नई दिल्ली :दुनिया के इतिहास में यह पहली बार होगा कि जिन देशों ने आतंकवाद फैलाने के जुर्म में तालिबान के सदस्यों पर संयुक्त राष्ट्र का प्रतिबंध लगवाया उन्हीं देशों के प्रतिनिधि अब उन आतंकियों के साथ समकक्ष के तौर पर बात करेंगे। तालिबान की तरफ से मंगलवार को जिस अंतरिम सरकार के गठन का एलान किया गया है, उसमें पीएम अखुंद, दोनों डिप्टी पीएम मुल्ला बरादर व अब्दुल सलाम हनफी, गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी, विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रतिबंधित आतंकी हैं। सिराजुद्दीन हक्कानी के बारे में सूचना देने पर तो अमेरिकी सरकार की तरफ से इनाम घोषित है। असलियत में तालिबान सरकार में एक साथ इतने सारे आतंकियों के शामिल होने से आतंकवाद के खिलाफ यूएन के तत्वाधान में चलने वाले मुहिम पर भी गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
इन सभी को आतंकी घोषित करवाने में अमेरिका की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है लेकिन बहुत जल्द ही अमेरिका के विदेश मंत्री को उनकी ही सरकार की तरफ से घोषित आतंकियों से वार्ता करते हुए देखा जा सकता है। इनमें से कई तालिबानी नेताओं पर अमेरिकी सरकार ने अपनी तरफ से अलग से इनाम घोषित किया हुआ है। जाहिर है कि अमेरिका को इसमें रियायत देनी होगी। यही नहीं जिस संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव पारित कर अखुंद व मुत्तकी को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया, उसी की सालाना सम्मेलन को अब ये दोनों संबोधित कर सकते हैं। इस बदलाव का पाकिस्तान भी अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सकता है। अभी लश्कर सरगना हाफिज सईद और जैश सरगना मसूद अजहर भी संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आतंकी घोषित हैं। पाकिस्तान में इन पर कोई खास लगाम नहीं है और ये खुलेआम भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। तालिबान के प्रतिबंधित आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने पर पाकिस्तान अपने यहां रहने वाले दूसरे प्रतिबंधित आतंकियों को लेकर और ज्यादा मुखर हो सकता है।
तालिबान सरकार में शामिल प्रतिबंधित आतंकियों के भविष्य को लेकर इसी महीने की 21 तारीख को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की अहम बैठक होने वाली है। अमेरिका ने जब से तालिबान से शांति वार्ता की शुरुआत की है तबसे से इनमें से कई तालिबानी नेताओं पर कहीं आने-जाने पर लगे प्रतिबंध में समय-समय पर छूट दी जाती रही है। यह छूट इसलिए दी गई ताकि इनसे दोहा व दूसरे देशों में वार्ता की जा सके। 21 सितंबर की बैठक में इनको यात्रा में जारी छूट को आगे बढ़ाने या नहीं बढ़ाने पर ही फैसला किया जाना है। भारत और अमेरिका इस बारे में आपस में और दूसरे देशों के साथ भी विमर्श कर रहे हैं। माना जा रहा है कि ये देश अभी तालिबान सरकार के रवैये के अध्ययन के बाद ही दी गई छूट को बढ़ाने का फैसला करेंगे।
अगर भारत के लिहाज से देखा जाए तो रक्षा मंत्री मोहम्मद याकूब व गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी दोनों को सबसे ज्यादा चिंताजनक माना जा रहा है। याकूब और हक्कानी दोनों को सख्त भारत विरोधी माना जाता है। इसके पीछे वजह इनके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के साथ बेहद करीबी संबंध भी है और इनकी विचारधारा भी कट्टर है। ये दोनों कट्टर अफगानिस्तान के हिमायती हैं जिसमें न तो औरतों की कोई भागीदारी हो और न ही अल्पसंख्यकों की कोई भूमिका हो। यही नहीं याकूब के बारे में माना जाता है कि उसके जैश सरगना मसूद अजहर के साथ काफी करीबी संबंध हैं और इन दोनों के गठबंधन से ही अफगानिस्तान में भारत के मिशनों पर पहले कई आतंकी हमले किए गए थे।