राकेश तिवारी।।
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध व पितृ पक्ष
कहलाता है। इन 16 दिनों में पितरों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है इसके
साथ ही पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटियों को भोजन सामग्री दी जाती है। खासतौर से
खीर-पुड़ी खिलाई जाती है। ऐसा करने से पितृ देवता खुश होते हैं, लेकिन इस परंपरा के पीछे धार्मिक
वजह क्या है और ऐसा क्यों किया जाता है। ये बात बहुत कम लोग जानते हैं। जिनके घर के सगे संबंधी
की आकालमृत्यु हो जाती है या कोई बीमारी हो जाती है तो उस समय ब्राम्हाण की सबसे ज्यादा जरूरत
पड़ती है। बगैर ब्राम्हण मंत्र के पिंडदान नही किया जा सकता है। कुछ लोग पिंडदान गया करने जाते है
वह पर भी पितरो के पिंडदान करवाते है जिससे उनके पितरो का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
सनातन धर्म में लोग गाय को माता कहा गया है। गाय मे 33 कोटि के देवी देवताओं का वास होता है।
पश्चिम दिशा की ओर पत्ते पर गाय के लिए खाना निकालते हैं। इसमें भोजन का एक हिस्सा गाय को
दिया जाता है क्योंकि गरुड़ पुराण में गाय को वैतरणी नदी से पार लगाने वाली कहा गया है। गाय में ही
सभी देवता निवास करते हैं। गाय को भोजन देने से सभी देवता तृप्त होते हैं इसलिए श्राद्ध का भोजन
गाय को भी देना चाहिए। इसलिए जब पितृपक्ष पितरो के लिए भोज बनता है तब गाय को सबसे पहले
भोजन कराया जाता है। जिससे पितरो का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। परिवार पर कोई विपत्ति ना आने
पाये।
कौआ का महत्व भी पितृपक्ष मे बताया गया है। एक भाग कौओं के लिये छत पर रखा जाता है। जो
दिशाओं का फलित (शुभ-अशुभ संकेत बताने वाला) बताता है। इसलिए श्राद्ध का एक अंश इसे भी दिया
जाता है। कौआ दूरभाषी भी होता है और बुद्धिमान भी। और शनि देव की सवारी भी है। इसलिए कौआ
को काकोल नाम से भी जाना जाता है। पितृपक्ष मे कौआ को भोजन जरूर खिलाना चाहिए जिससे पितर
बहुत प्रसन्न होते है और आपको कौआ भी आशीर्वाद देता है जिससे सभी मुसीबत खतम हो जाती है।
कुत्ता बहुत वफादार होता है कुत्ता यमराज का पशु माना गया है, श्राद्ध का एक अंश इसको देने से
यमराज प्रसन्न होते हैं। इंसान पर कष्ट आने से पहले भौंकता है। आपको सूचित करता है। सावधान
करता है। घर का पुरखा और सदस्य कुत्ते को भी बताया गया है। इसलिए कुत्ते को रोज रोटी देना चाहिए
जिससे दुश्मनी भी समाप्त हो जाती है। पितृपक्ष मे कुत्ते को भोजन इसलिए करवाया जाता है,जिससे पितरो की आत्मा खुश हो और परिवारजन को पितरो का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
पितृपक्ष में ब्राम्हाण, गाय, कौआ और कुत्ते का महत्व
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