धर्म युक्त हो जीवन : आचार्य महाश्रमण
पूज्यवर ने की साधारण धर्म के लक्षणों की व्याख्या
06-02-2020, गुरुवार, हरोबेलवाड़ी, धारवाड़, कर्नाटक। अहिंसा यात्रा द्वारा नगर-नगर और गांव-गांव में जन मानस के अज्ञान रूपी अंधकार को हरने वाले ज्योतिचरण श्री महाश्रमण जी आज प्रातः लगभग 9.8 किलोमीटर का विहार कर हरोबेलवाड़ी में स्थित हायर प्रायमरी स्कूल में पधारे। इससे पूर्व पूज्यवर ने अम्मिनभावी के मॉडल प्राइमरी स्कूल से मंगल विहार किया। विहार मार्ग के दौरान सड़क के दोनों ओर लहराते कपास, ज्वार, मक्की आदि के खेतों के कारण तेज धूप में भी हवा में शीतलता प्रदान कर रही थी।
विद्यालय प्रांगण में अमृत देशना देते हुए शांतिदूत श्री महाश्रमण जी ने फरमाया-नमस्कार महामंत्र के मध्य में आचार्य स्थित होते हैं। मानों वें अर्हतों से दोनों पदों से ग्रहण करते हैं और फिर नीचे के पदों में बांटते हैं। आचार्य एक तरह से माध्यम हो जाते हैं। अर्हतों की अनुपस्थिति में आचार्य तीर्थंकरों के सक्षम प्रतिनिधि होते हैं। अधिकृत होते हैं। आचार्य जो कहे वह मान्य होता है। आचार, श्रद्धा, कल्प आदि की निर्णायक बात जो आचार्य कहें वह संघ की मान्यता का रूप ले लेती है।
एक कथानक द्वारा प्रेरित करते हुए पूज्यवर ने आगे कहा कि आदमी का व्यवहार धर्माजीत होना चाहिए। धर्मयुक्त होना चाहिए। सामान्य धर्म के सात लक्षण बताते हुए गुरुदेव ने कहा, पहला है-सुपात्र दान। त्यागी, संयमी को दान देना सुपात्र दान होता है। व्यक्ति सोचें कब ऐसा अवसर आए कि मुझे साधु को सविधि दान देने का अवसर मिले। दूसरा है-गुरु के प्रति विनय का भाव हो। गुरु का सम्मान करना चाहिए। तीसरा है-सब प्राणियों के प्रति दया अनुकंपा रखना। किसी को भी हमारे द्वारा कष्ट ना हो। करुणा भाव हमारे भीतर रहे। पांचवा लक्षण-हमारे व्यवहार में न्याय हो। छठा-व्यक्ति लक्ष्मी का घमंड ना करें। धन, संपदा, ऐश्वर्य कितना भी हो उसका मद नहीं करना और सातवा है संतों की, सज्जनों की संगति करें। सत संगत कल्याणकारी होती है। व्यक्ति को दुर्जनों की संगति नहीं करना चाहिए। अगर यह सात लक्षण भी जीवन में आ जाए तो व्यक्ति एक तरह से धर्म युक्त अपना जीवन बना सकता है ।