- स्वाध्याय एक प्रकार की चिकित्सा- समणी निर्देशिका कमलप्रज्ञा जी
पालघर। महातपस्वी अचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या समणी निर्देशिका कमलप्रज्ञाजी ठाणा 3 के सान्निध्य में ज़ूम मीटिंग ऐप पर पालघर में पर्युषण पर्व का दूसरा दिन स्वाध्याय के दिवस के रूप में उत्साह पूर्वक मनाया गया।
स्वाध्याय दिवस के अवसर पर ज़ूम ऐप पर उपस्थित पर्युषण आराधकों को संबोधित करते हुए समणी कमलप्रज्ञा जी ने कहा सत्य और मैत्री की खोज का अमोघ साधन स्वाध्याय है। स्वाध्याय की परिणति ज्ञानावर्णीय कर्म का विलय है। ज्ञानावर्णीय कर्म के नष्ट होने से जीव केवल ज्ञान को प्राप्त करता है। इसलिए स्वाध्याय को अभ्यंतर एवं अनुत्तर तप कहा है। श्रुत की पावन परंपरा का उत्तम संवाहक स्वाध्याय है। स्वाध्याय से अशुभ कर्मों नष्ट होकर आरोग्य बोधि और समाधि की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार अग्नि में तपकर स्वर्ण निर्माण होता है। उसी प्रकार स्वाध्याय तप में तप कर चेतना निर्मल एवं पवित्र बनती है। सत स्वाध्याय से नरक व तिर्यंच गति के द्वार बंद होकर सद्गगति के द्वार खुल जाते हैं। जिस प्रकार सूर्य की एक किरण से अंधकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार स्वाध्याय से जन्म जन्मांतर के कर्म क्षय हो जाते हैं। स्वाध्याय एक प्रकार की चिकित्सा है जो मन के रोगो को दूर कर समाधि, शांति प्रदान करता है। वाचन, पूछना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्म कथा यह स्वाध्याय के पांच प्रकार है।
तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य महाप्रयाण दिवस पर संबोधित करते हुए समणी कमलप्रज्ञाजी ने कहा आचार्य श्री जितमल जी मेधावी, तीव्र बुद्धि व श्रेष्ठ प्रतिभा के धनी थे। वे विधिवेत्ता, तत्ववेत्ता, साहित्यकार, आगमों के ज्ञाता, सहज कवि व आचार्य भिक्षु के विचारों के भाष्यकार थे। वे अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने अपने जीवन में साढे तीन लाख पद्य परिमाण साहित्य का निर्माण कर राजस्थानी भाषा के भंडार को समृद्ध किया। समणी सुमन प्रज्ञा जी ने स्वाध्याय दिवस पर सुंदर गीत का संगान किया। यह जानकारी सभा मंत्री दिनेश राठौड़ ने दि।