- शांतिदूत ने की कर्मवाद की व्याख्या
- आचार्यश्री भिक्षु का कल 296 वां जन्मोत्सव
21 जुलाई 2021, बुधवार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान। सत्यम् शिवम् सुंदरम् की अपूर्व समन्विति परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जिनके अमृत प्रवचन श्रवण मात्र से जीवन को एक नई दिशा मिलती है वस्त्रनगरी भीलवाड़ा में पावन प्रवास करा रहे है। गुरुवर के दर्शन हेतु प्रातः से सायंकाल तक श्रद्धालुओं का आवागमन निरन्तर जारी है। निर्धारित व्यवस्थानुसार कोविद के मद्देनजर समुचित सुरक्षा उपायों के साथ श्रावक समाज सेवा-धर्माराधना का लाभ ले रहा है।
तेरापंथ नगर भीलवाड़ा के महाश्रमण सभागार में मंगल उद्बोधन में आचार्य श्री ने कहा- जैन दर्शन के मुख्यतः तीन आयाम है- आत्मवाद, कर्मवाद और लोकवाद। ये तीनों आपस में परस्पर संबंधित है। जैन दर्शन में आत्मा के शाश्वत अस्तित्व को स्वीकारा गया है। आत्मा अनन्त ऐश्वर्य संपन्न है, आत्मा में परम शक्ति है। आत्मा ही अपनी सुख दुख की कर्ता होती है। जो आत्मा राग-द्वेष से मुक्त हो जाती है वह फिर परम अवस्था को प्राप्त कर वन्दनीय बन जाती है।
गुरुदेव ने आगे कहा कि कर्मवाद के अनुसार पुण्य-पाप अपने-अपने होते है। जैसी करनी वैसी भरनी। अपने कर्मो का फल व्यक्ति को स्वयं ही भोगना पड़ता है। निमित्त कोई भी मिल जाए पर कर्मफल व्यक्ति के स्वयं के होते है। हमारे जीवन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को कर्मवाद से आंका जा सकता है। आठ कर्मों के द्वारा ही जीवन में अनुकूलता-प्रतिकूलता होती रहती है। इसलिए व्यक्ति को हमेशा गलत कार्यों से बचते हुए शुभ योग में रहने का प्रयास करना चाहिए। साधना में आगे बढ़कर हम अपनी आत्मा का कल्याण कर सकते है।
कार्यक्रम में मुनि श्री शांतिप्रिय, साध्वी श्री सोमयशा ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। स्वागत के क्रम में टीपीफ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री पंकज ओस्तवाल, श्री अशोक सिंघवी, श्री नवीन बागरेचा, श्री लक्ष्मीलाल गांधी, श्री गौतम दुगड़, श्री बलवंत रांका, श्री विनोद पितलिया, श्री अभिषेक कोठारी, श्री विमल पितलिया, श्री कुलदीप मारू, सुश्री मनीषा हिरण, श्रीमती नीतू ओस्तवाल एवं हिरेन चोरडिया ने प्रस्तुति दी।
कल 22जुलाई को आचार्य भिक्षु का 296वा जन्मोत्सव
प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को सम्पूर्ण देश में तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु का जन्मोत्सव एवं बोधि दिवस हर्षोल्लास से मनाया जाता है। विक्रम संवत 1783 में जोधपुर संभाग के कंटालिया ग्राम में आचार्य श्री भिक्षु का जन्म हुआ। अध्यात्म जगत में क्रांति कर उन्होंने धर्म की नई अलख जगाई। आचार्य भिक्षु द्वारा प्रतिपादित मर्यादाएं आज भी लाखों लोगों के आत्मिक उन्नति का पथ प्रशस्त कर रही है।
चतुर्दर्शी से चातुर्मास का शुभारंभ
आषाढ़ शुक्ला चतुर्दर्शी से परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के भीलवाड़ा चातुर्मास का प्रारंभ हो रहा है। वर्षाकाल के इन चार महीनों में विधि अनुसार जैन साधु समुदाय विहार आदि नही करते है। सन् 2010 में आचार्य बनने से लेकर अभी तक आचार्य श्री महाश्रमण जी ने सरदारशहर, केलवा, जसोल, लाडनूं, दिल्ली, नेपाल, गुवाहटी, कलकत्ता, चेन्नई, हैदराबाद आदि में चातुर्मास सम्पन्न किए है। केलवा पश्चात मेवाड़ में आचार्य श्री महाश्रमण के चातुर्मास का यह दूसरा अवसर है।