कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की द्वितिया यानी दीपावली के दूसरे दिन भाई दूज मनाया जाता है। इसे “यम द्वितीया” भी कहते हैं। इस दिन बहनें अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर उसकी लंबी उम्र की मनोकामना करती है। माना जाता है इस दिन भाई के मस्तक पर टीका लगाने से यमराज उन भाई-बहनों के कष्ट दूर कर देते हैं।
मान्यता है कि इस दिन भाई अपनी बहन को यमुना स्नान कराएं। इसके बाद बहन अपने भाई को तिलक करें और भोजन कराएं। जो भाई-बहन यम द्वितीया के दिन इस प्रकार दूज पूजन के बाद तिलक की रस्म पूरी करते हैं। उन्हें मृत्यु के पश्चात स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
भाईदूज के मुहूर्त
सुबह 10:36 से 11:56 तक
सुबह 11.56 से दोपहर 1:16 तक
दोपहर 02:55 से शाम 04:10 तक
भाई-दूज पर्व धर्मराज यम और उनकी बहन यमुना के प्रेम का प्रतिक पर्व है। इस दिन यम और यमुना की तरह भाई-बहन मिलते हैं। बहन भाई का आदर सत्कार कर के तिलक लगाती है। इस तरह भाई-बहन के प्रेम से यम और यमुना प्रसन्न हो जाते हैं। इस दिन भाई और बहन को यमुना स्नान करना चाहिए। ऐसा करना संभव न हो तो नहाने के पानी में यमुना का जल मिलाकर नहा लें और यमुना देवी को प्रणाम करें। इसके बाद धर्मराज यम को भी प्रणाम करें। यम और यमुना को प्रणाम करते हुए ये मंत्र बोलें।
यमराज की पूजा के लिए
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज।
पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते।।
यमुना पूजा के लिए
यमस्वसर्नमस्तेऽसु यमुने लोकपूजिते।
वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्रि नमोऽस्तु ते॥
भाई दूज से जुड़ी कथा
– सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं। संज्ञा के पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा अपने पति सूर्य की तेज किरणों को सहन नहीं कर सकने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी।
– इसी से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से सदा युवा रहने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म हुआ, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा (छाया) का यम तथा यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया।
– इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख दु:खी होती, इसलिए वह गोलोक चली गई। समय व्यतीत होता रहा। तब काफी सालों के बाद अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई।
– यम ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। फिर यम स्वयं गोलोक गए, जहां यमुनाजी की उनसे भेंट हुई। इतने दिनों बाद यमुना अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई। यमुना ने भाई का स्वागत किया और स्वादिष्ट भोजन करवाया।
– इससे भाई यम ने प्रसन्न होकर बहन से वरदान मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने वर मांगा – ‘हे भैया, मैं चाहती हूं कि जो भी मेरे जल में स्नान करे, वह यमपुरी नहीं जाए।’ यह सुनकर यम चिंतित हो उठे और मन-ही-मन विचार करने लगे कि ऐसे वरदान से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
– भाई को चिंतित देख, बहन बोली- भैया आप चिंता न करें, मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें तथा मथुरा नगरी स्थित विश्रामघाट पर स्नान करें, वे यमपुरी नहीं जाएं। यमराज ने इसे स्वीकार कर वरदान दे दिया। बहन-भाई के मिलन के इस पर्व को अब भाई-दूज के रूप में मनाया जाता है।