- पूज्यप्रवर ने दी क्षमा धारण करने की प्रेरणा
- चतुर्दशी पर हाजिरी का वाचन
21 अगस्त 2021, शनिवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान। तीर्थंकर के प्रतिनिधि जैन धर्म के प्रभावक आचार्य शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में चातुर्मास काल में ज्ञानाराधना के साथ-साथ तपस्या में भी श्रावक समाज में विशेष उत्साह है। प्रतिदिन अनेकों श्रावक-श्राविकाएं आचार्यप्रवर से अठाई, नौ, मासखमण आदि तप का प्रत्याख्यान कर रहे है। आज आचार्यश्री के सान्निध्य में हाजरी का वाचन हुआ। तेरापंथ की परम्परा अनुसार प्रत्येक चतुर्दशी को आचार्यप्रवर मर्यादा पत्र का वाचन कर धर्मसंघ को मर्यादाओं की स्मारणा कराते है। पूज्यप्रवर के मर्यादापत्र वाचन के पश्चात साधु-साध्वियों ने सामूहिक रूप से लेखपत्र का वाचन किया।
अमृत देशना देते हुए गुरुदेव ने कहा- व्यक्ति के भीतर कई प्रकार की वृत्तियां होती है। क्रोध भी एक प्रकार की वृत्ति है। गुस्से-गुस्से में कई बार अंतर होता है। कभी किसी को कठोर बात कहने के लिए व्यक्ति गुस्सा हो जाता है तो कभी अति आवेश की भी स्थिति बन जाती है। जैन कर्मवाद की दृष्टि से देखें तो गुस्सा मोहनीय कर्म का अंग है। अगर मोहनीय कर्म न हो तो गुस्सा भी नहीं रहेगा। निमित्त मिलने से हमारे भीतर के क्रोध की वृति को उभार मिल जाता है। कभी कोई गुस्से में कुछ कह दे, उस समय क्षमता होने पर भी समता रखना, प्रतिकार नहीं करना बड़ी बात होती है। प्रतिकुल स्थिति में भी क्षमा को धारण कर लेना वीरों का लक्षण है। कैसी भी परिस्थिति हो, हमारे चित्त में शांति रहनी चाहिए।
आचार्य प्रवर ने आगे कहा की जैसे आलस्य को शरीर का शत्रु कहा गया है वैसे ही क्रोध भी हमारा शत्रु है। एक संस्कृत सूत्र है ‘कोपः शत्रु: मनुष्यानां’ इसे हमेशा चिंतन में रखना चाहिए। व्यक्ति स्वयं भी ध्यान रखें कि अपने द्वारा किसी को अपशब्द क्यों कहे? वाणी पर संयम होता है तो व्यवहार भी अच्छा रह सकता है। क्यों किसी की पुरानी बातों को खोद- खोद कर निकालना। व्यक्ति को उपशान्त कलह की उदीरणा नहीं करनी चाहिए। ईंट का जवाब पत्थर से क्यों, हम ईट का जवाब फूलों, सुमनों से दे। साधु तो क्षमामूर्ति होते ही हैं और होना भी चाहिए। गृहस्थ भी जितना हो सके क्रोध से बचें। क्रोध किसी काम का नहीं होता है बल्कि कई बार गुस्से में कही बात का महत्व भी घट जाता है। हमारे व्यवहार, चिंतन में उदारता रहे यह अपेक्षित है।
साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशा ने प्रेरणा देते हुए कहा कि आत्मशुद्धि का पावन पथ सत्य है। जिस व्यक्ति को सत्य की साधना करनी हो वह विवेकपूर्ण और यथार्थ भाषा का उपयोग कर सत्य की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
इस अवसर पर तपस्या का प्रत्याख्यान करते हुए श्री सागरमल मोगरा ने इकतीस, श्री कुशलराज सेठिया ने इकतीस, श्रीमती मधु सांखला ने इकतीस, श्री प्रकाशचंद्र गौतम बोहरा ने इकतीस, श्री सुरेश चंद्र बोरदिया ने आज पंद्रह की तपस्या में तीस और श्रीमती ज्योति रांका ने नौ की तपस्या का आचार्य प्रवर से प्रत्याख्यान किया। साध्वी सुषमा कुमारी जी ने नवरंगी तप अनुष्ठान एवं अन्य तपस्या की जानकारी दी। कार्यक्रम में श्री शंकरलाल हिरण, श्री राकेश बोहरा, श्री सुरेश चोरड़िया ने अपने विचार व्यक्त किए। श्रीमती नीलम लोढ़ा, श्रीमती विजया सुराणा, श्रीमती मंजू जैन ने भी भावाभिव्यक्ति दी।