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Reading: राहुल गांधी के आर्टिकल पर सियासी भूचाल, क्या हैं इसके मायने?
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राहुल गांधी के आर्टिकल पर सियासी भूचाल, क्या हैं इसके मायने?

Last updated: June 8, 2025 2:04 pm
Surabhi Saloni
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7 Min Read
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हाल ही में कांग्रेस नेता एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के एक लेख ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। यह लेख, जो देश के कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ, न केवल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि सोशल मीडिया और जनता के बीच भी तीखी बहस को जन्म दे चुका है। इस लेख में राहुल गांधी ने कई गंभीर मुद्दों पर अपनी बात रखी, जिनमें चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता, संवैधानिक संस्थानों की निष्पक्षता, और आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाए गए। इस लेख ने न केवल सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को जवाब देने के लिए मजबूर किया, बल्कि विपक्षी दलों और उनके समर्थकों के बीच भी नई ऊर्जा का संचार किया है।
राहुल गांधी का यह लेख 7 जून 2025 को प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने विशेष रूप से महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के संदर्भ में मतदान और मतगणना प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं का जिक्र किया। राहुल ने अपने लेख में मांग की कि निर्वाचन आयोग को डिजिटल और मशीन-पठनीय (machine-readable) प्रारूप में समेकित मतदान डेटा प्रकाशित करना चाहिए ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके। इसके अलावा, उन्होंने आर्थिक नीतियों और कुछ बड़े उद्योगपतियों के साथ सत्तारूढ़ दल के कथित संबंधों पर भी टिप्पणी की, जिसे उन्होंने “अरबपतियों को अर्थव्यवस्था पर एकाधिकार” देने का प्रयास करार दिया।
इस लेख का समय भी महत्वपूर्ण है। यह ऐसे समय में आया है जब देश में कई बड़े मुद्दों-जैसे आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, और संवैधानिक संस्थानों की स्वायत्तता-पर पहले से ही बहस चल रही है। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ ने उन्हें एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया है, और यह लेख उनकी इस छवि को और मजबूत करने का प्रयास प्रतीत होता है।

चुनाव की चोरी का पूरा खेल!

2024 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लोकतंत्र में धांधली का ब्लूप्रिंट था।

अपने आर्टिकल में मैंने विस्तार से बताया है कि कैसे यह साज़िश step by step रची गई:

Step 1: चुनाव आयोग की नियुक्ति करने वाले पैनल पर कब्ज़ा

Step 2: वोटर लिस्ट में फर्ज़ी मतदाता… pic.twitter.com/S4XV5W3DpU

— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 7, 2025

राहुल गांधी के लेख ने सत्तारूढ़ भाजपा को तीखी प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित किया। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं, जैसे रविशंकर प्रसाद और जेपी नड्डा, ने राहुल के बयानों को “तथ्यहीन” और “संवैधानिक संस्थानों पर हमला” करार दिया। भाजपा ने राहुल गांधी पर “शहरी नक्सलियों” (Urban Naxals) के प्रभाव में होने का आरोप लगाया, जो एक बार फिर इस शब्द के इस्तेमाल को लेकर विवाद को हवा दे गया। इसके अलावा, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राहुल के ‘लाल किताब’ (Red Book) दिखाने को “शहरी नक्सलियों का समर्थन लेने” की कोशिश बताया, जिस पर कांग्रेस ने पलटवार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा संविधान की प्रति उठाए जाने की तस्वीरें साझा कीं।
भाजपा ने यह भी आरोप लगाया कि राहुल गांधी विदेशी धरती पर भारत की छवि खराब कर रहे हैं, विशेष रूप से उनके हाल के अमेरिका दौरे के दौरान निर्वाचन आयोग पर उठाए गए सवालों को लेकर। इन आरोपों ने दोनों दलों के बीच पहले से चली आ रही तनातनी को और गहरा कर दिया है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने राहुल गांधी के लेख का समर्थन किया है। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने इसे “भाजपा की दुखती रग” पर प्रहार बताया। कुछ समर्थकों का मानना है कि राहुल गांधी का यह लेख सत्तारूढ़ दल के कोर वोटरों तक पहुंचने की एक रणनीतिक कोशिश है, खासकर जब यह दैनिक जागरण जैसे व्यापक रूप से पढ़े जाने वाले अखबार में छपा। यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि यह उन पाठकों तक पहुंच सकता है जो परंपरागत रूप से भाजपा समर्थक माने जाते हैं।
कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि राहुल गांधी ने अपने लेख में न केवल चुनावी प्रक्रिया की खामियों को उजागर किया, बल्कि आर्थिक नीतियों और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को भी उठाया, जो आम जनता से सीधे जुड़े हैं। दूसरी ओर, कुछ आलोचकों का मानना है कि राहुल के ये बयान उनकी पुरानी छवि को पुनर्जनन करने की कोशिश हैं, जो अभी भी कुछ हलकों में “नासमझ” और “अहंकारी” जैसे शब्दों से प्रभावित है।
राहुल गांधी के इस लेख ने कई स्तरों पर प्रभाव डाला है। सबसे पहले, इसने निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक निकायों की निष्पक्षता पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। दूसरा, इसने आर्थिक नीतियों और कॉरपोरेट प्रभाव के मुद्दे को फिर से केंद्र में ला दिया है, खासकर तब जब अडानी समूह जैसे बड़े कॉरपोरेट घरानों पर पहले से ही सवाल उठ रहे हैं। तीसरा, इसने राहुल गांधी को एक ऐसे नेता के रूप में पेश किया है जो न केवल विपक्ष की आवाज उठा रहे हैं, बल्कि सत्तारूढ़ दल को सीधे चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं।
भाजपा ने इसे “राष्ट्र-विरोधी” और “संवैधानिक संस्थानों पर हमला” करार देकर राहुल गांधी की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है।
राहुल गांधी का यह लेख निश्चित रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद की राजनीतिक गतिशीलता को दर्शाता है। उनकी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ ने उन्हें जनता के बीच एक गंभीर नेता के रूप में स्थापित करने में मदद की है, और यह लेख उस दिशा में एक और कदम है। लेकिन, सत्तारूढ़ दल की तीखी प्रतिक्रिया और सोशल मीडिया पर चल रही बहस से साफ है कि यह मुद्दा जल्दी शांत होने वाला नहीं है।
आने वाले दिनों में, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राहुल गांधी अपने लेख में उठाए गए मुद्दों को और गहराई से जनता तक ले जा पाते हैं, या फिर भाजपा इसे अपने पक्ष में मोड़कर विपक्ष को कमजोर करने में सफल होती है। एक बात निश्चित है-राहुल गांधी का यह लेख भारतीय राजनीति में एक नए सियासी भूचाल का प्रतीक बन गया है, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

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