मुंबई:मुंबई के कुर्ला ब्राह्मणवाड़ी नाले के पास (पूर्व) से (पश्चिम) की ओर आने-जाने के लिए पादचारी पुल (फुटओवर ब्रिज) को आम लोगों के लिए खोल दिया गया है। यह अलग बात है कि 19 साल बीत जाने के बाद भी इसका काम अब तक पूरा नहीं हुआ है। महज 164 मीटर लंबे और साढ़े तीन मीटर चौड़े पादचारी पुल को बनाने में मध्य रेलवे ने 19 साल लगा दिए। लागत भी 1.60 करोड़ रुपये से बढ़कर 4.22 करोड़ रुपये हो गई, फिर भी काम बाकी है। पिछले दिनों स्थानीय विधायक मंगेश कुडालकर ने इस पुल का उद्घाटन कर दिया, लेकिन इसमें रेलवे और बीएमसी का अधिकारी शामिल नहीं हुआ।
कुर्ला ब्राह्मणवाड़ी नाले के पास की रेल पटरी हादसों का मुख्य केंद्र हुआ करती थी। कुर्ला रेलवे क्वॉटर्स आने वाले अक्सर यहीं से पटरी पार करते थे। कुर्ला रेल टर्मिनस बनने बाद यहां से रेल पटरी पार करने वालों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो गई और इसी के साथ हासदों में भी। 1992 में पहली बार नगरसेवक का चुनाव जीतने वाले राजहंस सिंह ने बीएमसी और रेलवे से यहां पर एफओबी बनाने की मांग की। 1997 में बीएमसी ने एफओबी बनाने का निर्णय लिया। उस वक्त एफओबी बनाने की अनुमानित लागत करीब 1 करोड़ 60 लाख रुपये थी। देरी के कारण इसकी लागत बढ़ती गई। बीएमसी ने रेलवे को अलग-अलग पांच चरणों में 4 करोड़ 22 लाख 45 हजार 403 रुपये दिए।
रेल पटरी के ऊपर से एफओबी बनाना था, इसलिए बीएमसी को 1 करोड़ 60 लाख रुपये रेलवे को भुगतान करने थे। 16 मई 2000 को बीएमसी ने 1 लाख 60 हजार रुपये रेलवे को दे दिए, लेकिन रेलवे ने काम शुरू नहीं किया। राजहंस कहते हैं कि 2000 में एफओबी बनाने की बुनियाद रख गई दी थी। काम की रफ्तार बहुत धीमी थी। 2004 में राजहंस बीएमसी में विरोधी पक्ष नेता बने। उन्होंने फिर से जोर लगाया। असर यह हुआ कि रेलवे ने रुक-रुककर काम शुरू कर दिया।
इधर, रेलवे में एफओबी के लिए सुभाष गुप्ता पीछे पड़े। डीआरयूसीसी की बैठक में कई बार मामला उठाया। तब उन्हें बताया गया कि ठेकेदार काम छोड़ भाग गया है। दूसरा ठेकेदार नियुक्त कर रहे हैं। दबाव पड़ने पर ही रेल अधिकारी काम करते थे। वहीं, रेल अधिकारियों का कहना है कि कुर्ला (पूर्व) में रेलवे पेट्रोल पंप और मस्जिद भी है। इसके कारण कई बार एफओबी के नक्शे में बदलाव करना पड़ा।
खुल गया कुर्ला फुटओवर ब्रिज
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