आदित्य तिक्कू।।
जिस देश में हमारे प्रधानमंत्री को वीथ बैंगिंग बाउल से परिहास किया गया था वही का राष्ट्रपति भारत के सहारे अपने देश की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लक्ष्य और उम्मीद से पहले हाउडी मोडी में भारतीयों की जय जयकार करता है और फिर नमस्ते ट्रम्प में भारत की तारीफ के कसीदे पड़ता है। यह परिवर्तन एक दिन या एक दशक का नहीं है इसमें सदियों की मेहनत और सारे राष्ट्रपति – प्रधानमत्री व राजनयिकों का अथक प्रयास है कि अमेरिकी राष्ट्रपति भारत का धन्यवाद करता है और साथ खड़े होने में गौरवान्वित महसूस होता है। भारत और अमेरिका के शासनाध्यक्षों की आपसी मुलाकात जिस गर्मजोशी के साथ होने की उम्मीद की जा रही थी, 25 फरवरी को इन दोनों शीर्ष नेताओं की बैठक उसी सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई। हैदराबाद हाउस में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने न सिर्फ एक-दूसरे पर भरोसा जताया, बल्कि अपनी-अपनी चिंताएं और मुश्किलें भी आपस में साझा कीं। यह संकेत है कि दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्ते सही दिशा में और बराबरी से आगे बढ़ रहे हैं। इस राह में बेशक कुछ रुकावटें हैं, लेकिन बैठक के बाद दिए गए साझा बयान में दोनों नेताओं ने उन गतिरोधों से जल्द ही पार पाने की उम्मीद जताई, जो सुखद है।
मेरे विचार से 25 फरवरी की बैठक का सबसे सुखद नतीजा रहा, ‘कॉम्प्रिहेन्सिव ग्लोबल स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप’ पर बनी सहमति। यह नीति दोनों देशों के मौजूदा रिश्ते को नए क्षितिज पर लेजाएगी। इस नई साझेदारी का मतलब है कि द्विपक्षीय मुद्दों के अलावा वैश्विक मसलों पर भी दोनों देशों में सामरिक साझीदारी होगी और यह साझेदारी रक्षा-सुरक्षा जैसे एक-दो क्षेत्रों तक नहीं, बल्कि द्विपक्षीय रिश्तों के तमाम पहलुओं को समग्रता में समेटेगी। स्पष्ट है, जिस उद्देश्य से राष्ट्रपति ट्रंप का यह दौरा आयोजित किया गया, उसमें सफलता मिली है। इस तरह की यात्राओं में कोशिश भी यही होती है कि शासनाध्यक्षों के बीच एक सहमति बन जाए, ताकि बाकी की चीजें आसान हो जाएं। राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा भी है कि उन्हें भारत पर पूरा भरोसा है, जिसका अर्थ है कि रिश्तों की तमाम गाठों को जल्द सुलझा लिया जाएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति की इस यात्रा में दोनों देशों के बीच बहुप्रतीक्षित व्यापारिक समझौता नहीं हो सका। मगर इससे निराश होने की जरूरत नहीं है। चूंकि दोनों देशों के मुखिया एक-दूसरे को समझने लगे हैं, इसलिए उम्मीद है कि इस समझौते को लेकर निचले स्तर पर कायम गतिरोध दूर हो जाएगा। किसी भी समझौते के मसौदे पर आसानी से सहमति नहीं बनती। जिस तरह हम अपने हितों को लेकर आग्रही होते हैं, उसी तरह सामने वाला पक्ष भी अपने लाभ का गुणा-भाग करता है। जाहिर है, इस प्रक्रिया में वार्ताकार एक-दूसरे के प्रति काफी सख्त रुख अपनाते हैं। मगर जैसे ही लोकतांत्रिक व्यवस्था के शीर्ष नेतृत्व में सहमति बन जाती है, तो समझौते की मेज पर बैठने वाले वार्ताकार अपना-अपन रुख नरम करने लगते हैं। इससे बीच का रास्ता निकालना आसान हो जाता है।
व्यापारिक समझौते में भी इसी तरह के गतिरोध हैं। इसमें जो मुद्दे हैं, वे फिलहाल कठिन जान पड़ रहे हैं। अमेरिका की अपेक्षाओं को पूरा करना भारत के लिए आसान नहीं है, तो भारत की उम्मीदों पर आगे बढ़ना अमेरिका के लिए कठिन है। मगर रास्ते जल्द ही निकल जाएंगे। माना भी यही जा रहा है कि राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप की फिर से ताजपोशी के बाद भारत और अमेरिका इस समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। वैसे, यह सच हमें नहीं भूलना चाहिए कि चुनावी नतीजों की सटीक भविष्यवाणी मुमकिन नहीं। जनादेश उम्मीदों के खिलाफ भी आते हैं। फिर भी यह जरूर कहा जा सकता है कि दोनों देश इस समझौते पर आगे बढ़े हैं और सब से प्रमुख बात है बराबरी और आत्मसम्मान के साथ।