भारतवर्ष की तपोमयी गौरवशाली उज्ज्वल संस्कृति के जाज्वल्यमान नक्षत्र थे – भगवान महावीर । सत्य की तलाश के लिए राजसी ठाट – बाट का त्याग करने वाले अलबेले संत थे भगवान महावीर । अतीत और वर्तमान के तट बंध में चलने वाले जीवन को भविष्य की उज्ज्वल झलक देने वाले संत थे महावीर ।
हजारों वर्षों के बाद भी हर दिल मे जिनका संबोध जिन्दा है , ऐसे थे भगवान महावीर । भाग्य की धुरी को प्रबल पुरुषार्थ से मोड़ने वाले पराक्रम के प्रचण्ड पुंज थे भगवान महावीर । संयम , पवित्रता , सादगी को चेतना के तल पर उतारने वाले थे भगवान महावीर । तप त्याग की अलख जगाकर विराग से वीतरागता की कक्षा में प्रवेश करने वाले थे भगवान महावीर ।जिनकी पुनीत सन्ननिधि में आजन्म विरोधी जीव जन्तु भी अपना वैर त्याग देते थे – ऐसे संत थे भगवान महावीर ।
आज भगवान महावीर का नाम विश्व-विश्रुत है । उन्होंने अहिंसा , अपरिग्रह और अनेकान्त के माध्यम से एक ऐसा अमिट प्रकाश दुनिया को दिया जो सहस्त्र शताब्दियों के बाद भी उसी चमक और आब के साथ प्रकाशमान है ।उन्होंने कहा – ” सव्वभूय खेमकरी अहिंसा ” अहिंसा सभी प्राणियों के लिए कल्याणकारी है । समूची मानव जाति का हित उसीमें निहित है । भगवान महावीर ने कोरे उपदेश नही दिए बल्कि वे स्वयं प्रयोगधर्मा थे । उन्होंने अहिंसा का कोरा उपदेश नही दिया बल्कि स्वयं ने अहिंसामय जीवन जीया । उनके जीवन सफर के हर डगर पर , हर पड़ाव पर अहिंसा की अमिट छाप देखी जा सकती है । शिष्य ने पूछा – भंते ! अहिंसा का प्रतिफल क्या है ? भगवान महावीर ने कहा – अहिंसा का फलित है – ह्रदय की कोमलता । भगवान महावीर के जीवन की घटनाएं आज भी इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि उनकी अहिंसा ,करुणा , कोमलता कितनी प्राणवान थी । माता – पिता के जीवनकाल में दीक्षित नही होने का संकल्प , बड़े भाई नन्दीवर्धन के आग्रह के कारण कुछ दिन और घर मे रहने की स्वीकृति , महासती चंदनबाला की दास्य कर्म से मुक्क्ति , अविनीत शिष्य गौशालक के प्रति भी समत्वभाव , संगम द्वारा छः माह तक कष्ट देने के बाद भी उसके प्रति बिमल भावना , ऐसे एक नही अनगिनित प्रसंग भगवान महावीर की करुणा को दर्शित कर रहे है ।सदियों से जैन समाज आज के दिन उनकी जन्मजयंती मनाता है ।
भगवान महावीर एक प्रकाश स्तम्भ – साध्वी अणिमा श्री
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