नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र में सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 पेश करने को लेकर बहस हुई। चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा- यह विधेयक केवल देश में अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने का जरिया है। इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब दिया- मैं हर सवाल का जवाब दूंगा। तब तक वॉकआउट मत कर जाना। यह विधेयक अल्पसंख्यकों के .001% भी खिलाफ नहीं है। अगर कांग्रेस धर्म के आधार पर देश का विभाजन नहीं करती, तो इस बिल की जरूरत ही नहीं होती। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के विरोध के बाद बिल पेश करने पर वोटिंग हुई। 375 सांसदों ने वोटिंग में हिस्सा लिया। इसके पक्ष में 293 और विरोध में 82 वोट पड़े।
अमित शाह के जवाब
‘पहली बार नागरिकता के लिए चर्चा नहीं हो रही। 1971 में इंदिरा गांधी ने कहा था कि बांग्लादेश से जितने लोग आए हैं, सबको नागरिकता दी जाए, तब पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को क्यों नहीं नागरिकता दी गई। तब अनुच्छेद 14 था तो बांग्लादेश का फेवर क्यों? उसके बाद में युगांडा से आए लोगों को नागरिकता दी गई। तब इंग्लैंड से आए लोगों को क्यों नहीं दी गई?
‘यह रीजनेबल क्लासिफिकेशन के तौर पर किया। असम में नागा अकॉर्ड के आधार पर लोगों को नागरिकता दी गई। तब 1971 को आधार रखा गया। अमेरिका वाले ग्रीन कार्ड देते हैं, रिसर्च एंड डेवलेपमेंट करने वालों को देते हैं। यह भी रीजनेबल क्लासिफिकेशन के आधार पर होता है। समानता का कानून होगा तो अल्पसंख्यक के लिए विशेषाधिकार कैसे होंगे? उन्हें जो शिक्षा और अन्य चीजों का अधिकार मिला है, उसमें आर्टिकल 14 का उल्लंघन नहीं होता क्या?’
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह बिल संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। भारत में दोहरी नागरिकता का प्रावधान नहीं है। अगर बिल पेश हुआ तो गृह मंत्री अमित शाह का नाम इजराइल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरिओन के साथ लिखा जाएगा। इस दौरान भाजपा सांसदों ने ओवैसी के बयान पर आपत्ति जताई।
मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में नागरिकता बिल लोकसभा में पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था। केंद्रीय कैबिनेट से बिल को 4 दिसंबर को मंजूरी मिल गई थी। इस बिल के जरिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर-मुस्लिमों (हिंदुओं, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारतीय नागरिकता देने में आसानी होगी।
धार्मिक आधार पर भेदभाव का आरोप
कांग्रेस समेत 11 विपक्षी दल धार्मिक आधार पर भेदभाव का आरोप लगाकर बिल का विरोध कर रहे हैं। उनकी मांग है कि नेपाल और श्रीलंका के मुस्लिमों को भी इसमें शामिल किया जाए। कांग्रेस, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, सपा, बसपा, राजद, माकपा, एआईएमआईएम, बीजद और असम में भाजपा की सहयोगी अगप विधेयक का विरोध कर रही हैं। जबकि, अकाली दल, जदयू, अन्नाद्रमुक सरकार के साथ हैं। बिल का असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी विरोध है। ऐसे में मोदी सरकार के लिए बिल को संसद पास कराना चुनौती होगा।