- आचार्यप्रवर ने किया शास्त्रवर्णित आश्चर्यों का उल्लेख
- नवरात्रि आध्यात्मिक अनुष्ठान का समापन
14 अक्टूबर 2021, गुरुवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा (राजस्थान)। तीर्थंकर के प्रतिनिधि तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की प्रवचनवाणी से ज्ञानामृत सरिता प्रवाहित हो रही है जो जन-जन के भीतर ज्ञान का नव सृजन कर रही है। आचार्यप्रवर द्वारा आज नवरात्रि के संदर्भ में चल रहे आध्यात्मिक अनुष्ठान का मंत्र, स्तोत्र जाप द्वारा समापन किया गया।
महाश्रमण सभागार में उद्बोधन प्रदान करते हुए शांतिदूत श्री महाश्रमण ने कहा- दुनिया में कभी-कभी सामान्य क्रम से रूढ़ि से हटकर कोई प्रसंग का होना आश्चर्य होता है। जैन शासन में भगवान महावीर के काल तक दस ऐसी अद्भुत घटनाएं घटित हुई जो आश्चर्य कही जा सकती है। भिन्न-भिन्न तीर्थंकरों के समय घटित हुए प्रसंगों में अनेक प्रसंग भगवान महावीर से जुड़े हुए शास्त्रों में प्राप्त होते है। दस आश्चर्य के प्रसंग इस प्रकार है – उपसर्ग – भगवान महावीर को तीर्थंकरत्व की प्राप्ति के बाद उपद्रवित करना, गर्भ संहरण – देवानंदा की कुक्षी से यशोदा की कुक्षी में गर्भ का स्थानांतरण, 19 वें तीर्थंकर मल्लीनाथ का स्त्री होना, अभावित परिषद – केवली होने के बाद महावीर की प्रथम देशना का खाली जाना, कृष्ण का अपरकनका नगरी में जाना, चंद्र एवं सूर्य का अपने शाश्वत विमान से भगवान महावीर के कौशांबी नगरी में वन्दना करने आना, तीर्थंकर शीतल प्रभु के समय हरिवंश की उत्पति, चमरेंद्र का उत्पाद, भगवान ऋषभ के समय एक समय में एक सौ आठ सिद्ध होना, तीर्थंकर सुविधि प्रभु से शांति प्रभु के समय तक असंयमी की पूजा होना ये सब आश्चर्य अनंत काल के बाद घटित हुए। इस तरह हमारी सृष्टि में ऐसी अनेक घटनाएं कभी घट सकती है जो स्वाभाविक नहीं होती।
आचार्यवर ने आगे फरमाया कि हमारी सृष्टि में इतने दशकों बाद कोरोना जैसी विश्व व्यापी महामारी आई पहले कभी शायद ही ऐसी भयंकर महामारी आयी होगी जिसने पूरे विश्व को प्रभावित किया हो, इस दृष्टि से तो कोरोना को भी आश्चर्य कह सकते है। ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में भी व्यक्ति में समता, अभय को धारण करने का प्रयास करे और अध्यात्म साधना करते हुए ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना में आगे बढ़े यह काम्य है।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक आयोग के अध्यक्ष श्री नरेंद्र जी जैन , मुमुक्षु रोशनी ने पूज्य प्रवर के समक्ष अपने विचार रखे। श्री संजय भानावत ने गीतिका का संगान किया।