निवेश और बचत को लेकर वर्ष 2019 में सरकार ने कई बदलाव किए हैं जिसका असर अगले साल भी होगा। पीपीएफ से अब निकासी आसान और कर्ज ज्यादा सस्ता हो गया है। वहीं रेपो रेट से जुड़ने की वजह से बैंकों का कर्ज भी सस्ता हुआ है। कर नियमों में बदलाव से ज्यादा कमाई पर कम टैक्स चुकाना होगा। पेश है एक रिपोर्ट…
पीपीएफ और फायदेमंद हुआ
सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) पर ऊंचे ब्याज और टैक्स छूट का फायदा पहले से मिल रहा था। हाल ही में सरकार ने पीपीएफ के नियमों में कई तरह के बदलाव किए हैं। अब पीपीएफ के बदले मिलने वाला कर्ज एक फीसदी सस्ता हो गया है। साथ ही पीपीएफ से जरूरत पर पांच साल बाद ही आंशिक राशि निकाल सकेंगे।
नए नियमों के मुताबिक पीपीएफ के बदले मिलने वाले कर्ज पर ब्याज पीपीएफ के ब्याज से सिर्फ एक फीसदी ऊंचा होगा जो अभी दो फीसदी है। पीपीएफ से पांच साल बाद ही समय पूर्व निकासी (प्रीम्योच्योर) कर सकेंगे जबकि सातवें साल ही राशि निकालने की अनुमति थी। साथ ही यदि खाताधारक की मृत्यु हो जाती है और उसने नॉमिनी नहीं भी बनाया है तो उसकी राशि हर हाल में उसके वैध उत्तराधिकारी को मिलेगी। खाताधारक के डिफॉल्टर होने पर उसके पीपीएफ खाते की राशि को किसी भी स्थिति में जब्त या कुर्क नहीं किया जा सकेगा।
पांच लाख रुपये तक आय पर कर नहीं लगाने का हुआ फैसला
सरकार ने इस साल बजट में आयकरदाताओं को बड़ी राहत दी। सरकार ने आयकर की धारा 87ए के तहत आयकर में छूट (रिबेट) का दायरा बढ़ाकर 2,500 रुपये से बढ़ाकर 12,500 रुपये कर दिया। ऐसा करने से पांच लाख रुपये तक की आय पर कोई कर देनदारी नहीं होगी। टैक्स सलाहकार के.सी. गोदुका का कहना है कि इसका फायदा उन्हीं को मिलेगा जो रिर्टन भरेंगे। साथ ही 2.50 लाख रुपये से अधिक कर योग्य आय होने पर रिटर्न भरना आज भी जरूरी है। आयकर नियमों के तहत 2.50 लाख रुपये से अधिक आय होने पर रिटर्न अनिवार्य है।
कमाई पर कर छूट ज्यादा
आयकरदाताओं को सरकार ने इस साल बजट में एक और फायदा दिया। इसके तहत स्टैंडर्ड डिडक्शन के तहत छूट सीमा को बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दिया। वर्ष 2018 में यह सीमा 40 हजार रुपये थी। इस तरह आयकरदाताओं को सीधे तौर पर 10 हजार रुपये का ज्यादा फायदा हुआ।
रेपो रेट से जुड़कर कर्ज सस्ता हुआ
रिजर्व बैंक ने इस साल 1 अक्तूबर से बैंकों के लिए अपनी कर्ज की ब्याज दरों को रेपो रेट (नीतिगत दर) से जोड़ना अनिवार्य कर दिया है। इससे आवास ऋण (होम लोन), वाहन ऋण सहित सभी तरह के कर्ज ज्यादा सस्ते हो गए हैं। इसके दो फायदे हुए हैं। पहला यह कि कर्ज पहले के मुकाबले अधिक सस्ते हुए और दूसरा यह कि रिजर्व बैंक की ओर से दरें घटाते ही बैंकों के लिए ब्याज दरें घटाकर उसका फायदा उपभोक्ताओं को देना अनिवार्य हो गया है।
इसके पहले बैंक खर्च का बहाना बनाकर दरें घटाने में देर करते थे। रिजर्व बैंक ने इस साल की शुरुआत से अब तक रेपो दरों में 1.35 फीसदी की कटौती की है जिससे रेपो दर 5.15 फीसदी पर आ गई है। वहीं बैंक अब तक ब्याज दरों में 0.60 फीसदी तक की कटौती कर चुके हैं।
एनपीएस में 60 फीसदी राशि की निकासी कर मुक्त
सरकार से इस साल बजट में राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) से एक मुश्त 60 फीसदी निकासी को कर मुक्त (टैक्स फ्री) कर दिया। पहले यह सीमा 40 फीसदी थी। टैक्स सलाहकारों का कहना है कि इस कदम से एनपीएस से 100 फीसदी निकासी कर मुक्त हो गई है।
एनईएफटी की सुविधा अब 24 घंटे
डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ने कई कदम उठाएं हैं। रिजर्व बैंक ने इस साल 1 दिसंबर से एनईएफटी और आरटीजीएस से राशि भेजने की सुविधा को 24 घंटे कर दी जबकि पहले इसके लिए हर घंटे के हिसाब से अवधि तय थी। इससे पहले 1 जुलाई से रिजर्व बैंक ने एनईएफटी और आरटीजीसी से लेन-देन को मुफ्त कर दिया। इससे आम लोगों के लिए लेन-देन अब ज्यादा सुविधाजनक और सस्ता हो गया है।
मकान बेचने पर कम टैक्स
मकान या फ्लैट बेचने से हुए लाभ पर लगने वाला लंबी अवधि का पूंजीगत लाभ कर (एलटीसीजी) के नियम को भी सरकार ने इस साल बजट में बदल दिया जिससे अब कम टैक्स चुकाना होगा। इसके तहत दो मकान बेचने पर दो करोड़ रुपये तक का लाभ कर मुक्त हो गया है। इसके पहले यह एलटीसीजी से छूट तभी मिलती थी जब एक मकान बेचकर उससे मिली राशि दूसरा मकान खरीदने में निवेश करते थे। सरकार ने यह फैसला आम लोगों के लिए मकान में निवेश को आसान बनाने के लिए किया है।
आधार से घर बैठे केवाईसी
बाजार नियामक सेबी ने इस साल नवंबर में म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए आधार से ओटीपी के जरिये ई-केवाईसी नियम फिर से शुरू कर दिया है। सेबी ने पहली बार वर्ष 2015 में म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए आधार ई-केवासी की शुरुआत की थी। इससे आम निवेशकों का म्यूचुअल फंड में निवेश का अनुपात बढ़ा लेकिन सितंबर 2018 में सुप्रीर्म कोर्ट के फैसले के बाद इसपर रोक लगी हुई थी।
पैन को आधार से जोड़ना अनिवार्य
सरकार ने पैन नंबर को आधार से जोड़ना अनिवार्य कर दिया है। आयकर विभाग ने इसके लिए पहले 30 सितंबर की समय सीमा तय किया था जिसे बढ़ाकर अब 31 दिसंबर 2019 कर दिया है। आयकर विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि समय सीमा खत्म होने के बाद आधार से जुड़े नहीं होने वाले पैन नंबर मान्य नहीं होंगे। टैक्स सलाहकारों का कहना है कि पैन का आधार से नहीं जुड़े रहने पर टैक्स रिटर्न मुश्किल हो सकता है।
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