नई दिल्ली:अयोध्या जमीन विवाद के मामले में शनिवार को हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष ने उच्चतम न्यायालय में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ हलफनामा दाखिल किया है। निर्मोही अखाड़े की तरफ से जारी हलफनामा में रामलला या किसी भी हिंदू पक्षकार के पक्ष में डिक्री होने पर अपने सेवायत अधिकार के बरकार रखे जाने की बात कही गई है। साथ ही कहा गया है कि विवादित भूमि पर मंदिर बनाने के साथ ही रामलला की सेवा, पूजा और व्यवस्था की जिम्मेदारी का अधिकार हो। वहीं, रामलला विराजमान की ओर से कहा गया है कि पूरा विवादित क्षेत्र उन्हें दिया जाए।
रामलला के नकारने पर निर्मोही अखाड़े का दावा खुद ही खारिज हो जाता है। पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने अपने हलफनामे में कहा है कि इसपर कोई समझौता नहीं हो सकता, यह हिंदुओं के लिए आस्था का सवाल है जिसे अन्य लोगों के साथ बांटने का सवाल ही पैदा नहीं होता। राम जन्मस्थान पुनोद्धार समिति ने कहा है कि अयोध्या में भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए उसकी योजना बनाई जाए और उसका प्रशासनिक व्यवस्था तैयार की जाए। एक ऐसा ट्रस्ट बनाएं जिसमें हिंदू हों। अखिल भारतीय हिंदू महासभा की ओर से कहा गया कि मंदिर निर्माण और व्यवस्था के लिए ट्रस्ट बनाया जाए।
वहीं, मुस्लिम पक्षकारों ने भी मोल्डिंग ऑफ रिलीफ सीलबंद लिफाफे में दाखिल किया। सूत्रों के मुताबिक मुस्लिम पक्ष ने कहा कि उन्हें वही राहत चाहिए जो उन्होंने बहस के दौरान कही थी। जवाब में बताया गया है कि यदि कोर्ट उन्हे टाइटल/ स्वामित्व नहीं देता है तो उसके बदले क्या राहत दी जा सकती है। रामलला विराजमान की ओर से सीलबंद लिफाफे में कोर्ट में दाखिल जवाब पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा है कि बहस पूरी होने के बाद कोर्ट को इस तरह से गोपनीय रूप से दस्तावेज देना स्वीकार्य नहीं है, खासकर जब इस मामले में दलीलें पूरी हो चुकी हों। मालूम हो कि, कोर्ट ने सभी पक्षों को तीन दिन का समय दिया था।
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का मतलब
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का प्रावधान सिविल सूट वाले मामलों के लिए किया जाता है। इसमें याचिकाकर्ता अदालत के पास अपनी मांग के साथ पहुंचता है और अगर वह मांग पूरी नहीं हो पातीं तो वह कौन से विकल्प है जो उसे दिए जा सकते हैं।