धर्म के द्वारा मानव जीवन को बनाए सुफल : आचार्य महाश्रमण
मर्यादा महोत्सव उपरांत अनेक साधु-साध्वियों ने आज ली पूज्यवर से विदाई
03-02-2020, सोमवार, नवनगर, हुब्बल्ली कर्नाटक। अहिंसा यात्रा प्रणेता तेरापंथ के 11वें अधिशास्ता परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आज प्रातः हुब्बल्ली के रोटरी स्कूल से मंगल विहार किया। धारवाड़ के लिए प्रवर्धमान श्री महाश्रमण जी लगभग 8.5 किलोमीटर विहार कर नवनगर स्थित भगिनी निवेदिता विद्यालय स्कूल में पधारे। इससे पूर्व प्रातः काल अनेक बहिर्विहारी साधु-साध्वियों ने पूज्य आचार्य श्री का मंगल पाठ श्रवण कर अपने चतुर्मासिक क्षेत्रों की ओर प्रस्थान किया। भगिनी निवेदिता विद्यालय में धर्मसभा में प्रवचन देते हुए शांतिदूत श्री महाश्रमण जी ने कहा कि इस संसार में मानव जीवन को दुर्लभ माना गया है। किसी योग से मनुष्यत्व प्राप्त हो भी जाए तो फिर धर्मश्रुति को उससे भी दुर्लभ कहा गया। किसी को धर्मश्रवण का अवसर मिल भी जाए परंतु सुनने के पश्चात उसमें श्रद्धा होना ओर भी बड़ी बात हो जाती है। इन सब से भी अधिक दुर्लभ फिर धर्म में पराक्रम को कहा गया। हमें इस मानव जीवन को सफल बनाना चाहिए इसीलिए हम धर्म में पराक्रम करें।
पूज्यवर ने आगे कहा कि इस मानव जन्म रूपी वृक्ष में छह फल लग जाए तो यह सफल बन सकता है। पहला है-अर्हत जिनेश्वर देव की पूजा। हमारा मन प्रभु की भक्ति में रमना चाहिए। भक्ति का एक तरीका जप है। णमो अरहंताणं में जिनेश्वर की पूजा हो जाती है। दूसरा है- गुरु की पर्युसना करना। गुरु की आज्ञा में रहना, सेवा करना। तीसरा फल है- प्राणियों के प्रति अनुकंपा रखना। सुपात्र दान को चौथा फल कहा गया। साधु को शुद्ध दान देने की भावना मन में रहनी चाहिए। पांचवा फल है गुणानुवाद। किसी की उन्नति को देख जले नहीं। गुण चाहे किसी में हो उसके प्रति आदर की भावना होनी चाहिए और अंत में छठा फल बताया गया श्रुतिरागमस्य। हम आगम का, शास्त्रों का श्रवण करें। यह छह फल अगर जीवन में आ जाए तो मानव जीवन सफल एवं सुफल बन सकता है।
कार्यक्रम में नवनगर के विकास बोथरा एवं आरएसएस महानगर सहसंचालक पवन सारथी ने स्वागत में अपने विचार रखे। पूज्यवर की प्रेरणा से नवनगरवासियों ने अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी को स्वीकार किया। कल का प्रवास शांतिदूत श्री महाश्रमण जी का धारवाड़ में रहेगा ।