मुंबई:सुप्रीम कोर्ट ने भले ही महाराष्ट्र सरकार की ओर से दिए गए मराठा आरक्षण को खारिज कर दिया है, लेकिन अब इस पर राजनीतिक गलियारों में जंग तेज हो सकती है। महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी शिवसेना ने सोमवार को अपने मुखपत्र सामना में लिखा कि मराठा रिजर्वेशन की लड़ाई दिल्ली में लड़ी जाएगी। सामना के संपादकीय में कहा गया है कि यह जरूरी है कि मराठा आरक्षण के मुद्दे पर दिल्ली का दरवाजा खटखटाया जाए। सामना में पार्टी ने लिखा, ‘यह टकराव निर्णायक साबित होगा। विपक्ष की ओर से महाराष्ट्र में अस्थिरता पैदा करने के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल किया जाएगा। ऐसे में उन्हें समय पर रोकने की जरूरत है।’
राज्यसभा सांसद छत्रपति संभाजी राजे का जिक्र करते हुए सामना में लिखा गया कि उन्होंने इसे लेकर आक्रामक रुख अपनाया है और 6 जून तक इस संबंध में कोई फैसला न होने पर सड़कों पर आंदोलन की चेतावनी दी है। सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी का जिक्र करते हुए सामना में कहा गया है कि केंद्र सरकार के पास ही शक्ति है कि वह आरक्षण को लेकर कानून बना सके। संभाजी राजे के बयान का जिक्र करते हुए सामना में लिखा गया, ‘सरकार के पास तीन कानूनी विकल्प हैं। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार की अर्जी दाखिल करना। यदि वह खारिज हो जाती है तो फिर संशोधित अर्जी देना। उसके भी असफल रहने पर संविधान के आर्टिकल 37 के तहत राष्ट्रपति से मांग करना।’
शिवसेना ने उठाई मराठी अस्मिता की बात, कहा- तैयार करना होगा संयुक्त महाराष्ट्र का माहौल
सामना में मराठा अस्मिता की बात करते हुए लिखा गया है कि समुदाय को अपने आत्मसम्मान के लिए दिल्ली का दरवाजा खटखटाना होगा। उन्हें दिल्ली में संयुक्त महाराष्ट्र की लड़ाई के लिए एक बार फिर से माहौल तैयार करना होगा। शिवसेना के मुखपत्र में कहा गया कि महाराष्ट्र के निर्माण में मराठा समुदाय का अहम योगदान रहा है। लेकिन आज उसे प्राकृतिक आपदाओं के चलते कमजोर खेती का संकट झेलना पड़ रहा है। इसके अलावा रोजगार के अवसरों की भी कमी है। राज्य सरकार की ओर से दिए गए 18 फीसदी आरक्षण को लेकर सामना में कहा गया कि मराठा समुदाय के आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ेपन को देखते हुए यह फैसला लिया गया था।
जानें, क्यों सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया था आरक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई, 2021 को मराठा आरक्षण के राज्य सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत का कहना था कि मराठा रिजर्वेशन के चलते आरक्षण की 50 फीसदी तय सीमा का उल्लंघन होगा। 5 जजों की बेंच ने कहा था कि मराठा समुदाय को आरक्षण के दायरे में लाने के लिए शैक्षणिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ा नहीं घोषित किया जा सकता।