वॉशिंगटन: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था गहरी सुस्ती के दौर में है, सरकार को तुरंत नीतिगत कदम उठाने की जरूरत है। आईएमएफ ने सोमवार को जारी रिपोर्ट में कहा कि पिछले कुछ सालों में भारत के आर्थिक विकास में तेजी आने से लाखों लोग गरीबी से बाहर आए, लेकिन इस साल की पहली छमाही में कुछ वजहों से इकोनॉमिक ग्रोथ कमजोर रही। आईएमएफ ने भारत का आउटलुक घटाने का जोखिम बताते हुए कहा कि मैक्रोइकोनॉमिक मैनेजमेंट में लगातार मजबूती जरूरी है। नई सरकार बहुमत में है, इसलिए मौका है कि संयुक्त और सतत विकास के लिए सुधारों की प्रक्रिया तेज की जाए।
दिसंबर तिमाही में भी आर्थिक गतिविधियां कमजोर रहने के संकेत: आईएमएफ
सितंबर तिमाही में देश की जीडीपी ग्रोथ घटकर 4.5% रह गई। यह बीते 6 साल में सबसे कम है। आईएमएफ एशिया एंड पैसिफिक डिपार्टमेंट के मिशन चीफ फॉर इंडिया रानिल साल्गेडो का कहना है कि ग्रोथ के आंकड़ों से पता चलता है कि सितंबर तिमाही में निजी घरेलू मांग सिर्फ 1% बढ़ी। ऐसे संकेत दिख रहे हैं कि दिसंबर तिमाही में भी आर्थिक गतिविधियां कमजोर रही हैं।
साल्गेडो के मुताबिक नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों के नकदी संकट, कर्ज देने के नियमों में सख्ती और ग्रामीण इलाकों में आय कम होने की वजह से निजी खपत प्रभावित हुई। इसमें जीएसटी जैसे कुछ अहम और उचित सुधारों को लागू करने में हुई दिक्कतों की भूमिका भी हो सकती है। साल्गेडो के मुताबिक आईएमएफ का जनवरी में जारी जीडीपी ग्रोथ अनुमान पिछले अनुमान के मुकाबले काफी कम होगा। बता दें आईएमएफ ने अक्टूबर में भी देश की सालाना जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 0.9% घटाकर 6.1% कर दिया था।
साल्गेडा ने कहा कि दूसरे मोर्चों पर भारत का प्रदर्शन अच्छा है। विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर है। वित्तीय घाटा कम हुआ है। महंगाई दर में अभी कुछ इजाफा हुआ है लेकिन, पिछले कुछ सालों में यह नियंत्रण में रही। साल्गेडो का कहना है कि भारत की आर्थिक सुस्ती आईएमएफ के लिए चौंकाने वाली है, लेकिन इसे आर्थिक संकट नहीं कह सकते।