एस श्रीनिवासन।।
कोरोना वायरस दुनिया भर के राजनेताओं के साहस की परीक्षा ले रहा है। तमाम भौगोलिक सीमाओं और इलाकों की हदबंदी से परे यह वायरस समूचे राजनीतिक वर्ग के लिए गंभीर चुनौतियां पेश कर रहा है और हमारे मुख्यमंत्री भी इसके अपवाद नहीं हैं। अपने-अपने राज्यों के भीतर इस संक्रमण से मोर्चा ले रहे मुख्यमंत्रियों की नेतृत्व क्षमता और प्रशासनिक कौशल को भी यह विषाणु उजागर कर रहा है।
तमिलनाडु में जब इस वायरस ने सिर उठाना शुरू किया था, तब मुख्यमंत्री पलानीसामी ने हालात से निपटने की अच्छी शुरुआत की थी। अपनी कोशिशों को लेकर वह इस कदर आश्वस्त थे कि उन्होंने तब विधानसभा सत्र को छोटा करने की विपक्ष की मांग को ठुकरा दिया था। उस वक्त सत्र चल रहा था। पलानीसामी ने तो महामारी पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने के विपक्षी सुझाव को भी नजरंदाज कर दिया था। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सी विजय भास्कर ही इस बीच सरकार का चेहरा बनकर उभरे। लेकिन जब वहां संक्रमण के मामलों में तेजी आने लगी, तो पलानीसामी सरकार लड़खड़ाती हुई दिखी। शुरू में तो तबलीगी जमात से लौटे लोगों के कारण वहां संक्रमण के ज्यादातर मामले सामने आए। जब भारतीय जनता पार्टी ने विवादास्पद बयान देना शुरू किया, तो मुख्यमंत्री ने इस महामारी के सांप्रदायीकरण को खारिज करने में वक्त लगा दिया।
स्वास्थ्य प्रवक्ता शुरू से इसे ‘एकल स्रोत’ के रूप में पेश करते रहे। जब नियमित पीसीआर विधि द्वारा स्रोतों व संपर्कों की जांच शुरू हुई और संक्रमितों की संख्या स्थिर होने लगी, तो इससे उत्साहित मुख्यमंत्री ने फौरन घोषणा कर डाली कि नए संक्रमण के मामले में तमिलनाडु शीघ्र ही शून्य स्तर पर पहुंच जाएगा। लेकिन कुछ दिनों बाद मरीजों की संख्या बढ़ने लगी, तो मुख्यमंत्री का आकलन गलत साबित हो गया। रैपिड टेस्ट किट के आने के बाद राज्य एक दिन में छह हजार से अधिक संदिग्धों की जांच करने लगा, तो पॉजिटिव लोगों की संख्या भी बढ़ती चली गई। ऐसे में, तमिलनाडु सरकार ने 26 अप्रैल से राज्य के पांच बड़े शहरों में अधिक सख्ती से लॉकडाउन लागू करने का फैसला किया। शुक्रवार को जब इस निर्णय का एलान किया गया, तो इन सभी शहरों में अफरा-तफरी मच गई। लोग किराना और सब्जी की दुकानों पर उमड़ पड़े। इस तरह, एक महीने के लॉकडाउन और शारीरिक दूरी की उपलब्धियां बौनी साबित हो गईं।
इन दो घटनाओं ने मुख्यमंत्री के प्रशासनिक कौशल को सवालों के घेरे में ला दिया है। राहत की बात सिर्फ यह है कि तमिलनाडु में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला सरकारी अस्पताल तक स्वास्थ्य सेवाओं का काफी मजबूत ढांचा है। यकीनन अन्य राज्यों के मुकाबले में यहां स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर अच्छा है, मगर यदि महामारी ने विकराल रूप धारण किया, तो यह सब नाकाफी हो जाएगा।
