मेलबर्न:कोरोना महामारी का कारण बने वायरस सार्स-कोव-2 के नए वैरिएंट ओमिक्रोन ने सबकी चिंता बढ़ा दी है। इस वैरिएंट ने एक बार फिर दुनिया के गरीब देशों तक टीके की कम पहुंच को भी विमर्श में ला दिया है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि गरीब देशों में कम टीकाकरण वायरस के नए वैरिएंट पनपने की वजह हो सकता है। इन दावों के बीच यूनिवर्सिटी आफ मेलबर्न के एडम व्हीटली और पीटर डोहर्टी इंस्टीट्यूट फार इन्फेक्शन एंड इम्युनिटी की जेनिफर जूनो ने इससे जुड़े कुछ अहम तथ्यों को सामने रखा है।
वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति दूसरे में संक्रमण का कारण बनता है। वायरस के कुछ वैरिएंट मनुष्य की कोशिकाओं में प्रवेश करने या अपनी संख्या को तेजी से बढ़ाने में सक्षम होते हैं। ऐसे में जो वैरिएंट सबसे तेजी से फैलने और स्वयं को बढ़ाने में सक्षम होता है, वह अन्य पर हावी हो जाता है और धीरे-धीरे आबादी में ज्यादातर लोगों में संक्रमण का कारण बन जाता है। करीब दो साल पहले शुरू हुई मौजूदा महामारी में ऐसा कई बार हुआ है। वुहान से जो वायरस चला था, कुछ समय बाद उसकी जगह डी614जी वैरिएंट ने ले ली थी। फिर अल्फा और उसके बाद डेल्टा वैरिएंट हावी हो गया। इस तरह के ज्यादा संक्रामक वैरिएंट चिंता बढ़ाते हैं।
अभी कोरोना महामारी से लड़ने के लिए जिन टीकों को विकसित किया गया है, उन सबमें वायरस के स्पाइक प्रोटीन को निशाना बनाया जाता है। नए वैरिएंट सामने आने पर भी इस स्पाइक प्रोटीन में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं होता है। बीटा, गामा और म्यू जैसे वैरिएंट के कुछ मामलों में टीके का असर कम पाया गया था। हालांकि इस तरह के वैरिएंट बहुत ज्यादा संक्रामक नहीं हो पाए।
कई जानकार मान रहे हैं कि टीकाकरण के मामले में कोई भी लापरवाही नए और घातक वैरिएंट के पनपने का कारण बन सकती है। वैसे तो अब तक कम टीकाकरण और नए वैरिएंट का कोई सीधा संबंध सामने नहीं आया है, लेकिन टीकाकरण कम होने से संक्रमण बढ़ने का खतरा जरूर होता है। और यह ज्ञात तथ्य है कि जितना ज्यादा संक्रमण होगा, नए वैरिएंट बनने की आशंका भी उतनी ज्यादा होगी।
ओमिक्रोन वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में 32 म्युटेशन यानी बदलाव पाए गए हैं। इनमें ऐसा बदलाव भी शामिल है, जो इसको ज्यादा संक्रामक बनाता है। साथ ही इसे कुछ हद तक इम्यून सिस्टम को धोखा देने में भी सक्षम बनाता है। इससे विज्ञानी यह अनुमान लगा रहे हैं कि यह वैरिएंट ज्यादा संक्रामक हो सकता है और मौजूदा टीकों का प्रभाव भी थोड़ा कम कर सकता है। हालांकि टीके पूरी तरह निष्प्रभावी नहीं हो जाएंगे। फिलहाल पूरी दुनिया को टीकाकरण बढ़ाने की दिशा में जरूरी प्रयास करना चाहिए।