आदित्य तिक्कू।।
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में फिर एक बेटी दुष्कर्म का शिकार हो गई। इस बेटी को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एडमिट किया गया था, जहां कल रात उसकी मौत हो गई। दुष्कर्म के बाद आरोपियों ने इस बेटी की जीभ काटी और रीढ़, गर्दन की हड्डी भी तोड़ डाली थी। इतनी बर्बरता होने के बाद भी इन चारो आरोपियों को गिरफ्तार कर सिर्फ जेल में डाल दिया गया है। पढ़िये नहीं शर्म कीजिये। ‘निर्भया’ से लेकर अब तक कुछ नहीं बदला है।
भारत की बेटी जो उत्तर प्रदेश के हाथरस में दो हफ्ते पहले गैंगरेप का शिकार हुई कल 29 सितंबर को उसकी मौत हो गई । 19 साल की ये बच्ची दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराई गई थी, पीड़िता को जब इलाज की जरूरत थी तब उसे थाने में रखा गया। 14 सितंबर को जब बेटी की हालत बिगड़ने लगी तब उसके रिश्तेदारों ने उसे पास के एक अस्पताल में लेकर गए थे। जहां पर पुलिस ने शुरुआत में सिर्फ गला दबाने और SC-ST Act के तहत ही मामला दर्ज करके आगे की कार्रवाही की खानापूर्ति करती रही।
गैंगरेप की धारा लगाने में उत्तर प्रदेश पुलिस को एक हफ्ते से ज्यादा का समय लगा। 22 सितंबर को इस बेटी का बयान दर्ज होने के बाद ही पुलिस ने गैंगरेप की धारा लगाई। 27 सितंबर को तबीयत बिगड़ने पर बेटी को अलीगढ़ से दिल्ली के सफदरजंग अस्तपाल लाया गया था। जहां कल 29 सितंबर को मौत हो गई।
22 सितंबर को अलीगढ़ के अस्पताल में गैंगरेप की बात इस बेटी ने अपने बयान में दर्ज कराई। उत्तर प्रदेश पुलिस यह भी कह रही है कि बेटी ने तीन बार अपने बयान को बदला है। पुलिस अपनी सफाई में अब चाहे जो दलील दे लेकिन सचाई यही है कि बीते दो सप्ताह से अस्पताल दर अस्पताल अपनी जिंदगी की जंग लड़ते हुए अलविदा हो गई। निर्भया गैंग रेप के बाद से अब तक यानी 8 वर्षों में कुछ नहीं बदला, जो दर्द निर्भया के पिता का था वही हाथरस की इस बच्ची के पिता का है। ईश्वर यह दिन किसी को न दिखाए पर कल हमारी बच्ची के साथ भी हो सकता है। यदि आप को लग रहा है मैं भय फैला रहा हूं तो आप गलत है और आप वास्तविकता से अनभिज्ञ है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी NCRB के मुताबिक वर्ष 2012 में प्रतिदिन रेप की 68 घटनाएं हुईं। जिसकी संख्या 2013 में बढ़कर 92 हो गईं, 2014 मे 100 रेप के मामले रोजाना दर्ज हुए। वर्ष 2016 में रोजाना106 रेप केस दर्ज हुए है। इन आंकड़ों में बढ़ोत्तरी के पीछे एक तर्क यह भी है कि निर्भया केस से पहले रेप के बहुत सारे मामले दर्ज ही नहीं होते थे, कानून सख्त होने और समाज में जागरूकता बढ़ने से इन मामलों की शिकायतें अधिक हो रही हैं, लेकिन बतौर समाज आखिर कब तक हम आंकड़ेबाज़ी के नाम पर हकीकत से इंकार करते रहेंगे।
दो दिन पहले हमने “डॉटर्स डे” धूमधाम से मनाया, देश की बेटियों को लेकर तमाम बातें कही गईं, तस्वीरें साझा की गई बेटियों के सुनहरे भविष्य की कामना की गई लेकिन क्या हम एक समाज के तौर पर देश की बेटियों को आज ये आश्वासन दे सकते हैं कि अब बस और नहीं, अन्याय के खात्मे का कोई समय सारिणी तय कर सकते हैं ?
हाथरस जैसी गैंगरेप की घटनाएं पूरे देश को शर्मसार करती हैं। इंसानियत को दागदार करती हैं। इसी गुस्से के बीच तुरंत न्याय की मांग भी बीच में उठती है और जब हैदराबाद की घटना के बाद आरोपियों का एनकाउंटर हो जाता है तब समाज का वो चेहरा सामने आता है जिसमें वो पुलिस पर फूल बरसातें हैं, उनके जिंदाबाद के नारे लगाते हैं। यह अनुचित है दोषियों को सज़ा क़ानूनी प्रक्रिया से ही मिलनी चाहिए।
इस घटना के बाद इंस्टैंट जस्टिस की बहस देश में छिड़ी और जनमानस के बीच जो भावनाएं दिखीं उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि तुरंत न्याय समाज की पसंद है। अभी अपराधियों को सलाखों के पीछे की मांग होती है अन्यथा अपराधियों में सलाखों की मांग उठेगी। कानून की सैकड़ों धाराओं और अदालती सिस्टम में उलझी न्याय व्यवस्था में यदि बड़े सुधार नहीं हुए तो इंस्टैंट जस्टिस का दबाव हमारी व्यवस्था पर बढ़ जाएगा। सरकार व्यवस्था ठीक करे और हम अपने लड़को को।
‘निर्भया’ से लेकर अब तक कुछ नहीं बदला
Leave a comment
Leave a comment