ज्यादातर हम सभी जहां हैं, जो कर रहे हैं, उसे पसंद नहीं करते। कितनी ही बार तो इस सारे सफर में खुद को ठगा हुआ सा महसूस करते हैं। बीती बातों पर अटके रहते हैं। यही सोचते रह जाते हैं कि कहां चूक हुई, किसने गलत किया। इसे ही अतीत का शोक मनाना कहा जाता है।
बीती बातों की ग्लानि या क्षोभ जीवन के हर पल में घुसता चला जाता है और हम चाहकर भी इसे रोक नहीं पाते। वर्तमान मन मुताबिक नहीं लगता, इसलिए पूरा गुस्सा अपने अतीत पर ही उतारते हैं। यह सही है कि अपने अतीत से भागा नहीं जा सकता और उससे पूरी तरह मुक्त भी नहीं हो सकते। लेकिन उस पर गुस्सा करने से बच सकते हैं। कैसे? आइए जानें…
हर कोई जूझ रहा है-
जीवन की राह में सभी भटकते हैं। कोई नहीं जानता कि वह क्या कर रहा है। इसमें वे सब लोग भी शामिल हैं जिनके पास सबकुछ है। गंभीरता से इस बात पर गौर करें। कागजों पर देखें तो कुछ लोग काफी अच्छे दिखाई देते हैं। उनके पास पैसा, सफलता, बड़ी नौकरी और उम्दा जीवनसाथी है। लेकिन मैं आपको बता दूं, हर कोई अपने जीवन की कठिनाइयों से जूझ रहा है। सभी किसी न किसी बात को लेकर अपने अतीत को कोस रहे हैं। जीवन में कई बार ऐसा होता है कि आप कोई परिवर्तन करने या कुछ नया करने में नाकाम होते हैं और उसका गम आज मनाते हैं। हर व्यक्ति में इस तरह की भावना आती है। तो फिर यह सोचना छोड़ दें कि आप कुछ अलग हैं और आपके साथ ही गलत हुआ है।
हर व्यक्ति ने जीवन में कुछ न कुछ खोया है। भ्रमित होना ही 100 फीसदी इनसान होना है। आप चाहे-अनचाहे अपने अतीत की नाकामियों को सिर पर उठाए घूमते रहते हैं। इसीलिए वे आपके कदम खींचती रहती हैं और आप पर हावी रहती हैं। वे नाकामियां आपके साथ सिर झुकाए चलती जाती हैं, अपनी तमाम निराशाओं के साथ। आप सोचते हैं कि करियर में कामयाब नहीं हुए, पर हो सकता है कि आप गलत करियर में हों या आपके पास पर्याप्त संसाधन न हो।
-खुद को इतना न कोसें
खुद से ज्यादा अपनी आलोचना भला कौन कर सकता है! आप ही सबसे कड़े आलोचक हैं। कठोर शिक्षक, कठोर जज। एक इनसान होने के नाते अपनी निंदा करने की क्षमता आप में ही है, जो अपराध आपने किया ही नहीं, उसका ठीकरा भी कई बार अपने ऊपर फोड़ देते हैं। आप खुद को अपनी नाकामियों की कहानियां सुनाते रहते हैं।
पहली बात यह जान लीजिए कि आपको प्रताड़ित करने का हुनर आपसे बेहतर कोई नहीं जान सकता। इसे स्वीकार करें। एक बार जब आप यह स्वीकार कर लेंगे तो आप यह भी मान लेंगे कि हर आदमी इसी तरीके से अपने बारे में सोचता है कि उसका जीवन बेकार है, किसी काम का नहीं है।
जब हर कोई खुद ही परेशान है तो क्या आपको लगता है कि उनके पास इतना सोचने और दिमाग लगाने का समय है कि आप कहां खड़े हैं और अपने जीवन में कितने नाकाम रहे हैं? जी नहीं, वे तो खुद के अतीत को कोसने और मलाल करने में व्यस्त हैं। यकीन करें कि लोग अपने ही बुने जाल में उलझे हैं और आप भी उनमें से एक हैं।
