एक बहुत अमीर औरत अपने मनोचिकित्सक के पास जाती है और उसे कहती है कि उसे लगता है कि उसका पूरा जीवन बेकार है, उसका कोई अर्थ नहीं है। वे उसकी खुशियां ढूंढने में मदद करें।
मनोचिकित्सक ने एक बूढ़ी औरत को बुलाया जो वहाँ साफ़-सफाई का काम करती थी और उस अमीर औरत से बोला- ये आपको बताएंगी कि इन्होंने जीवन में कैसे खुशियां ढूंढी। उस बूढ़ी औरत ने बताया कि उसके पति की मलेरिया से मृत्यु हो गई थी और उसके तीन महिने बाद ही उसके बेटे की भी अकस्मात मौत हो गई। इन दोनों के जाने के बाद जीवन में उसके सामने कोई लक्ष्य ही नहीं बचा था। महिला ने बताया कि उसे नींद आनी बंद हो गई थी, भूख नहीं लगती थी और मुस्कुराना तो कोसों दूर की बात थी।
वृद्धा ने बताया कि एक दिन एक बिल्ली का बच्चा उसके पीछे लग गया। बाहर बहुत ठंड थी इसलिए उस बच्चे को अंदर आने दिया। उस बिल्ली के बच्चे के लिए थोड़े से दूध का इंतजाम किया और वह सारी प्लेट सफाचट कर गया। दूध पीने के बाद वह बच्चा उसके पैरों में लिपट गया और चाटने लगा।
वृद्धा के अनुसार उस दिन बहुत महीनों बाद वह मुस्कुराई, तभी उसके मन में ख्याल आया कि जब इस बिल्ली के बच्चे की सहायता से वह इतने दुखों में भी हंस सकती है तो वह तो फिर भी मनुष्य है। बस, इसी फलसफे को जीवन में उतार लिया और लोगों की मदद की ठान ली।
इसके बाद वह प्रत्येक दिन कुछ न कुछ ऐसा करती है, जिससे दूसरों को खुशी मिले। इससे उसे खुशी तो मिलती ही, मन भा शांत हो जाता है। महिला ने दावा किया कि आज वह ऐसे किसी भी शख्स को नहीं जानती जो उससे बेहतर जीवन जी रहा हो? मैंने खुशियां ढूंढी हैं, दूसरों को ख़ुशी देकर।
यह सब सुन कर वह अमीर औरत रोने लगी, उसके पास वह सब था जो वह पैसे से खरीद सकती थी पर उसने वह चीज खो दी थी जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती। हमारा जीवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने खुश हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी वजह से कितने लोग खुश हैं।