आदित्य तिक्कू।।
कृषि सुधार संबंधी विधेयकों के पारित होने के बाद कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल यह माहौल बनाकर आम लोगों और खासकर किसानों को गुमराह ही कर रहे हैं कि सरकार ने ध्वनिमत से विधेयकों को पारित कराकर सही नहीं किया। यदि उन्हें ध्वनिमत की व्यवस्था स्वीकार्य नहीं थी तो फिर उन्होंने मत विभाजन की मांग क्यों नहीं की? हैरानी नहीं कि संख्याबल की कमजोरी उजागर होने से बचने के लिए ही यह मांग करने से बचा गया हो। किसानों को ऐसे दलों के बहकावे में आने से बचना होगा, जो कल तक वह सब कुछ करने की जरूरत जता रहे थे, जिसे कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) तथा कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक के जरिये किया गया है। कांग्रेस ने तो इस तरह की बातें अपने घोषणा पत्र में भी दर्ज की थीं।
कांग्रेस विरोध में कितनी गंभीरता समझना है तो आपको इनके पहले के घोषणा पत्र को देखने की आवश्यकता है, जो शायद छपने के पहले या बाद में इन्होने भी नहीं पढ़ा। क्योंकि जिसका विरोध हो रहा है। वर्ष 2019 और 2014 के घोषणापत्र में पार्टी ने ऐसे ही कानून का वादा किया था। 2019 के चुनाव घोषणापत्र में कांग्रेस ने वादा किया था कि वो सत्ता में आने के बाद Agricultural Produce Market Committee यानी APMC Act को खत्म कर देगी, ताकि किसान अपनी मर्जी से कहीं भी फसल बेच सकें। किसानों पर अपनी पैदावार दूसरे राज्यों या दूसरे देशों में सीधे बेचने पर भी कोई रोक नहीं होगी। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में यह भी लिखा है कि वर्ष 1955 का आवश्यक वस्तु अधिनियम, अब पुराना हो चुका है। अब उस तरह के नियंत्रण की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए कांग्रेस नया कानून लाएगी, जिसमें सिर्फ युद्ध जैसे हालात में ही आवश्यक वस्तु कानून को लागू किया जाएगा। 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस सरकार ने फलों और सब्जियों को APMC एक्ट से बाहर करने का ऐलान किया था, ताकि किसान अपनी पैदावार जहां चाहें बेच सकें। कांग्रेस ने इसे अपनी सरकार वाले राज्यों में लागू भी किया था, जी हा लागू किया था।
पूर्व प्रधानमंत्री व प्रसिद्ध अर्थशात्री मनमोहन सिंह की सरकार ने Contract Farming पर एक कमेटी बनाई थी, जिसने 2013 में अपनी सिफारिशें दी थीं। इसमें माना गया था कि किसान को कहीं भी अपनी फसल बेचने की छूट न मिलने के कारण वो बिचौलियों के जाल में फंस जाते हैं और उन्हें पैदावार का उचित दाम नहीं मिलता। 2013 का कांग्रेस पार्टी ने एक ट्वीट किया था जिसमें कहा गया कि सभी कांग्रेस शासित राज्यों में फलों और सब्जियों को APMC एक्ट की लिस्ट से बाहर किया जाता है। इस एक्ट के बाहर आने से किसान अपनी फल सब्जियों को मंडी से बाहर खुले बाजार में भी बेच सकते हैं। दिसंबर 2013 में कांग्रेस नेता अजय माकन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि किसानों को उचित मूल्य दिलाने और महंगाई को कम करने के लिए मंडी से जुड़े नियम खत्म होने चाहिए। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजय माकन के साथ राहुल गांधी भी मौजूद थे। इसकी जानकारी मेरे पास नहीं है की अजय माकन के बयान की जानकारी राहुलजी को थी, कि नहीं।
कांग्रेस की दूरदर्शिता के कारण हमारे यहाँ 1966-67 में हरित क्रांति हुई वही कांग्रेस आज इस तरह से संकीर्ण व संकुचित स्तर की राजनीति कर रही है। मात्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए किसानों को सड़कों पर उतार रही है और वह भी तब, जब यह माना जा रहा है कि जैसे 1991 में उद्योग-व्यापार जगत को बंधनों से मुक्त किया गया था, उसी तरह कृषि सुधारों के माध्यम से खेती को अप्रासंगिक कानूनों की जकड़न से बाहर निकाला गया है।
अन्नदाताको समझना होगा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की व्यवस्था खत्म होने की बातें कोरी अफवाह के अलावा और कुछ नहीं। उन्हें इससे भी अवगत होना चाहिए कि कृषि उपज बेचने की पुरानी व्यवस्था को खत्म नहीं किया जा रहा, बल्कि उसके समानांतर एक नई व्यवस्था बनाई जा रही है। अब उनके पास अपनी उपज बेचने के दो विकल्प होंगे। पहले विकल्पहीनता की स्थिति थी और इसी कारण उन्हें अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता था। हर परिवार में एक या दो कमाते है और सब का भरणपोषण होता है पर अन्नदाता के परिश्रम से सम्पूर्ण राष्ट्र भोजन करता है। अन्नदाता का सम्मान करे गुमराह न करे।