पुणे। महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेशकुमार जी ठाणा-2 के सानिध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के तत्वावधान में पश्चिम महाराष्ट्र स्तरीय जैन संस्कार विधि कार्यशाला का आयोजन स्वयंवर मंगल कार्यालय, पुणे में स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा किया गया।
इस अवसर पर अभातेयुप के राष्ट्रीय महामंत्री संदीप कोठारी कार्यक्रम अध्यक्ष एवं जैन संस्कारक दीपचंद नाहर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे। जैन संस्कार विधि के केंद्रीय संयोजक एवं प्रकाशन प्रभारी मनोज संकलेचा, कार्यकारिणी समिति सदस्य नरेश चपलोत, अमित कांकरिया आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे।
इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेशकुमार जी ने कहा मनुष्य सामाजिक प्राणी है, वह समाज में जीता है। हर समाज की अपनी परंपराएं होती है। परंपराओं की पृष्ठभूमि में दो बातें होती है अनुकरण व विवेकपूर्ण आचरण। अनुकरण में उचित-अनुचित पर ध्यान नहीं दिया जाता। चले आ रहे क्रम का अनुवर्तन होता रहता है। विवेक पूर्ण आचरण में भी अनुकरण हो सकता है पर वहां भेड़ चाल नहीं होती। वहां उचित परंपराओं एवं अपनी संस्कृति को महत्व दिया जाता है। संस्कारों की समूहगत परंपरा संस्कृति कहलाती है। जैन संस्कार एवं जैन संस्कृति अपने आप में विशिष्ट है। जैन संस्कार विधि जैनत्व को पुष्ट करने का एक सशक्त माध्यम है। इसमें मुख्यतः आस्था, संयम और अहिंसा इन तीन सूत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जैन संस्कार से तात्पर्य है कि जैनी का आचार, विचार, व्यवहार जनत्व के अनुरूप हो। मुनि श्री ने जैन संस्कार विधि के उपक्रम को युग की जरूरत बताते हुए सभी के प्रति मंगल भावना व्यक्त की।
इस अवसर पर मुनि परमानंद ने कहा स्थाई जीवन मूल्य संस्कृति व व्यावहारिक मूल्य संस्कार कहलाते हैं। जैन संस्कृति एवं संस्कारों का संरक्षण करना जैनों का अहम दायित्व है। अपने संस्कारों व संस्कृति पर गौरव महसूस करना चाहिए।
इस अवसर पर राष्ट्रीय महामंत्री संदीप कोठारी ने अपने ओजस्वी व्यक्तित्व में कहा – संस्कार ही हमारा मूल है। संस्कारों का संवर्धन करना हमारी जिम्मेदारी है। पूज्यवरो की दृष्टि के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष विमल जी के नेतृत्व में आज पूना से जैन संस्कार विधि कार्यशाला का आगाज हुआ है। शाखा परिषदों के माध्यम से जैन संस्कार विधि के इस कार्यक्रम को पूरे देश में फैलाना है। यह हमारा स्वप्न ही नहीं संकल्प है। आध्यात्मिक शक्तियां और संस्कार हमारे जीवन की आधारशिला हैं।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता जैन संस्कारक दीपचंद नाहर ने मंगल भावना पत्र का विश्लेषण करते हुए कहा कि हमें स्वयं को जागृत होना होगा तभी हम संस्कारों की धरोहर को सुरक्षित रख सकेंगे। जैन जीवन शैली में जैन संस्कार को परिभाषित किया गया है। गुरुदेव तुलसी की दूरदृष्टि का यह का ही परिणाम है कि मांगलिक कार्यों के लिए जैन संस्कार विधि का निर्माण हुआ। जो बहुत ही प्रभावी मंत्रों से युक्त है। आभातेयुप जैन संस्कारको का निर्माण कर जैन संस्कार के संदर्भ में महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। प्रत्येक जैन श्रावक को जन्म से मृत्यु तक के सभी मांगलिक एवं विधि कार्यों को जैन संस्कारों के अनुसार करना चाहिए। केंद्रीय संयोजक मनोज सकलेचा ने अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम का शुभारंभ मुनिश्री द्वारा नमस्कार महामत्रोच्चार से हुआ। विजय गीत का गायन पुणे, पिंपरी-चिंचवड़ शाखा परिषद के सदस्यों ने किया। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन दीपचंद नाहर ने किया। कार्यशाला शुभारंभ की विधिवत घोषणा महामंत्री संदीप कोठारी ने की। स्वागत भाषण तेयुप अध्यक्ष दिनेश खिवेंसरा ने, श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा पुणे के मंत्री संजय मरलेचा, पिंपरी-चिंचवड़ सभा के अध्यक्ष करणसिंह सिंघी, टीपीफ पुणे के अध्यक्ष भूषण कोटेचा, तेरापंथ महिला मंडल की पूर्व अध्यक्षा पुष्पा कटारिया ,राजू कांकरिया, फकीरचंद आंचलिया आदि ने शुभकामनाएं देते हुए अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर जैन संस्कार विधि पर तेरापंथ युवक परिषद्, पुणे के सदस्यों की के द्वारा सुंदर नाटिका प्रस्तुत की गई।
आभार ज्ञापन तेयुप उपाध्यक्ष हरीश श्रीश्रीमाल ने व कार्यक्रम का संचालन मंत्री धर्मेंद्र चौरडिया ने किया इस कार्यशाला में पुणे, पिंपरी – चिंचवड़ आदि क्षेत्रों से अच्छी संख्या में श्रद्धालु गण उपस्थित थे।
जैन संस्कार विधि जैनत्व को पुष्ट करने का सशक्त माध्यमः मुनि जिनेशकुमार
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