नई दिल्ली:केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि इंटरनेट सुविधा मौलिक अधिकार नहीं है। राज्य में 4 जी मोबाइल सर्विस की मांग को लेकर दायर एक याचिका के जवाब में केंद्र शासित प्रदेश के हलफनामे में कहा गया है कि इंटरनेट तक पहुंच फंडामेंटल राइट नहीं है और अभिव्यक्ति की आजादी से लेकर व्यापार तक इंटरनेट सुविधा के दायरे में कटौती की जा सकती है। केंद्र की तरफ से जवाब में कहा गया है कि देश की संप्रभुता, एकता और सुरक्षा इंटरनेट की स्पीड घटाने का पर्याप्त आधार है और इसी आधार पर ऐसा किया गया है।
फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स नाम की एक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि जम्मू कश्मीर में हाई स्पीड इंटरनेट सेवा की कमी से कोरोना बीमारी के समय में मरीजों, डॉक्टरों और आम लोगों को काफी दिक्कतें हो रही हैं। 2जी मोबाइल सेवा से कोरोना वायरस के फैलाव का ताजा हाल, गाइडलाइंस, सलाह या रोक-प्रतिबंध की जानकारी लोगों को ठीक से नहीं मिल पा रही है। संस्था ने प्रशासन के 26 मार्च के आदेश को चुनौती दी है जिसके जरिए जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट की स्पीड 2जी कर दी गई है।
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने कोर्ट से कहा है कि याचिकाकर्ता की शिकायत गलत है क्योंकि कोरोना पर ज्यादातर सूचना और दस्तावेज फिक्स्ड लाइन हाई स्पीड इंटरनेट से डाउनलोड किए जा सकते हैं और इस पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। प्रशासन ने दावा किया है कि जम्मू और कश्मीर में एक लाख से ज्यादा लोग कोरोना गाइडलाइंस और एडवाइजरी का इस्तेमाल फिक्स्ड लाइन हाई स्पीड इंटरनेट से कर रहे हैं। सरकार ने ये भी कहा है कि कोविड 19 से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी सोशल मीडिया पर उपलब्ध है जिसे 2जी इंटरनेट से भी देखा जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे तमाम महत्वपूर्ण साइट्स 2जी सेवा से खुल जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी को एक फैसले में कहा था कि सूचना तक पहुंच और इंटरनेट के जरिए व्यापार मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेश को समय-समय पर इंटरनेट पर जारी पाबंदियों की समीक्षा करने का आदेश भी दिया था. सरकार ने कोर्ट को बताया है कि फैसले के आलोक में प्रशासन ने कई तरह की पाबंदियां धीरे-धीरे हटाई है।