धर्म के द्वारा मानव जीवन का लाभ उठाओं : आचार्यश्री महाश्रमण
17-12-2019, मंगलवार, होलेहोनुर , कर्नाटक। न चिलचिलाती धूप की परवाह और न ही ऊबड़-खाबड़ राह की। परवाह है मानव-मानव के कल्याण की। इसलिए अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आज भी मौसम और मार्गस्त कठिनाईयों को नजरंदाज कर करीब तेईस किलोमीटर की पदयात्रा की। शिवमोगा की परिपाश्ववर्ती तुंग नदी के इस पार धुमावदार मार्ग हजारों-हजारों पेड़ों, पहाड़ों, जलाशयों के कारण रमणीय भले था, किन्तु सूर्य अपनी तेजस्विता के साथ आतप बरसा रहा था। यदा-कदा बादल और वृक्ष उसे रोकने का प्रयास भी कर रहे थे। इस मार्ग से अहिंसा यात्रा का कारवां महानायक आचार्यश्री महाश्रमणजी के कुशल नेतृत्व में निरंतर गति करता हुआ प्रातः होलेहोनूर में स्थित विवेकानन्द लाॅयन्स विद्यामस्थे में पहुंचा।
यहां आयोजित कार्यक्रम में शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने पावन प्रवचन में कहा कि आदमी जीवन जीता है और उसके लिए गृहस्थों को कमाई भी करनी होती है। जीवन के लिए भोजन आवश्यक है और भोजन आदि की प्राप्ति के लिए परिश्रम की आवश्यकता है। प्रश्न हो सकता है कि जीवन क्यों जीना चाहिए। उत्तर में कहा जा सकता है कि पूर्वकृत कर्माें का क्षय करने के लिए मानव देह को धारण करना चाहिए। मानव जीवन से ही व्यक्ति भगवत्ता को प्राप्त कर सकता है। इसलिए इस जीवन में व्यक्ति को धर्म की साधना करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति मानव जीवन में धर्म की साधना नहीं करता, वह मानों अपने घर में लगे कल्पवृक्ष को उखाड़ कर धतूरे का पेड़ लगाता है, प्राप्त चिंतामणि को फेंककर कांच के टुकड़े को लेता है, गजराज का विक्रय कर गधा खरीदता है। जो लोग अध्यात्म को भूलकर भोगों के पीछे भागते हैं, वे मानों इन तीन व्यक्तियों की तरह नादानी करते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि मोह एक ऐसा तत्त्व है जो व्यक्ति को संसार सागर में और ज्यादा डुबोने वाला होता है। त्यागी और ज्ञानी गुरु इस संसार से पार पहुंचाने वाले होते हैं। आदमी को इस मनुष्य जीवन का महत्त्वांकन कर धर्म की साधना के द्वारा इसका लाभ उठाना चाहिए।
दोपहर में चिलचिलाती धूप में आचार्यश्री महाश्रमण होलेहोनूर से येदनहल्ली में स्थित जानना श्री पब्लिक स्कूल में पहुंचे। आज का रात्रिकालीन प्रवास यहीं हुआ। इस प्रकार आज की कुल यात्रा 23 किलोमीटर की हो गई।