोई भी कार्य सम्यकतया परिसम्पन्न हो सकता है। इस प्रकार आदमी को ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना करते हुए अपनी आत्मा को मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के स्वागत में विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री हीरालाल बरवड़ ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मैं इस विद्यालय और गांव की ओर से राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक स्वागत-अभिनंदन करता हूं। आपके पूज्यचरणों से इस विद्यालय की धरती पावन हो गई। मैं अपना सौभाग्य मानता हूं कि जिसके बारे में पहले कभी सुन रखा था अथवा कभी मोबाइल में प्रवचन सुनता था, आज उनके साक्षात दर्शन कर मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रहा हूं। आचार्यश्री ने उन्हें संस्कारयुक्त शिक्षा विद्यार्थियों को प्रदान करने की पावन प्रेरणा प्रदान की।