अणुव्रत जीवन की मुस्कान- मुनिश्री जिनेश कुमार जी
पालघर। महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाणा 2 के सान्निध्य में राष्ट्रसंत आचार्य श्री तुलसी का जन्म दिवस अणुव्रत दिवस के रूप में जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा पालघर द्वारा आयोजित किया गया। इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने कहा बीसवीं सदी के अलोकपुंज व्यक्तित्व का नाम है आचार्य श्री तुलसी। वे मानवता की धरती पर जीवन मूल्यों में विश्वास रखने वाले जन-जन की आस्था के केंद्र थे तो आधुनिका से भी परहेज नहीं करते थे। वे अलबेले योगी, संत, फकीर, प्रशासक, साहित्यकार, संगीतकार व प्रवचनकार थे। उनका जन्म राजस्थान में लाडनू ग्राम में हुआ।
उन्होंने मात्र 11 वर्ष की उम्र में अष्टमाचार्य आचार्य कालू गणी के कर कमलों से मुनि दीक्षा स्वीकार की वे 16 वर्ष की उम्र में शिक्षक व 22 वर्ष की उम्र में तेरापंथ के आचार्य बन गए। उन्होंने मुनि जीवन के प्रारंभिक 14 वर्षों में 20 हजार श्लोक कंठस्थ किए। मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने आगे कहा मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना एवं चारित्रिक मूल्यों उन्नयन के लिए अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया। अणुव्रत केवल आचार संहिता ही नहीं अपितु पूरा जीवन दर्शन है। धर्म और व्यवहार का सेतु है। अणुव्रत निर्विशेषण धर्म है। इसको कोई भी जाति, वर्ग, वर्ण का व्यक्ति स्वीकार कर सकता है। अणुव्रत व्यक्ति को श्रेष्ठ नागरिक बनाता है।
इस अवसर पर मुनि श्री परमानंद जी ने कहा- आचार्य तुलसी दिव्य दृष्टि से सम्पन्न थे। उनका इस राष्ट्र बड़ा उपकार है। वे चुंबकीय व्यक्तित्व के धनी थे। अणुव्रत आंदोलन के जरिये लाखों लोगों को मानवता का संदेश दिया।
इस अवसर पर सभा के अध्यक्ष नरेश जी राठौड़ अणुव्रत समिति के अध्यक्ष देवीलाल जी सिंघवी, उपासक मीठालाल जी सिघवी, कंचनबाई तलेसरा, कमलाबाई सिंघवी, बोईसर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष दिलीप राठौड़, विरार तेरापंथी सभा के अध्यक्ष तेजराजजी हिरण, विनोद बाजपेई आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री परमानंद जी ने किया। यह जानकारी दिनेश राठौड़ ने दी।
पालघर में राष्ट्रसंत आचार्य श्री तुलसी का 106 वां जन्म दिवस मनाया
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