तेरापंथ टास्क फोर्स के अधिवेशन का शुभारंभ
17-10-2019 गुरुवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक। तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता-शांतिदूत-महाप्रज्ञ पट्टधर आचार्य श्री महाश्रमणजी ने महाश्रमण समवसरण से अपने मंगल उद्बोधन में फरमाया कि हमारी दुनिया में बुद्धि और तर्क का अपना-अपना महत्व है। निर्मल बुद्धि से तर्क किया जाए तो सच्चाई पाने की दिशा में गति मिलती है। तर्क और श्रद्धा दो अलग-अलग विषय है। जहां पर हमारी श्रद्धा हो वहां पर तर्क उचित नहीं होता है परंतु विषय की जानकारी के लिए निर्मल बुद्धि से समस्या का निवारण किया जा सकता है। हर बात को तर्क से हल नहीं किया जा सकता है। जहां पर उचित हो तो वहां पर तर्क से हल पाया जा सकता है। आदमी को तर्क का प्रयोग इंद्रिय गम्य विषयों पर करना चाहिए। मनोतीत जगत में तर्क का क्षेत्र नहीं होता है और जहां किसी वस्तु का क्षेत्र ही नहीं है वह उसका प्रयोग करना व्यर्थ होता है। आत्मा का स्वरूप तर्कातीत विषय है। यह श्रद्धा की बात होती है। आचार्य प्रवर ने एक कथानक के माध्यम से फरमाया कि जिस प्रकार दूध देखा जाए तो वह एक सफेद तरल पदार्थ होता है परंतु उसके अंदर की दही छाछ और मक्खन का स्वरूप भी होता है परंतु वह तभी प्राप्त होता है जब उसका मंथन किया जाए। उसी प्रकार हर व्यक्ति को आत्मा का स्वरूप तब तक दिखाई नहीं देता है जब तक वह अपनी ज्ञान चेतना का मंथन न करे। दुनिया में नास्तिकवाद की बात भी होती है परंतु आत्मा के स्वरूप को वह भी नहीं नकार सकते। क्योंकि दुनिया में अनेक चीजें होती है जो हमें दिखाई नहीं देती परंतु उनका अस्तित्व होता है। उसी प्रकार जैसे आकाश का कोई अंत नहीं है परंतु आकाश है। इंद्रियों के द्वारा गम्य नहीं होने पर किसी पदार्थ के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। तर्क में किसी के पास अगर अच्छी बात हो तो उसे ग्रहण भी करना चाहिए और सापेक्ष तर्क से मंथन भी करना चाहिए। प्रवचन में जैनोलॉजी और आत्मा के विषय में पीएचडी अथवा शोध करने वाली समणीवृन्द द्वारा चारवाद और आत्मवाद के सिद्धांत के बारे में वक्तव्य दिया गया।
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्वावधान में तेरापंथ टास्क फोर्स के 3 दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारंभ आचार्य प्रवर के मंगल पाठ से हुआ। संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया।
तर्क से नहीं मिलता हर समस्या का समाधान : आचार्यश्री महाश्रमण
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