स्टाफ रिपोर्टर/नालासोपारा। देश में भ्रष्ट्राचार कोई नई या आश्चर्यजनक बात नहीं है, अब लोगों को इसकी आदत सी पड़ गई है लेकिन जब पूरी दुनिया जबरदस्त महामारी की चपेट में हो, ऐसे में भी अगर कुछ लोग नहीं सुधरते हैं और अपने इस चरित्र को उजागर करते हैं तो देश की व्यवस्था और इंसानियत दोनों पर ही तरस आने लगता है। कुछ ऐसा ही वाकया वसई-विरार-नालासोपारा में भी देखने को मिला है। जब जरूरी सेवाओं, सुविधाओं के लिए ई-पास बनाकर जनता की मदद की जा रही थी, ऐसे में यहां पैसे लेकर बड़ी संख्या में ई-पास की कालाबाजारी की जा रही थी, जिसमें दलालों के साथ ही कई बड़े अधिकारियों के भी शामिल होने की बात कही जा रही है। जानकारी के अनुसार, जो पास जरूरी होने पर प्रशासन द्वारा फ्री में जारी किया जाना था, उसके लिए दलालों ने अधिकारियों की मिलीभगत से 1500 रुपए वसूला है। आम जरूरतंद चक्कर काटते रह जाते लेकिन ये दलाल 15 मिनट में पास जारी करवा देते थे, जो तभी संभव है जब बड़े लेबल पर मिलीभगत हो। इस मामले में दो आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया है।
जानकारी के अनुसार, कई बड़े अधिकारियों के इसमें शामिल होने का खुलासा हो चुका है। अगर ढंग से जांच हो जाए तो कई बड़ मछलियां गिरफ्त में आ सकती है। लेकिन भ्रष्ट्रचार के इस दौर में निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद करना थोड़ा मुश्किल काम है। क्षेत्र के जाने माने वकील एम. आर. दुबे ने ट्वीट करते हुए लिखा है – ‘ई-पास की कालाबाजारी अप्रत्य़ाशित नहीं है। जबसे ईपास जारी करने का काम कलेक्टर को सौंपा गया है तबसे वसई तहसीलदार कार्यालय ने पैसे लिए बगैर एक भी पास को मंजूरी नहीं दिया है, जिसकी जानकारी मैंने खुद डीएम की दी है। अब इसके मुख्य दोषियों को बचाने के लिए कार्रवाई के नाम पर दिखावा किया जा रहा है।‘
नालासोपारा में EPASS की कालाबाजारी अप्र्त्यासित नही है जब से EPASS जारी करने का काम @collectorpal को सौंपा गाय है तब से वसई तहसीलदार कार्यालय ने पैसे लिये बेगैर एक भी EPASS को मंजूरी नही दिया है और सारी जानकारी मैने खुद पालघर DM को दी है अब मेन को बचाने के लिये दिखावा हो रहा है
— Advocate Mishrilal Dubey (@MishrilalDubey) July 24, 2020
उल्लेखनीय है कि पुलिस पास की कालाबाजारी मामले में बृजेश दुबे एवं आतिश गड़ा नामक दो आरोपियों को गिरफ्तार करके खुद की पीठ थप-थपा रही है लेकिन इस मामले में शामिल बड़ी मछलियों को बचाने का आरोप लगातार लगता रहा है। हैरत की बात यह है कि ई-पास की जरूरत पड़ने पर बार-बार प्रशासनिक अधिकारियों के दफ्तर के चक्कर लगाने पर आम जरूतमंद व्यक्ति को नहीं मिल पा रहे थे, लेकिन दलालों को 1500 देते ही 15 मिनट में पास मिलते गए। लोगों का मानना है कि छोटे आरोपियों को पकड़कर दिखावा किया जा रहा है, लेकिन इससे कुछ नहीं होने वाला है। जब तक इसमे शामिल आला अधिकारियों की गिरफ्तारी नहीं होती, इसका पर्दाफाश बेहद मुश्किल है।