नई दिल्ली:कोरोना महामारी के दौर में हर 10 में से चार पुरुष मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहा है। करीब इतने ही लोगों को लगता है कि उनके पास बातचीत करने के लिए कोई व्यक्ति नहीं है। अभियान ‘टाइम टू चेंज’ के तहत किए गए एक शोध में यह दावा किया गया है। अध्ययन के मुताबिक 45 फीसदी पुरुष पिछले छह महीने से मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं। अध्ययन के तहत ब्रिटेन के 1,500 लोगों पर सर्वेक्षण किया गया। इसमें पाया गया कि दोस्तों से आमने-सामने की मुलाकात की अभाव में 44 फीसदी लोगों को महसूस होता है कि उनसे बातचीत करने के लिए कोई नहीं है। 44 फीसदी लोगों ने माना कि महामारी के कारण वे अपने दोस्तों के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक करने की दिशा में कोई सहयोग नहीं कर सके।
आभासी दुनिया पर भरोसा नहीं:
तकनीक की सुलभता के बावजूद 53 फीसदी पुरुषों ने कहा कि आभासी कॉल के जरिये मानसिक स्वास्थ्य के बारे में चर्चा करने में खुद को असहज महसूस करते हैं। यह भी पता चला कि मदद के लिए जिन लोगों को फोन किया जा सकता था, ऐसे लोगों की संख्या एक आदमी के पास औसतन तीन से कम थी।
दोस्त कहे अच्छा हूं, तो भी पूछें- कैसे हो
टाइम-टू-चेंज ने लोगों से अपील की है कि यदि उन्हें अपने किसी दोस्त या परिवार के सदस्य के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने की आशंका हो, तो वे इसे दोबारा सुनिश्चित करें। डॉ. जो लॉउघ्रान ने कहा-दुनिया बदली है लेकिन अच्छा दोस्त होना नहीं। उन्होंने कहा कि यदि कोई फोन पर कहे कि वह अच्छा है, तो भी वह अच्छा नहीं हो सकता। इसलिए यदि कोई दोस्त सामूहिक बातचीत के दौरान खामोश रहता है, तो उससे संपर्क करें। पूछने पर खुद को अच्छा बताए, तो भी उससे बार-बार पूछें-कैसे हो। लॉउघ्रान ने माना कि आमने-सामने की मुलाकात नहीं होने से हम दोस्तों के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के लक्षणों को नहीं पकड़ सकते।
जॉब असुरक्षा ने बढ़ाया तनाव:
एक अन्य शोध में पता चला कि महामारी के दौरान जॉब असुरक्षा से जुड़ी चिंता ने भी कर्मचारियों में मानसिक तनाव पैदा किया है। नेशनल सेंटर फॉर सोशल रिसर्च के अध्ययन में पता चला कि थोड़े दिन के अवकाश पर भेजे गए 27 फीसदी कर्मचारी और काम कर रहे 10 फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि मई महीने में जॉब असुरक्षा महसूस हुई। जबकि महामारी से पहले यह अनुपात केवल पांच फीसदी था। यह भी पाया गया कि महामारी से पहले के मुकाबले अप्रैल में कर्मचारियों में तनाव 60 फीसदी अधिक था, हालांकि मई महीने में यह 50 फीसदी अधिक था। जिन कर्मचारियों को थोड़े दिन के अवकाश पर भेजा गया था, उनके मुकाबले काम करने वाले कर्मचारियों में मानसिक तनाव अधिक था।