- पर्युषण आराधना करवाने आये उपासकद्वय
आरकोणम। भारतीय संस्कृति एक प्राणवान संस्कृति हैं। यह त्यागमय भावना से अनुप्राणित हैं। इसने सहिष्णुता, धैर्य की भावना से भारतीय जनमानस को आंदोलित कर रखा है – उपरोक्त विचार तेरापंथ सभा भवन, आरकोणम में आचार्य श्री महाश्रमणजी की अनुज्ञा से पर्युषण पर्वाराधना करवाने आये उपासक स्वरूप चन्द दाँती (चेन्नई, बालोतरा) ने कहें।
पर्वाधिराज के प्रथम दिवस पर आत्मोत्थान की प्रेरणा देते हुए कहा कि यह पर्युषण महापर्व आत्मा की मैली चादर धोने का पर्व है। ह्रदय की कलुषता को मिटाने का पर्व है। पंच परमेष्ठी की आराधना कर, रोग-शोक पर प्रहार करने का पर्व है। राग-द्वेष से अविरत होने का पर्व है। इस गंगा रूपी महापर्व में डुबकी लगाने वाला व्यक्ति अपने भवभ्रमण को कम कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त बन सकता है।
उपासक शोभागमल सांड (कडलूर) ने तीर्थंकर स्तुति के साथ कहा कि हमारा आहार संयममय, संतुलित होना चाहिए। आहार से शरीर का सम्यक् संचालन होता है और शरीर साधना में सहयोगी बनता है। अतः हमारा भोजन शुद्ध एवं सात्विक होना चाहिए। पवित्र भावना, प्रसन्नसित से किया गया आहार तन, मन, वाणी को सुखद बनाता है।
तेरापंथ सभा मंत्री संजय देवडा ने उपासकजी को पर्युषण आराधना करवाने के लिए भिजवाने हेतु गुरूदेव के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट किये। सभी संघीय संस्थाओं की ओर से उपासक द्वय का स्वागत किया। महिला मण्डल की बहनों ने पर्युषण आराधना को प्रेरित संगीत का संगान किया।