- पत्थर की नगरी डाबी को पावन बना कोटा की ओर गतिमान हुए ज्योतिचरण
- राष्ट्रीय राजमार्ग 27 पर किया लगभग 16 कि.मी. का प्रलम्ब विहार
- करोंदी गांव हुआ पुलकित, राजकीय प्राथमिक विद्यालय में हुआ मंगल प्रवास
30.11.2021, मंगलवार, करोंदी, बूंदी (राजस्थान)। पत्थर की नगरी के नाम से प्रसिद्ध डाबी को अपने मंगल चरणों से पावन तथा अपने अमृतमयी प्रवचन से निर्मल बना मंगलवार को प्रातः की मंगल बेला में अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी कोटा की ओर प्रस्थित हुए। आचार्यश्री राष्ट्रीय राजमार्ग 27 पर गतिमान हुए। रास्ते में अनेक गांवों के ग्रामीणों को आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद का लाभ प्राप्त हुआ। आज विहार के दौरान सूर्य सम्मुखीन था। आसमान में सूर्य अपने किरणों के साथ ज्योति बांटने के लिए आसामान में गतिमान था तो तेरापंथ के महासूर्य आचार्य महाश्रमण अपनी धवल सेना के साथ जन-जन के भीतर व्याप्त बुराई रूपी अंधकार को दूर करने के लिए सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रूपी मसाल लेकर गतिमान थे। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 27 पर आचार्यश्री लगभग 16 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर राजमार्ग के सन्निकट स्थित करोंदी गांव में पधारे। प्रलम्ब विहार के कारण दोपहर के बारह बज चुके थे।
प्रातःकाल आयोजित होने वाला मंगल प्रवचन दोपहर में आयोजित हो रहा था। करोंदी गांव स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय प्रांगण में समुपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी सुनकर कल्याण और पाप को जानता है। जानने के बाद जो श्रेयस्कर हो, उसका आचरण करना चाहिए। पढ़कर, सुनकर, देखकर तथा अन्य इन्द्रियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें पढ़ना, देखना और सुनना ज्ञानार्जन का सशक्त माध्यम है। संतों की कल्याणकारी वाणी के श्रवण से आदमी के जीवन में परिवर्तन आ सकता है। व्यसनों की आसक्ति से बचने और सदाचार की ओर बढ़ने का प्रयास हो तो जीवन अच्छा हो सकता है।
आचार्यश्री ने गृहस्थों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि गृहस्थ अपने जीवन में हिंसा और परिग्रह को जितना संभव हो, कम करने का प्रयास करे। आदमी परिग्रह के कारण हिंसा कर सकता है। गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी हिंसा का निमित्त निमित्त बन सकता है, किन्तु उपादान नहीं। राग-द्वेष आदि कषाय हिंसा के उपादान होते हैं। आदमी को त्याग, परिग्रह आदि के प्रति अनासक्ति रखने का प्रयास करे। जिस घर में शांति, सौहार्द, सद्भाव, प्रेम व मैत्री के भाव होते हैं वह घर स्वर्ग और जहां अशांति, कलह, द्वेष आदि हो वह घर नरक के समान हो सकता है। उसी प्रकार आदमी के जीवन में भी गुस्सा, घृणा, वैर, विरोध आदि के भाव हों तो जीवन नरक के समान और प्रेम, मैत्री, शांति, सहयोग, परोपकार की भावना हो तो जीवन में स्वर्ग की अनुभूति की जा सकती है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में सदाचार, सन्मार्ग पर चलने और अपने जीवन को स्वर्ग के समान बनाने का प्रयास करना चाहिए।
प्रवचन पश्चात इन्दौर से विहार कर मुनि कमलकुमारजी ने अपने सहवर्ती संतों के साथ आचार्यश्री के दर्शन किए। आचार्यश्री स्वयं उनकी अगवानी में प्रवास स्थल से बाहर तक पधारे। आचार्यश्री विनय के साथ मुनिश्री के साथ मिले तो उपस्थित श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। मुनि कमलकुमारजी आदि संतों ने आचार्यश्री की भावपूर्ण अभिवन्दना की।