शनिदेव को कर्मफल दाता यानी न्याय का देवता माना जाता है। कहते हैं कि वह लोगों को उनके कर्म के हिसाब से फल देते हैं। ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को क्रूर माना गया है। मतलब अगर इस ग्रह की किसी जातक की कुंडली पर अशुभ छाया पड़ती है तो धनवान व्यक्ति बर्बाद तक हो सकता है। वहीं शुभ प्रभाव पड़ने पर भिखारी भी राजा बन सकता है। शनि ग्रह को धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना गया है। शनि लगभग ढाई सालों में अपना राशि परिवर्तन करता है। वहीं एक राशि में शनि को दोबारा आने में 30 साल का समय लगता है। जानिए कुंडली के किस भाव में शनि देते हैं शुभ और अशुभ फल और साथ ही प्रसन्न करने के उपाय-
शनि कुंडली के इन भावों में देते हैं शुभ और अशुभ फल-
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अगर जातक की कुंडली में तीसरे, छठवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में शनि ग्रह है तो यह हमेशा शुभ फलदायी होता है। अगर जातक की कुंडली में शनि 1, 2, 5 या 7 वें भाव में विराजमान है तो यह हमेशा अशुभ फल देते हैं। इसके अलावा 8 और 12 वें भाव में भी शनि अशुभ फल देते हैं।
जानिए शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय-
शनि महाराज की पूजा के बाद राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए।
शनि भक्त इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवंती का फूल,तिल,तेल,गु़ड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीप प्रज्वलित करना चाहिए।
शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने-अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।
इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
शनि की शांति के लिए नीलम को भी पहना जा सकता है।
शनिश्वर के भक्तों को संध्या काल में शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना चाहिए और उड़द दाल में खिचड़ी बनाकर शनि महाराज को भोग लगाना चाहिए।
सूर्यपुत्र शनिदेव की प्रसन्नता हेतु इस दिन काली चींटियों को गुड़ एवं आटा देना चाहिए। इस दिन काले रंग का वस्त्र धारण करना चाहिए।
(इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)