ठाणे। मंदिरमार्गी तपागच्छ सम्प्रदाय के आचार्य श्रीमद विजय चिदानंद सूरीश्वरजी म.सा. तथा साध्वी श्री अणिमाश्रीजी एवं साध्वी श्री मंगलप्रज्ञाजी के सानिध्य में तेरापंथ भवन ठाणा के प्रांगण में गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी का 106 वा जन्म दिवस सैकड़ो भाई बहनों की उपस्थिति में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर विशाल जनमेदिनी ने आराध्य देवता को आस्था का अर्घ्य समर्पित किया।
आचार्य विजय चिदानंद सूरीश्वरजी म.सा. ने आ. तुलसी के व्यक्तित्त्व, कर्तुत्व व नेतृत्त्व का गुणानुवाद करते हुए कहा जिनशाशन के देदीप्यमान दिनकर थे आ. तुलसी। आ. तुलसी समाधायक पुरुष थे। हर समस्या चाहे पारवारिक हो, सामाजिक हो, राष्ट्रीय हो या वैश्विक हो उनके पास है समस्या का समाधान था। हमारी जीवन शैली कैसी हो, समय का सार्थक उपयोग कैसे हो इसका जीवन्त प्रशिक्षण आ. तुलसी के जीवन से मिलता है। आ. तुलसी की अनासक्त चेतना ने आचार्य-पद का विसर्जन कर पूरी मानवजाति को पडलिप्सा से दूर रहने की बात कही। उनकी विराट सोच ने विराट कार्यो को निष्पादित कर जिनशाशन की प्रभावना की।
साध्वी श्री अणिमाश्रीजी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा संगीत के उत्कर्ष के रूप में तानसेन, भारतीय स्थापत्य कला में ताजमहल प्रसिद्ध है एवं भारतीय साहित्य के उत्कर्ष के रूप में तुलसीदास जी को मानते है तो भारतीय संत का उत्कर्ष रूप आ. तुलसी में था। आ. तुलसी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनका व्यक्तित्त्व आकर्षक था, हृदय विराट था, जो कोई उनकी शरण में आता, वह उनका हो जाता था। यह तीनों गुण उस व्यक्तित्त्व में हो सकते है, जिसमे सहिष्णुता हो, संयम हो, सद्भावना हो। आ. तुलसी इन तीनो के समवाय थे। आ. तुलसी की ये तीनों विशिष्टताएं हमारे जीवन मे अवतरित होगी तभी जन्म दिवस मनाना सार्थक होगा।
साध्वी श्री कर्णिकाश्रीजी ने कहा कार्तिक शुक्ल द्वितीया को लाडनूं में एक साथ दो चांद उदित हुए। एक आकाश का चांद था, दूसरा खटेड कुल का चांद था। खटेड कुल के चांद आ. तुलसी ने अपनी शुभ्र ज्योत्स्ना से पूरी धरती को ज्योतित कर दिया।
साध्वी सुधाप्रभाजी ने अपने व्यक्तत्व मे कहा आ. तुलसी रूप एक प्रतिरूप अनेक थे। बिम्ब एक प्रतिबिम्ब अनेक थे। वे साहित्यकार थे, कलाकार थे, संगीतकार थे, ध्यानयोगी थे व प्रशाशक थे। उनके निर्भय नेतृत्त्व की तेजस्वी गौरवगाथा दिग-दिगंत में गूंज रही है।
साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने मंच संचालन करते हुए कहा सूर्यमणि व चंद्रमणि की तरह उनके तेजस्वी आभामंडल से तेजस्वी किरणे निकलती थी। चिंतामणि रत्न के सदृश उनका नाम चिंताओं के शमन करनेवाला है। साध्वी समत्वयशाजी ने सुमधुर गीत का संगान कर पूरी परिषद को तुलसीमय बना दिया।
मुम्बई सभाध्यक्ष नरेंद्र तातेड़, ठाणा सभाध्यक्ष देवीलाल श्रीश्रीमाल, मंत्री जितेंद्र बरलोटा, तेयुप ठाणा सिटी के अध्यक्ष कमलेश दुग्गड़, सेंट्रल ठाणा तेयुप के अध्यक्ष निर्मल ओस्तवाल, मीनाक्षी श्रीश्रीमाल, रमिला बडाला, राजस्थान जैन संघ के अध्यक्ष उत्तमचंद सोलंकी ने अपने श्रद्धा सिक्त विचार रखे व ठाणा महिला मंडल ने सुमधुर गीत का संगान किया।
जिनशाशन के देदीप्यमान दिनकर थे आ. तुलसी : विजय चिदानंद सूरीश्वरजी म.सा
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