मुंबई। प्रजा ने ‘मुंबई में पुलिस और कानून व्यवस्था की स्थिति’ पर अपनी रिपोर्ट जारी की जिसमें मानव संसाधन, निगरानी और जवाबदेही, संवेदीकरण और पुलिस-नागरिक संबंधों में सुधार जैसे विभिन्न पहलुओं में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया। मुंबई पुलिस महामारी और आगामी लॉकडाउन के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने में आगे रही है। हालांकि मुंबई पुलिस ने महामारी के दौरान कई और कार्य किए है। लेकिन वह भारी दबाव में काम कर रही है, और महामारी से पूर्व ही अधिक काम के बोझ से जूझ रही थी।
प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, 2019-20 में, स्वीकृत पदों की तुलना में मुंबई में पुलिस कर्मियों की 18% कमी थी। जिससे कि, मौजूदा कार्यबल पर प्रभाव पड़ता है, जैसे काम के विस्तारित घंटे और काम करने की परिस्थितियां, जो पुलिस के समग्र व्यवस्था को प्रभावित करती है, जिससे उनके कर्तव्यों के प्रभावी प्रदर्शन की क्षमता में कमी आती है”।
प्रजा फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंधक ट्रस्टी निताई मेहता ने इस दौरान कहा कि “पिछले कुछ वर्षों में, पुलिस कर्मियों की बड़ी संख्या, जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के कारण सीधे तौर पर काम और काम की परिस्थितियों में जोखिम से जुड़ा हुआ है -उदाहरण के लिए अप्रैल 2017 से अक्टूबर 2020 में पुलिस कर्मियों की मौत का सबसे बड़ा कारण दिल का दौरा (113 मौतें) था । इसी अवधि में आत्महत्या से 16 मौतें भी दर्ज हुईं। रहन-सहन के संदर्भ में भी हम पुलिस बल के लिए पर्याप्त आवास उपलब्ध कराने में असमर्थ रहे हैं-मार्च 2020 तक, केवल 38% पुलिस बल को पुलिस आवास आवंटित किया गया था”, प्रजा फाउंडेशन के निदेशक मिलिंद म्हस्के ने कहा।
पुलिस कर्मियों की कमी और उनके काम की /रहन-सहन की परिस्थितियों की खराब हालत बदले में पुलिस के समग्र प्रदर्शन को प्रभावित करती है, जैसे कि मामलों की जांच में 2019 में आई.पी.सी के मामलों में 64% जांच लंबित थी। “स्वीकृत पदों में रिक्ति का न्यायपालिका के प्रदर्शन पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जहां लोक/सार्वजनिक अभियोजकों में 28% की कमी और सत्र न्यायालय के न्यायाधीशों में 14% की कमी देखी गयी थी। 2019 में मुंबई में, आई.पी.सी के अंतर्गत अदालतों में 2,49,922 मामलों की सुनवाई होनी थी, जिनमें से सिर्फ 6% मामलों में निर्णय दिया गया था”, मेहता ने जोड़ते हुए कहा,।
“2013 से 2017 तक सत्र न्यायालय के मामलों के लिए किए गए एक जीवनचक्र अध्ययन से पता चलता है कि एफ.आई.आर से चार्जशीट दर्ज होने में औसतन 11.1 महीने लगे, जबकि यह 90 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए। इसके अलावा पहली सुनवाई से निर्णय तक, औसतन 2.4 साल लग गए”, म्हस्के ने कहा।
एफ.आई.आर से निर्णय देने तक, सबसे ज्यादा समय डकैती (5.8 साल) के मामलों में लिया गया। जांच और परीक्षण के लिए अधिक समय लगने के बावजूद, इससे दोषसिद्धि दरों में सुधार नहीं हुआ है -मुंबई की सत्र न्यायालय में 2013 से 2017 तक केवल 24% मामलों में दोषियों को सजा दी गई।
उच्च लंबित मामलों को कम करने के लिए, अपनाए गए तरीकों में से एक, विशेष न्यायालयों के माध्यम से मामलों को समय पर पूरा करने के लिए स्पष्ट प्रावधानों के साथ विशेष कानून पारित किया गया था- हालांकि ये भी सफल नहीं रहा हैं । ऐसा ही एक उदाहरण, लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम 2012 है, जिसमें बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामले में नियंत्रण और त्वरित न्याय प्रदान करने की आवश्यकता को मान्यता देते हुए इन मामलों को विशेष पॉक्सो न्यायालय में सुनवाई के दौरान संज्ञान की तारीख से एक वर्ष के भीतर पूरा करने का प्रावधान किया गया था।
“लेकिन 2019 में, जबकि पॉक्सो के 1,319 मामले दर्ज किए गए थे, अदालतों में सिर्फ 448 मामलों की सुनवाई हुई, जिनमें से केवल आधे (222) विशेष पॉक्सो अदालत में पेश किये गए। इसके अलावा, केवल 20% फैसले पॉक्सो अदालतों में (अधिनियम के अनुसार) 1 वर्ष के अंदर सुनाए गए”, मेहता ने कहा ।
पुलिस और न्यायिक प्रणाली में सुधार लाने के लिए, सबसे पहले रिक्त पदों को भरना, मौजूदा कर्मियों पर बोझ कम करने वाले सुधारों को महत्व देना और उनके लिए बेहतर काम करने की परिस्थिति सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, ताकि वे अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन कर सकें । इससे जांच-पड़ताल की गुणवत्ता में सुधार होगा और समय पर न्याय भी होगा ।
दूसरा बड़ा, और अधिक चुनौतीपूर्ण पहलू, प्रणाली के भीतर काम कर रहे लोगों को जागरूक, संवेदनशील बनाना और प्रशिक्षित करना है । किसी भी पीड़ित को सबसे पहले एक निष्पक्ष, सहकारी और संवेदनशील पुलिस और न्यायपालिका चाहिए ।
तीसरा, किसी अन्य प्रणाली या शासन संरचना की तरह, निगरानी प्रणाली में जवाबदेही सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है । इसके अनुरूप, पुलिस के विरुद्ध शिकायत करने के लिए मंडल स्तर पर पुलिस शिकायत प्राधिकरण (वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर और उससे नीचे की रैंक) जैसे सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है, और निर्णय लेने के लिए संस्था को ज़्यादा और स्वतंत्र प्राधिकार दिए जाने की आवश्यकता है।
“हमें विश्वास और सहयोग के पुलिस-सार्वजनिक संबंध के माध्यम से लोगों को पुलिस शासन में भागीदार बनाने की आवश्यकता है, यह न केवल प्रभावी रूप से रिपोर्ट करने, अपराधों की जांच करने या कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है, बल्कि अपराध के अंतर्निहित कारणों को संबोधित करने और ढंग से निपटने के लिए भी जरूरी है”, मेहता ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा।
भारी दबाव में है मुंबई पुलिस, प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट में खुलासा
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