आदित्य तिक्कू।।
घर की बाढ़ में आग लगी हो तो घर के सदस्य उसे बुझाने का प्रयत्न करते हैं, न कि उस आग से स्वार्थ की रोटी सेंकने लगते है। अन्यथा बाढ़ की आग घर जला देती है । यह समय एक होने का है। यह एकजुटता ही देश के जवानों की शहादत का सबसे सच्चा सम्मान है। सोशल मीडिया पर पोस्ट करने और दूसरे से लाइक मांगने से आप सिर्फ यह बता रहे हैं कि आप किस तरह से काल्पनिक दुनिया के चक्रव्यूह में फंस चुके हैं और अभी तक इस चक्रव्यूह से कोई नहीं निकल पाया है। इसलिए अनुरोध है कि सोशल मीडिया पर सोच समझकर पोस्ट करे, दुश्मनों को यह नहीं लगना चाहिए कि उन्हें सिर्फ सीमा पर ही लड़ना है। देश के अंदर तो कुछ लोग अपने आप ही भारत सरकार का विरोध करके चीन की मदद कर रहे हैं।
हम भाग्यशाली है कि हमे हर चीज़ की आज़ादी है। चीन में बोलने और अपने विचार रखने पर तो छोड़िये मत देने का भी अधिकार नहीं है। चीन के भी जवान शहीद हुए हैं, लेकिन उनके सम्मान के लिए उसके नेताओं के पास दो शब्द भी नहीं हैं। चीन ने कितने जवान खोए हैं, वह शायद ही बताए, लेकिन भारत में एक-एक जवान की जान कीमती है। वाजिब सम्मान के साथ अपने जवानों की शहादत को सदियों तक याद करना हमारी परंपरा रही है। इस परंपरा के सच्चे सम्मान का ही एक बुनियादी व्यवहार हमारी एकजुटता है।
विश्व महाशक्ति बनने के भ्रम में चीन को जवाब देने के कई तरीके हैं और उनमें से एक प्रभावी तरीका उसकी आर्थिक ताकत पर पूरी शक्ति से प्रहार करना है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। भारत सरकार द्वारा ‘बीएसएनएल’ के 4जी टेंडर से चीनी कंपनियों को बाहर रखने के फैसले के बाद कानपुर से मुगलसराय के बीच फ्रेट कॉरीडोर प्रोजेक्ट में चीनी कंपनी का ठेका रद्द करने का फैसला सही दिशा में उठाया गया है, यह एक बहुत बड़ा कदम है।
ऐसे कदमों का रूझान तेज करके चीनी कंपनियों को चुन-चुनकर बाहर किया जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी हो तो नए नियम-कानून बनाए जाने चाहिए। चीनी कंपनियों की ओर से हासिल किए गए ठेके और उनके साथ हुए समझौते प्राथमिकता के आधार पर रद्द होने चाहिए। यह सही समय है कि महाराष्ट्र सरकार और चीन की वाहन निर्माता कंपनी ‘ग्रेट वॉल मोटर्स’ के बीच हुआ करार रद्द होना चाहिए। पर अफ़सोस यह है कि करार उस दिन हुआ जिस दिन चीनी सेना ने गलवन घाटी में हमारी पीठ पर वार किया था।
यह समय हमे आत्मनिर्भर होने का है। यदि अब हमने परिश्रम से मुंह मोड़ा तो कल हमसे वह मुंह मोड़ लेगा। अब यह आवश्यकता ही नहीं, हमारी अनिवार्यता है कि हम चीन से आयातित माल के भरोसे पर नहीं रहना चाहिए और देश में काम तलाश रहीं उसकी कंपनियों पर हर हाल में अंकुश लगना चाहिए। नि:संदेह तत्काल प्रभाव से इस पर अमल करना एक कठिन काम अवश्य है, लेकिन अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी संभव है। भारत में ऐसे कारोबारी हैं जो इस कठिन काम को आसान बना सकते हैं। आवश्यकता बस इसकी है कि उन्हें पूरा सहयोग-समर्थन और प्रोत्साहन दिया जाए।
चीन को धरातल पर लाने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन उन देशों को भी देना होगा जो चीन की दादागीरी से त्रस्त हैं। यदि चीन भारत की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने के लिए तैयार नहीं है, तो फिर उसकी एक-चीन नीति का भी समर्थन करने से स्पष्ट इन्कार किया जाना चाहिए।
वैसे भी इस छल-कपट भरी नीति का मकसद हागंकांग और ताईवान को तिब्बत की तरह हड़पना है। भारत को विश्व मंचों पर यह संदेश देने के लिए भी सक्रिय होना होगा कि चीन अपनी तानाशाही दुनिया पर नहीं थोप सकता और उसे विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा बनने से रोकने की सख्त जरूरत है। अहंकारी चीनी नेतृत्व को यह पता चलना ही चाहिए कि उसे धोखेबाजी की कीमत चुकानी ही पड़ेगी। हम भीख में पल रहे पाकिस्तानी या भयभीत नेपाली नहीं है। हम भारतीय है और आज भी शांति से भूगोल हम बदलना जानते है।