इस बीच पड़ोसी राज्य केरल एक सुखद कामयाबी के साथ सामने आया। कोविड-19 के प्रबंधन के मामले में केरल देश का पहला राज्य है, जिसने यह एलान किया कि महामारी का प्रसार अब उसके यहां नियंत्रण में है। लेकिन एक अनुचित उत्साह के तहत उसने सार्वजनिक परिवहन में कुछ छूट की घोषणा भी कर डाली थी, जिसे केंद्र ने फौरन खारिज कर दिया। ऐसे में, बगैर कोई वक्त गंवाए राज्य सरकार ने फौरन अपने आदेश को वापस ले लिया। इस एक भूल के अलावा केरल इस महामारी से निपटने में काफी सक्रिय रहा है। 30 जनवरी को वहां कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आया था। उसके बाद से यह राज्य पूरी गंभीरता के साथ सक्रिय हो गया और हरेक नए मामले में आइसोलेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। यही नहीं, इसने कई अन्य तरह के प्रयोगात्मक उपचार भी किए। 20,000 करोड़ रुपये के पैकेज के जरिए गरीबों और प्रवासियों को पूरी मदद मुहैया कराई गई। यहां तक कि आंगनबाड़ी में पंजीकृत तमाम बच्चों के घर तक पौष्टिक भोजन पहुंचाने की व्यवस्था की गई। राज्य की स्वास्थ्य मंत्री शैलजा रोजाना पत्रकारों के सवालों के जवाब देती रहीं।
कर्नाटक में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को एक अलग समस्या से जूझना पड़ रहा है। जब कर्नाटक में इस महामारी ने दस्तक दी थी, तब यह कोरोना प्रभावित देश के शीर्ष राज्यों में एक था। ऐसा लग रहा था कि बेंगलुरु हॉटस्पॉट के रूप में उभरेगा। मगर येदियुरप्पा की यह खुशकिस्मती रही कि राज्य में बहुत मामले नहीं आए और मुख्यमंत्री के करीबी अधिकारियों ने पूरी मुस्तैदी से मामले को अपने हाथों में ले लिया। वे इस मामले में अच्छा काम कर रहे हैं। दरअसल, कर्नाटक में समस्या राजनीतिक अधिक है। राज्य के दो वरिष्ठ मंत्रियों में कोरोना-प्रबंधन को लेकर वाक्-युद्ध छिड़ा हुआ है। एक मंत्री कोविड-19 से लड़ाई में सख्ती की मांग कर रहा है, तो दूसरा यथास्थिति के पक्ष में है।
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में धीमी शुरुआत के बाद वायरस ने अब अपने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री सी चंद्रशेखर राव एक अनुभवी प्रशासक हैं। इसलिए उन्होंने गरीबों और प्रवासी मजदूरों के हित में कई कदम उठाए हैं। राज्य में काफी तेजी से जांच का काम किया जा रहा है, जिससे वहां संक्रमित मरीजों की अधिक संख्या सामने आई है। शुरू में राव नियमित रूप से पत्रकारों के सवालों के जवाब खुद दे रहे थे, लेकिन अब संवाददाता सम्मेलन रद्द कर दिए गए हैं और रोजाना शाम को पत्रकारों को प्रेस विज्ञप्ति के जरिए सूचनाएं दी जा रही हैं।
पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश का भी यही हाल है। इसके युवा मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी संक्रमण के नए मामलों में बढ़ोतरी के साथ संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। उन्होंने भी अपनी नियमित पत्रकार-वार्ता खत्म कर दी है। हालांकि जगन एक लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन एक कुशल प्रशासक के तौर अपनी काबिलियत अभी उन्हें साबित करनी है। फिर वह एक सक्षम राजनेता चंद्रबाबू नायडू को पराजित करके उभरे हैं।
आने वाले दिनों में वैज्ञानिक इस महामारी को थामने का कोई न कोई रास्ता तलाश ही लेंगे, लेकिन इस बीच यदि राजनीतिक वर्ग अपनी सियासी विचारधाराओं को पीछे छोड़ इस संघर्ष में नेतृत्व देने में विफल रहा, तो यह महामारी उसे तबाह भी कर देगी। राजनेताओं के लिए यही समय है कि वे खुद को साबित करें।
साभार:www.livehindustan.com