-अब भी देर नहीं हुई है
अगर आप अपने अतीत को लेकर दुखी हैं तो उसे बदल डालिए। जी हां, अकेले आप ही इसे बदल सकते हैं। मन मसोसना बंद कीजिए। अगर सोचते हैं कि अब देर हो गई है तो फिर से कोशिश करके देखिए। यदि आप पिछले फैसलों का क्षोभ मनाते रहेंगे तो फिर यह सोचने के लिए मजबूर हो जाएंगे कि आप अगला कदम उठा ही नहीं सकते। किसी भी क्षोभ या पछतावे का सही इलाज काम करना ही होता है। जब आप किसी नाकाम प्रयास को लेकर पछतावा कर रहे होते हैं तो आपके पास दो विकल्प होते हैं, उस पर कुछ और आंसू बहा लें या उस कहानी को फिर से लिखने के लिए दोबारा जी तोड़ प्रयास करें।
कुछ फैसले लेना या फैसले न लेना, अपनी गहरी और स्थायी छाप छोड़ जाते हैं। एक उदाहरण देखें। आपने सारा जीवन एक ऐसे करियर में बिता दिया जो आपको पसंद नहीं था। अब 55 साल की उम्र में आप थोड़ा पहले रिटायरमेंट लेकर वकालत करना चाहते हैं तो क्या यह संभव है। जी हां, आप कर सकते हैं। आप कॉलेज जा सकते हैं, डिग्री ले सकते हैं और प्रैक्टिस शुरू कर सकते हैं। जब यह संभव होगा आप 60 के करीब होंगे तो फिर क्या हुआ। अपनी रिटायरमेंट पर नई पारी शुरू करना कोई बुरी बात नहीं है। ये पारी अगले 20 साल तक आपमें नया जोश और उमंग भर देगी। दूसरी तरफ आप 55 के हैं और हमेशा से टेनिस प्लेयर बनने का ख्वाब देखते आए हैं। यह ठीक है कि आप अब टेनिस प्लेयर नहीं बन सकते, पर कोच बनने की राह पर चल सकते हैं या टेनिस से जुड़ा कोई व्यवसाय कर सकते हैं। अपने सपने से जुड़े रह सकते हैं नए कलेवर के साथ।
क्यों कोस रहे हैं अतीत को-
जिन वजहों से आप अपने अतीत को कोस रहे हैं उन कड़ियों को जोड़ कर देखिए। क्या इस नाकामी की वजह अहम, जलन, समय पर कदम न उठा पाना था या इन तीनों का मिलाजुला असर था। हर कोई अपने अहम से जूझता है। कभी कभी आदमी अपने मनचाहे सफर पर निकलता है और अचानक उसके सामने कोई उससे कामयाब आदमी आ जाता है, जिसके पास उससे ज्यादा पैसा, शोहरत, बेहतर जीवनसाथी होता है तो आदमी को अपने पास मौजूद हर चीज बौनी लगने लगती है। अगर इन सब चीजों के कारण ही आपको लग रहा है कि सामने वाला आपसे ज्यादा सफल है तो आप पूरी तरह से गलत हैं।
किसी से परामर्श लें-
जरूरी नहीं कि वह कोई डॉक्टर ही हो। हो सकता है वह कोई ऐसा व्यक्ति हो जो आपकी बात सुनकर आपके मन को बोझ हल्का कर दे। सबसे खास बात यह है कि मन के अंदर इकट्ठा क्षोभ की भावनाओं को आजाद करना। गुस्सा, खीझ, कड़वाहट, मायूसी और ऐसी अन्य सभी भावनाओं को हर समय अपने सीने से लगाकर न चलें। खुद को जीवन से भरपूर रखने के लिए हर पल नएपन का आलिंगन करें। दूसरों से बात करें। नाकामियों से निराश होना कोई अकेले आपकी समस्या नहीं है।